केरल की भाषा

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केरल की भाषा मलयाळम् है जो द्रविड़ परिवार की भाषाओं में एक है। मलयाळम् भाषा के उद्गम के बारे में अनेक सिद्धान्त प्रस्तुत किए गए हैं। एक मत यह है कि भौगोलिक कारणों से किसी आदी द्रविड़ भाषा से मलयालम एक स्वतंत्र भाषा के रूप में विकसित हुई। इसके विपरीत दूसरा मत यह है कि मलयालम तमिल से व्युत्पन्न भाषा है। ये दोनों प्रबल मत हैं। सभी विद्वान यह मानते हैं कि भाषायी परिवर्त्तन की वजह से मलयालम उद्भूत हुई। तमिल, संस्कृतम् दोनों भाषाओं के साथ मलयालम का गहरा सम्बन्ध है। मलयाळम् का साहित्य मौखिक रूप में शताब्दियाँ पुराना है। परंतु साहित्यिक भाषा के रूप में उसका विकास 13 वीं शताब्दी से ही हुआ था। इस काल में लिखित 'रामचरितम' को मलयालम का आदि काव्य माना जाता है।

लिपि[संपादित करें]

प्रारंभ में ताम्रपत्रों, पत्थरों, ताड़पत्रों पर मलयालम की गद्य कृतियाँ लिपिबद्ध हुईं। इनमें गद्य भाषा में व्यक्तियों तथा मन्दिरों की सम्पत्ति तथा धन दान सम्बन्धी आदि प्रमुख विषय है और प्रशासन सम्बन्धी निर्देश हैं। इस प्रकार के प्राप्त ताम्र-शिला लेख 9 वीं शताब्दी के हैं। आज के गद्यों से उन लेखों के गद्य के दूर का सम्बन्ध भी नहीं है। सबसे पुराना जो गद्य ग्रन्थ प्राप्त हुआ है वह कौटिलीय है। चाणक्य (कौटिल्य) के अर्थशास्त्र की मलयालम में व्याख्या ही भाषा कौटिलीयम नाम से विख्यात है। इसका रचना काल या तो 11 वीं शती का उत्तरार्द्ध है या 12 वीं सदी का पूर्वार्द्ध। (7)

नौवीं सदी से मलयालम जिस लिपि में लिखी जाती थी उस लिपि को 'वट्टेष़ुत्तु' नाम से पुकारा जाता था। बाद में इस लिपि से 'कोलेष़ुत्तु' लिपि निकली। तदनन्तर जो ग्रन्थलिपि बनी उससे आज की मलयालम लिपि विकसित हुई। 16 वीं शताब्दी से ग्रन्थलिपि का प्रचार हुआ। तुंचत्तेष़ुत्तच्छन मलयालम के जनक माने जाते हैं, उन्होंने अपना 'किळिप्पाट्टुकळ' (कीर गीत) ग्रन्थाक्षरों में लिखा था। मलयालम की विभिन्न बोलियों में उच्चारणगत तथा शैलीगत भेद हैं।

यद्यपि मुद्रण 16 वीं शताब्दी में ही केरल पहुँची फिर भी मलयालम का मुद्रण कला कार्य देर से ही हुआ। मलयालम का प्रथम मुद्रित ग्रंथ 'संक्षेपवेदार्थम' है जिसका मुद्रण सन् 1772 में रोमा में हुआ था।

मलयालम केरल और लक्षद्वीप की प्रमुख भाषा है। द्रविड भाषाओं में से एक मलयालम है, की उत्पत्ति को लेकर कई सिद्धान्त प्रचलित हैं। सर्वाधिक स्वीकृत सिद्धान्त यह है कि ईस्वी सन् 9 वीं शताब्दी में केरल में प्रचलित तमिल से मलयालम स्वतंत्र भाषा के रूप में विकसित हुई। यह तीन करोड़ से अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है और उसके बोलने वाले केरल के बाहर सऊदी अरब तथा खाड़ी क्षेत्र के देशों में भी रहते हैं। साहित्यिक भाषा के रूप में मलयालम का विकास 13 वीं सदी से होने लगा। 9 वीं सदी से मलयालम लेखन के लिए 'वट्टेष़ुत्तु लिपि' का प्रयोग हुआ। किन्तु 16 वीं शती में प्रयुक्त 'ग्रन्थलिपि' से आधुनिक मलयालम लिपि विकसित हुई।

लिपि[संपादित करें]

मलयालम की वर्णमाला को लेकर विभिन्न मत पाये जाते हैं। 'केरल पाणिनीयम' के रचयिता ए. आर. राजराजवर्मा का मत है कि मलयालम में अर्थभेद उत्पन्न करने वाले 53 सबसे छोटे वर्ण या स्वनिम (phonemes) हैं। इन्हीं वर्णों को अक्षर माना जाता है। मलयालम का सर्वाधिक प्रामाणिक व्याकरण ग्रन्थ होने का गौरव 'केरल पाणिनीयम' को प्राप्त है। मलयालम व्याकरण की रचना करने वाले अन्य वैयाकरण हैं - हेरमन गुण्डेर्ट, जॉर्ज मात्तन, कोवुण्णि नेडुंगाडि, शेषगिरि प्रभु आदि। मलयालम के विकास एवं पोषण संवर्द्धन में समृद्ध साहित्य, पत्र - पत्रिकाएँ तथा पुस्तक - प्रकाशन की व्यापक व्यवस्था आदि महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। केरल की शिक्षा प्रणालियों तथा सांस्कृतिक प्रतिष्ठानों की भूमिका भी कम महत्वपूर्ण नहीं रही

वर्णमाला[संपादित करें]

यह बताना कठिन है कि मलयालम में कितने वर्ण या अक्षर हैं। इसके लिए आधुनिक भाषाविज्ञान का सहारा लेना पड़ता है जिसने अक्षर (Syllable), वर्ण अथवा स्वनिम (Phoneme) को आधार बनाया है। जिस ध्वनि का स्वतंत्र उच्चारण होता है उसे 'अक्षर' अथवा 'सिलेबल' कहते हैं। अर्थभेद उत्पन्न कर सकनेवाली सबसे छोटी भाषिक इकाई को 'वर्ण' अथवा 'स्वनिम' कहते हैं। "आज कल अक्षर का प्रयोग 'सिलेबल' अर्थ में किया जाता है जो पारिभाषिक शब्द है। जब कोई यह प्रश्न करता है कि मलयालम में कितने अक्षर हैं तब प्रश्न कर्ता का तात्पर्य अंग्रेज़ी की भाँति वर्णों की संख्या को जानने से है। यदि ठीक-ठीक कहा जाय तो अंग्रेज़ी में वर्णों की संख्या 26 है और लिपियों की संख्या भी 26 है। मलयालम में वर्णों और लिपियों के बीच कोई सम्बन्ध नहीं। सम्बन्ध अक्षरों व लिपियों के बीच है। मलयालम की विशाल अक्षर संख्या ने लिपि सुधार को कठित एवं जटिल बनाया। मलयालम की वर्ण संख्या इसलिए नहीं बताई जा सकती, क्यों कि उनमें ध्वनिम स्तर पर भेद हैं, जिनको नकारा नहीं जा सकता है। यह बात विभिन्न व्याकरण ग्रन्थ प्रमाणित करते हैं "। (1)

हेर्मन गुण्डेर्ट के अनुसार मलयालम में 49 वर्ण हैं, जॉर्ज मात्तन की दृष्टि में यह 48 है, ए. आर. राजराज वर्मा और शेषगिरि प्रभु के अनुसार 53 वर्ण हैं। ए. आर. राजराजवर्मा ने 'केरल पाणिनीयम' में जो अक्षरमाला क्रम दिया है वह निम्नलिखित है -

स्वराक्षर

ह्रस्व स्वर अ इ उ ऋ ए ओ दीर्घ स्वर आ ई ऊ ॠ ओ ऐ औ

व्यंजन

अल्पप्राण महाप्राण अघोष घोष अनुनासिक स्पर्श

  • क ख ग घ ङ कवर्ग
  • च छ ज झ ञ चवर्ग
  • ट ठ ड ढ ण टवर्ग
  • त थ द ध न तवर्ग
  • प फ ब भ म पवर्ग

मध्यम

  • य र ल व
  • श ष स ह
  • ळ ष़ ऱ
ऋ, ऌ, ॠ

ये लिपियाँ मलयालम में उपलब्ध हैं परंतु इन लिपियों से बने शब्द नहीं है। इन्हें वर्णमाला में स्थान भी नहीं है। मलयालम लिपि माला की सामान्य व्यवस्था एक अक्षर एक लिपि की है। इस कारण कहा जा सकता है कि मलयालम में वर्णमाला न होकर अक्षरमाला ही प्राप्त होती है। किन्तु चिल्लक्षर इसके उदाहरण हैं।

मुद्रण में जैसी मलयालम लिपियाँ आजकल प्रयुक्त होती हैं, वे समय-समय पर हुए परिष्कार और सुधार का परिणाम है।[1]

अन्य भाषाएँ[संपादित करें]

यद्यपि केरल की प्रमुख भाषा मलयालम है तथापि यहाँ अनेक भाषाएँ व्यवह्रत होती हैं। केरल में अंग्रेज़ी को प्रमुख स्थान प्राप्त है। मलयालम की तरह अंग्रेज़ी शिक्षा का प्रमुख माध्यम है। तमिल और कन्नड़ भाषाओं को अल्पसंख्यक भाषा-पद दिया गया है। केरल में विभिन्न भाषा - समाज रहते हैं। केरल में रहने वाले विभिन्न भाषा समाजों में निम्नलिखित भाषाएँ मातृभाषा के रूप में बोली जाती है - आदिवासी भाषाएँ, तमिल, कन्नड़, तेलुगु, तुलु, कोंकणी, गुजराती, मराठी, उर्दू, पंजाबी आदि। अरबी, रूसी, सिरियक, जर्मन, इताल्वी, फैंच आदि भाषाओं का अध्ययन - अध्यापन भी यहाँ होता है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. स्करिया जकारिया, 'केरल पाणिनीयम की पादटिप्पणियाँ', केरल पाणिनीयम, डी. सी. बुक्स, कोट्टयम, 2000 पृ 56-57