अम्मेम्बल सुब्बा राव पई

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श्री. अम्मेम्बल सुब्बा राव पई (1852-1909) मंगलौर, भारत के एक अग्रणी वकील थे। वे केनरा बैंक, जो अब भारत का एक प्रमुख बैंक है और मंगलौर में केनरा उच्च विद्यालय के संस्थापक थे।

जीवन और परिस्थिति[संपादित करें]

मंगलौर के निकट मुल्की में 19 नवम्बर 1852 को जन्मे अम्मेम्बल सुब्बा राव पई ने सरकारी उच्च विद्यालय, मंगलौर से अपनी आरंभिक शिक्षा की और अपनी मां के असामयिक निधन का उन पर इतना अधिक असर पड़ा कि वे अपनी पढाई को गंभीरतापूर्वक लेने लगे। एफए परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद, उनके पिता ने उन्हें उच्च शिक्षा के लिए मद्रास भेज दिया। प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई के बाद, उन्होंने मद्रास लॉ कॉलेज में नाम लिखाया. वहां वे न्यायाधीश होलोवे के संपर्क में आये, जिनका असाधारण व्यक्तित्व उनके लिए एक लाभकारी अनुभव साबित हुआ।

1876 में, अपने पिता के निधन के बाद, वे मंगलौर चले गये और सफलतापूर्वक कानूनी प्रैक्टिस करने लगे। कहा जाता है कि वे अक्सर अपने मुवक्किलों के लिए अदालत के बाहर सौहार्दपूर्ण समझौते के प्रयास किया करते थे, हालांकि इससे कभी-कभी उन्हें अपनी फीस का नुकसान उठाना पड़ता था। 1891 में चार शिक्षकों ने, जिनसे वे मद्रास में मिले थे, मंगलौर में एक स्कूल खोलने के प्रस्ताव के साथ उनसे संपर्क किया। उसके कुछ समय बाद ही 1894 में, लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने केनरा गर्ल्स हाई स्कूल की शुरुआत की। उस जमाने में महिलाओं की शिक्षा के प्रति लोगों की मनोवृत्ति और प्रचलित सामाजिक मूल्यों को देखते हुए यह निश्चित ही एक प्रगतिशील कदम था।

20वीं सदी की शुरुआत में अर्बुथनट कंपनी की विनाशकारी दुर्घटना से प्रेरित होकर उन्होंने 1906 में द केनरा हिन्दू परमानेंट फंड लि. (अब केनरा बैंक) की शुरुआत की, ताकि समुदाय स्वयं अपने संसाधन जुटाने में सक्षम हो सके। गौड़ सारस्वत ब्राह्मण परिषद, जिसके वे एक संस्थापक थे, के तत्वावधान में "गरीब लड़कों के शिक्षा कोष" की स्थापना, जीएसबी समुदाय के लिए उनके महत्वपूर्ण योगदानों में एक थी। अम्मेम्बल सुब्बा राव पई जीवन भर गंभीर गठिया से पीड़ित रहे, इस रोग के कारण अंततः 25 जुलाई 1909 को उन्होंने दम तोड़ दिया।

केनरा बैंक[संपादित करें]

द केनरा हिन्दू परमानेंट फंड के रूप में 1906 में परोपकारी स्व. अम्मेम्बल सुब्बा राव पई द्वारा स्थापित यह छोटा-सा बीज बढ़ते हुए 1910 में केनरा बैंक लि. के रूप में एक लिमिटेड कंपनी बन गया और राष्ट्रीयकरण के बाद 1969 में केनरा बैंक बना।

"एक अच्छा बैंक समुदाय का न सिर्फ वित्तीय हृदय होता है, बल्कि आम लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए हर संभव तरीके से मदद करने का एक दायित्व भी है।" - ए सुब्बा राव पई .

बुनियादी सिद्धांत[संपादित करें]
  1. अंधविश्वास और अज्ञान को दूर करना।
  2. पहले सिद्धांत की तामील के लिए सबके बीच शिक्षा का प्रसार करना।
  3. मितव्ययिता और बचत की आदत विकसित करना।
  4. वित्तीय संस्थान को न सिर्फ समुदाय के वित्तीय हृदय या केंद्र में, बल्कि सामाजिक हृदय या केंद्र के रूप में भी तब्दील करना।
  5. जरूरतमंदों की सहायता करना।
  6. सेवा और समर्पण की भावना के साथ काम करना।
  7. आसपास के मनुष्यों के लिए सहानुभूति विकसित करना और कठिनाईयों तथा कष्टों को दूर करने/उनमें परिवर्तन लाने के नजरिये से परिवेश के प्रति संवेदनशीलता का विकास करना।

ठोस बुनियादी सिद्धांत, प्रबुद्ध नेतृत्व, अद्वितीय कार्य संस्कृति और बदलते बैंकिंग माहौल के लिए उल्लेखनीय अनुकूलनशीलता ने केनरा बैंक को वैश्विक मानकों पर एक अग्रणी बैंकिंग संस्था बनने में सक्षम बनाया।

मंगलौर में शिक्षा में योगदान[संपादित करें]

श्री यू. श्रीनिवास राव, बी. पद्मनाभ बलिगा, बी. वामन बलिगा और अर्कल वासुदेव राव नामक चार युवा बीए स्नातक जब चेन्नई में थे, तब उन्होंने मंगलौर के अपने गौड़ सारस्वत ब्राह्मण समुदाय के भले के लिए एक धुन पैदा कर ली थी। उस समय दक्षिण कन्नड़ जिले के उस समुदाय के अधिकांश लोग अशिक्षित थे। उनके साथ एक और शिक्षक श्री ए. पद्मनाभय्या भी आ जुड़े. जून 1891 में, उन्होंने मंगलौर में कोडियाल्बैल चैपल के ठीक सामने एक इमारत किराए पर ले ली और केनरा हाई स्कूल शुरू कर दिया और मालिकाना चिंता के कारण खुद मालिक ही स्कूल के पहले शिक्षक बने।

इस नए स्कूल के अनेक विरोधी थे, जिन्होंने शिक्षा विभाग से शिकायत की कि स्कूल को लोगों का समर्थन प्राप्त नहीं है और रोजगार के लिए इसे शिक्षकों द्वारा चलाया जा रहा है। इसके मद्देनज़र अप्रैल 1893 को मालिक शिक्षकों ने अपना मालिकाना प्रबंधन बोर्ड को सौंप दिया। बोर्ड में स्कूल को शुरू करने वाले शिक्षकों को छोड़कर समुदाय के प्रतिष्ठित लोगों को शामिल किया गया। उस प्रबंधन बोर्ड के महत्वपूर्ण सदस्यों में एक थे मंगलौर के एक प्रतिष्ठित वकील अम्मेम्बल सुब्बा राव पई.

जून 1894 को, लड़कियों की पांचवी कक्षा तक की पढ़ाई के लिए वर्तमान केनरा गर्ल्स स्कूल शुरू किया गया। लड़कियों के लिए ऊंची कक्षाओं की पढ़ाई शुरू करने में चौथाई सदी से भी अधिक का समय लग गया। 8वीं कक्षा 1932 में शुरू की गयी। ये दोनों संस्थान 1922 तक एक एकल प्रबंधन बोर्ड द्वारा चलाये जाते रहे। उस साल, सोसायटी पंजीकरण क़ानून, 1860 के तहत सोसायटी पंजीकरण के जरिये केनरा हाई स्कूल एसोसिएशन ने इन दोनों स्कूलों का प्रबंधन अपने हाथ ले लिया।

इस संस्थान की शुरुआत जीएसबी समुदाय के लोगों को शिक्षित करने के उद्देश्य से की गयी थी, लेकिन बाद में इसने धर्मनिरपेक्ष दर्जा प्राप्त किया और जाति, धर्म या लिंग के भेदभाव के बिना यहां सभी लोगों को शिक्षा दी जाने लगी।

समुदाय की आवश्यकताओं को पूरा करने के उद्देश्य से शुरू किये गये शैक्षिक संस्थान.[संपादित करें]
  1. केनरा हाई स्कूल मुख्य (1891)
  2. केनरा गर्ल्स हाई स्कूल (1894)
  3. केनरा हाई स्कूल (उर्वा) (1944)
  4. केनरा हायर प्राइमरी स्कूल (1947)
  5. केनरा नर्सरी स्कूल (1969)
  6. केनरा अंग्रेजी उच्च प्राथमिक स्कूल (1970)
  7. केनरा प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज (1972)
  8. केनरा कॉलेज (1973)
  9. केनरा बालवाडी स्कूल (1978)
  10. केनरा अंग्रेजी हायर प्राइमरीस्कूल, उर्वा (1989)
  11. केनरा नर्सरी स्कूल. उर्वा (1991)
  12. केनरा गर्ल्स इंस्टिट्युट ऑफ़ फ़ूड प्रोसेसिंग (1998)
  13. केनरा इंजीनियरिंग कॉलेज (2001)
  14. केनरा स्कूल (सीबीएसई (CBSE)) (2009)
  15. केनरा मोंटेसरी (2009)

एक दूरदर्शी[संपादित करें]

श्री. अम्मेम्बल सुब्बा राव पई, एक बहुत ही व्यावहारिक व्यक्ति ने दोनों संस्थाओं के प्रबंधन के लिए प्रभावी नेतृत्व दिया। अपनी मृत्यु तक, उन्होंने दोनों संस्थाओं को सही रास्ते में ले जाने के लिए मार्गदर्शन किया, दक्षिण कन्नड़ में शिक्षा आंदोलन के संस्थापक के रूप में उन्हें जाना जाता है।

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]