ऊष्मा अन्तरण

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
(ऊष्मा का संचार से अनुप्रेषित)
पानी गरम करना ऊष्मा के अन्तरण का सबसे सामान्य उदाहरण है।

किसी अधिक गर्म पिण्ड से किसी अधिक ठंडे पिंड में ऊष्मा के पारगमन को ऊष्मा अन्तरण (हीट ट्रान्सफर) कहते हैं।

तापान्तर के कारण हो रहे ऊष्मा के स्थानांतरण को ऊष्मा का संचरण कहते हैं। जब किसी वस्तु का तापमान उसके परिवेश या अन्य वस्तु की अपेक्षा भिन्न होता है तो ताप ऊर्जा का संचार जिसे ताप का बहाव या ताप का विनिमय भी कहते हैं, इस तरह से होता है कि वह वस्तु और उसका परिवेश ऊष्म-साम्यता ग्रहण कर लेते हैं; इसका मतलब है कि दोनों का तापमान समान हो जाता है। ऊष्मप्रवैगिकी के द्वितीय नियम या क्लॉज़ियस के कथन के अनुसार ऊष्मा का संचार हमेशा अधिक गर्म वस्तु से अधिक ठंडी वस्तु की ओर होता है। जहां कहीं भी पास-पास स्थित वस्तुओं में तापमान की भिन्नता होती है, उनके बीच ऊष्मा के संचार को कभी रोका नहीं जा सकता; इसे केवल कम किया जा सकता है।

संचालन[संपादित करें]

पदार्थ के कणों में सीघे संपर्क से ऊष्मा के संचार को संचालन कहते हैं। ऊर्जा का संचार प्राथमिक रूप से सुनम्य समाघात द्वारा जैसे द्रवों में या परासरण द्वारा जैसा कि धातुओं में होता है या फोनॉन कंपन द्वारा जैसा कि इंसुलेटरों में होता है, हो सकता है। अन्य शब्दों में, जब आसपास के परमाणु एक दूसरे के प्रति कम्पन करते हैं, या इलेक्ट्रान एक परमाणु से दूसरे में जाते हैं तब ऊष्मा का संचार संचालन द्वारा होता है। संचालन ठोस पदार्थों में अधिक होता है, जहां परमाणुओं के बीच अपेक्षाकृत स्थिर स्थानिक संबंधों का जाल कंपन द्वारा उनके बीच ऊर्जा के संचार में मदद करता है। ऊष्मा हमेशा उच्च ताप से निम्न तप की ओर गणन करती है ऊष्मा का ट्रांसपोर्टेशन तक होता है जब तक की दोनों माध्यमों के मध्यसंचरण तब तक होता है जब तक की दोनों माध्यमों की मदद तापांतर साम्यावस्था में नहीं आ जाए

ऐसी स्थिति में जहां द्रव का प्रवाह बिलकुल भी न हो रहा हो, ताप संचालन, द्रव में कणों के परासरण से सीधे अनुरूप होता है। इस प्रकार का ताप परासरण बर्ताव में ठोसों में होने वाले पिंडीय परासरण से भिन्न होता है, जबकि पिंडीय परासरण अधिकतर द्रवों तक ही सीमित होता है।

धातुएं (उदा. तांबा, प्लेटीनम, सोना, लोहा आदि) सामान्यतः ताप ऊर्जा की सर्वोत्तम संचालक होती हैं। ऐसा धातुओं के रसायनिक रूप से बंधित होने के तरीके के कारण होता है; धात्विक बाँडों में (कोवॉलेंट या आयनिक बाँडों के विपरीत) मुक्त रूप से चलने वाले इलेक्ट्रान होते हैं जो ताप ऊर्जा का तेजी से धातु में संचार कर सकते हैं।

जैसे-जैसे घनत्व घटता है, संचालन भी घटता है। इसलिये, द्रव (और विशेषकर गैसें) कम संचालक होते हैं। ऐसा गैस में परमाणुओं के बीच अधिक दूरी होने से होता है: परमाणुओं के बीच कम टकराव होने का मतलब है, कम संचालन. तापमान के साथ गैसों के बढ़ जाती है कि चालकता. गैसों की संचालकता निर्वात से दबाव के बढ़ने के साथ एक महत्वपूर्ण बिंदु तक तब तक बढ़ती है जब तक कि गैस का घनत्व इतना हो जाए कि गैस के अणु एक सतह से दूसरे में ताप का संचार करने के पहले एक दूसरे से टकराने लगें. घनत्व में इस बिंदु के बाद, बढ़ते हुए दबाव और घनत्व के साथ संचालन जरा सा ही बढ़ता है।

इस बात की गणना करने के लिये कि कोई विशेष माध्यम कितनी आसानी से संचालन करता है, इंजीनियर ऊष्म संचालकता का प्रयोग करते हैं, जिसे संचालकता कॉन्स्टैंट या संचालन गुणक (कोएफीशियेंट), k भी कहते हैं। ऊष्म संचालकता में k की परिभाषा है – ‘तापमान में भिन्नता (ΔT) [...] के कारण (t) समय में किसी स्थान (A) की सतह से सामान्य दिशा में किसी मोटाई (L) में से संचरित ताप की मात्रा, Q’. ऊष्म संचालकता एक पदार्थीय गुण है जो प्राथमिक तौर पर माध्यम की अवस्था, तापमान, घनत्व और आण्विक बाँडिंग पर निर्भर होता है।

ताप नली एक निष्क्रिय उपकरण है जिसका निर्माण इस तरह से किया जाता है कि जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि उसमें अत्यंत उच्च ऊष्म संचालकता है।

स्थिर-अवस्था का संचालन बनाम अस्थिर संचालन
  • स्थिर अवस्था का संचालनः यह संचालन का वह प्रकार है जो तब होता है जब संचालन करने वाले तापमान की भिन्नता स्थिर रहती है जिससे समतुल्य समय के बाद संचालक वस्तु में स्थानिक तापमानों का वितरण (तापमान का क्षेत्र) और परिवर्तित नहीं होता. उदा. कोई छड़ एक सिरे पर ठंडी और दूसरी ओर गर्म हो सकती है, लेकिन छड़ पर से गुजरने वाला तापमान की प्रवणता समय के साथ नहीं बदलती. छड़ के किसी दिये हुए भाग का तापमान स्थिर रहता है और यह तापमान ऊष्मा के संचार की दिशा के अनुरेख में परिवर्तित होता है।

    स्थिर अवस्था के संचालन में एक भाग में प्रवेश कर रहा ताप उससे बाहर निकल रहे ताप के बराबर होता है। स्थिर अवस्था के संचालन में सीधे प्रवाह के विद्युत संचालन के सभी नियम ‘उष्मा के प्रवाह’ पर लागू होते हैं। ऐसे मामलों में ‘ऊष्म प्रतिकूलताओं’ को विद्युत प्रतिकूलताओं के समान माना जा सकता है। तापमान वोल्टेज की भूमिका निभाता है और संचारित ताप विद्युत प्रवाह का समधर्मी है।

  • अस्थिर संचालन अस्थिर अवस्था में तापमान अधिक तीव्रता से गिरता या बढ़ता है जैसे जब कोई गर्म तांबे की गेंद कम तापमान वाले तेल में गिरा दी जाती है। यहां पर वस्तु के भीतर का तापमान क्षेत्र समय के अनुसार परिवर्तित होता है और वस्तु के भीतर के, समय के अनुसार इस स्थानिक तापमान परिवर्तन का विश्लेषण करना रूचिकर होता है। इस प्रकार के ताप संचालन को अस्थिर संचालन कहा जा सकता है। इन प्रणालियों का विश्लेषण अधिक जटिल होता है और (सरल आकारों को छोड़ कर) इसके लिये उपगमन सिद्धांतों के प्रयोग और/या कम्प्यूटर द्वारा सांख्यिक विश्लेषण की जरूरत पड़ती है। एक लोकप्रिय ग्राफिक विधि में हीस्लर चार्टों का प्रयोग किया जाता है।
सामूहिक प्रणाली विश्लेषण

जब कभी भी किसी वस्तु का भीतरी ताप संचालन उसकी परिसीमा के ताप संचालन से काफी तेजी से होता है तो सामूहिक प्रणाली विश्लेषण द्वारा अस्थिर संचालन का अंदाजा लगाया जा सकता है। यह उपगमन विधि अस्थिर संचालन प्रणाली (वस्तु के भीतर की) के एक पहलू को उचित रूप से घटा देती है (अर्थात्, यह मान लिया जाता है कि वस्तु के भीतर का तापमान पूर्णतया एक समान रहता है यद्यपि उसका परिमाण समय के साथ परिवर्तित हो सकता है।)

इस विधि में बियॉट नंबर नामक एक पद का गणना की जाती है जिसको किसी वस्तु की भिन्न तापमान के एक समान प्रक्षालन वाली सीमा पर होने वाले ताप संचालन के प्रति अवरोध और वस्तु के आंतरिक संचालक ताप अवरोध के अनुपात के रूप में परिभाषित किया जाता है। जब थर्मल प्रतिरोध गर्मी के उद्देश्य में स्थानांतरित करने के लिए प्रतिरोध गर्मी से भी कम की जा रही वस्तु के भीतर पूरी तरह से विसरित, कम से कम Biot संख्या 1. इस मामले में, छोटे के लिए भी विशेष रूप से Biot हैं संख्या है, जो वस्तु भीतर spatially वर्दी तापमान के सन्निकटन वस्तु किया जा सकता है शुरू करने के लिए उपयोग किया है, के बाद से कर सकते हैं यह मान लिया है कि गर्मी में तबादला कर ही वितरित किया uniformaly समय के लिए, कम करने के लिए कारण ऐसा करने के लिए प्रतिरोध के रूप में, प्रतिरोध के साथ तुलना करने के लिए ऑब्जेक्ट में प्रवेश गर्मी.

उपयोगी रूप से सही उपगमन और ताप संचार विश्लेषण के लिये बियॉट नंबर सामान्यतः 0.1 से कम होना चाहिये. सामूहिक प्रणाली उपगमन के गणितीय हल से न्यूटन का शीतलता का नियम प्राप्त होता है जिसका वर्णन नीचे किया गया है।

विश्लेषण की इस विधि का प्रयोग न्यायालयिक विज्ञान में मनुष्यों की मृत्यु के समय का विश्लेषण करने के लिये किया जाता है। साथ ही इसका प्रयोग आराम के स्तर के परिवेश में परिवर्तनों के लगभग क्षणमात्र के प्रभावों को निश्चित करने के लिये HVAC (हीटिंग, वेंटिलेटिंग एंड एयर-कंडीशनिंग, या इमारत का जलवायु नियंत्रण) में किया जाता है।[1]

संवहन[संपादित करें]


किसी पदार्थ के एक भाग से दूसरे में अणुओं के जाने से हुए ताप ऊर्जा के संचार को संवाहन कहते हैं। तरल की गति के बढ़ने के साथ-साथ संवाहित ताप संचार भी बढ़ता है। द्रव के परिमाण में गति की उपस्थिति ठोस सतह और तरल के बीच ताप के संचार को बढ़ावा देती है।[2]

संवाहित ताप संचार के दो प्रकार होते हैं:

  • प्राकृतिक संवाहनः जब तरल की गति तरल के तापमान में परिवर्तनों के कारण हुए घनत्व के बदलावों के परिणाम स्वरूप उत्पन्न उत्प्लावन बलों के कारण होती है। उदा.किसी बाह्य स्रोत की अनुपस्थिति में, जब तरल का पिंड किसी गर्म सतह से संपर्क में आता है, तो उसके अणु अलग होकर फैल जाते हैं जिससे तरल के पिंड का घनत्व कम हो जाता है। जब ऐसा होता है, तब तरल ऊर्ध्व या क्षितिज के समानांतर विस्थापित हो जाता है जबकि अधिक ठंडा तरल अधिक घना हो जाता है और तरल डूब जाता है। इस तरह से अधिक गर्म आयतन उस तरल के अधिक ठंडे आयतन की ओर ताप का संचार करता है।[3]
  • बलपूर्वक संवाहनः जब कोई तरल किसी बाह्य स्रोत जैसे पंखों या पम्पों द्वारा सतह पर बलपूर्वक प्रवाहित किया जाता है जिससे कृत्रिम संवाहक धारा उत्पन्न होती है।[4]

संवाहन को आंतरिक और बाह्य प्रवाह के आधार पर भी वर्गीकृत किया जा सकता है। आंतर्क प्रवाह तब होता है जब तरल किसी ठोस दायरे में बंद हो जैसे किसी पाइप में होने वाला प्रवाह. बाह्य प्रवाह तब होता है जब कोई तरल बिना किसी ठोस सतह से संपर्क में आए अनिश्चित काल तक फैलता जाता है। ये दोनों संवाहन, चाहे वे प्राकृतिक हों या बलात्, आंतरिक या बाह्य हो सकते हैं क्योंकि वे एक दूसरे से स्वतंत्र होते हैं।[उद्धरण चाहिए]

संवाहित ताप संचार की दर दी जाती है:[5]

A ताप संचार कीसतह का क्षेत्रफल है। T s सतह का तापमान है और T b बल्क तापमान पर तरल का तापमान है। लेकिन T b स्थिति के अनुसार बदलता रहता है और सतह से ‘बहुत दूर’ स्थित तरल का तापमान है। h स्थिर ताप संचार गुणक है जो तरल के भौतिक गुणों जैसे तापमान और भौतिक स्थिति जिसमें संवाहन होता है, पर निर्भर होता है। इसलिये हर विश्लेषित प्रणाली के लिये ताप संचार गुणक प्रयोग द्वारा प्राप्त किया जाना चाहिये. आदर्श संरचनाओं और तरलों के लियेताप संचार गुणकों की गणना करने के लिये कई सूत्र और सहसंबंध उपलब्ध हैं। पतली पर्त के प्रवाहों के लिये ताप संचार गुणक अशांत प्रवाहों की अपेक्षा कम होता है; ऐसा अशांत प्रवाहों के ताप संचार सतह पर तरल की अधिक पतली निश्चल पर्त होने के कारण होता है।[6]

विकिरण[संपादित करें]

ताप ऊर्जा के किसी रिक्त स्थान में संचार को विकिरण कहते हैं। परम शून्य के ऊपर के तापमान वाली सभी वस्तुएं उनकी प्रवाहकता गुणा यदि वे कोई काले रंग की वस्तु हों तो उनमें से ऊर्जा के विकिरित होने की दर के बराबर ऊर्जा का विकिरण करती हैं। विकिरण के लिये किसी माध्यम की जरूरत नहीं है क्योंकि इसका संचार विद्युतचुम्बकीय तरंगों द्वारा होता है; विकिरण पूर्ण निर्वात में भी कार्य करता है। सूर्य की ऊर्जा पृथ्वी को गर्म करने के पहले अंतरिक्ष के निर्वात में से गुजरती है।

सभी पिंडों की परावर्तकता और प्रवाहकता दोनों ही तरंगदैर्घ्य पर निर्भर करती हैं। प्लैंक्स लॉ ऑफ ब्लैक-बॉडी रेडियेशन के अनुसार तापमान तीव्रता की सीमा तक विद्युतचुम्बकीय विकिरण के तरंगदैर्ध्य के वितरण को निश्चित करता है। किसी भी पिंड के लिये परावर्तकता भीतर आ रहे विद्युतचुम्बकीय विकिरण के तरंगदैर्घ्य के वितरण और इसलिये विकिरण के स्रोत के तापमान पर निर्भर करती है। प्रवाहकता तरंगदैर्घ्य के वितरण पर और इसलिये पिंड के तापमान पर निर्भर करती है। उदा.ताज़ी बर्फ जो दिखाई देन् वाले प्रकाश के लिये उच्च परावर्ती होती है (लगभग 0.90 परावर्तकता), करीब 0.5 माइक्रोमीटर के शीर्ष ऊर्जा तरंगदैर्घ्य वाले सूर्यप्रकाश को परावर्तित करने के कारण सफेद दिखती है। परंतु करीब -5 °C तापमान और 12 माइक्रोमीटर के शीर्ष ऊर्जा तरंगदैर्घ्य पर उसकी प्रवाहकता 0.99 होती है।

गैसें तरंगदैर्घ्य के विशिष्ट प्रतिमानों में, जो हर गैस के लिये भिन्न होते हैं, ऊर्जा का अवशोषण और उत्सर्जन करती हैं।

दिखने वाला प्रकाश विद्युतचुम्बकीय विकिरण का एक और प्रकार है जो इन्फ्रारेड विकिरण की अपेक्षा कम तरंगदैर्घ्य (और इसलिये अधिक आवृति) वाला होता है। दिखने वाले प्रकाश और परम्परागत तापमानों की वस्तुओं से होने वाले विकिरण में आवृति और तरंगदैर्घ्य में करीब 20 के गुणक की भिन्नता होती है; दोनों प्रकार के उत्सर्जन केवल विद्युतचुम्बकीय विकिरण के विभिन्न "रंग" होते हैं।

वस्त्र और भवनों की सतहें तथा विकिरित संचार[संपादित करें]

हल्के रंग और सफेद वस्तुएं तथा धात्विक पदार्थ रोशनी वाले प्रकाश का अवशोषण कम करते हैं और इसलिये कम गर्म होते हैं, लेकिन अन्यथा रोजमर्रा के तापमानों पर किसी वस्तु और उसके परिवेश के बीच ताप संचार पर रंग का कोई विशेष प्रभाव नहीं होता है, क्योंकि प्रबल उत्सर्जित तरंगदैर्घ्य दिखने वाले वर्णक्रम के पास नहीं होते हैं बल्कि कहीं दूर इन्फ्रारेड में होते हैं। इन तरंगदैर्ध्यों पर मौजूद उत्सर्गताओं का दिखने वाली उत्सर्जनताओं (दिखने वाले रंग) से कोई संबंध नहीं होता; सुदूर इन्फ्रारेड में अधिकतर वस्तुओं में उच्च उत्सर्जनताएं होती हैं। अतः, सूर्य के प्रकाश को छोड़कर, कपड़ों के रंग का गर्मी पर कोई असर नहीं पड़ता; इसी तरह, मकानों पर किये गए पेंट के रंग से कोई अंतर नहीं पड़ता है सिवाय उस भाग के, जिसपर सूर्य की रोशनी पड़ती है। इसका मुख्य अपवाद है, चमकदार धात्विक सतहें जिनमें दर्शनीय तरंगदैर्ध्यों और सुदूर इन्फ्रारेड, दोनों में कम उत्सर्जनताएं होती हैं। ऐसी सतहें दोनों दिशाओं में ताप संचार कम करने के लिये प्रयोग में लाई जा सकती हैं; अंतरिक्षयान को पृथक्करित करने के लिये प्रयुक्त बहु-पर्तीय पृथक्कारक इसका एक उदाहरण है। मकानों में लगाई जाने वाली कम-उत्सर्जनता वाली खिड़कियां अधिक जटिल तकनीक से बनी होती हैं क्योंकि उनमें दर्शनीय रोशनी में पारदर्शक रहते हुए गर्म तरंगदैर्ध्यों पर कम उत्सर्जनता होनी पड़ती है।

भौतिक संचार[संपादित करें]

अंततः ताप को गर्म या ठंडी वस्तु को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भौतिक संचार करके प्रवाहित करना संभव है। यह किसी बोतल में गर्म पानी डालकर आपके बिस्तर को गर्म करने या हिमखंड के बहने से समुद्र की तरंगों के बदलने जितना आसान है।

न्यूटन का शीतलीकरण का नियम[संपादित करें]

एक संबंधित सिद्धांत, न्यूटन के शीतलीकरण के नियम के अनुसार, किसी भी वस्तु के ताप के ह्रास की दर उस वस्तु और उसके परिवेश के तापमानों के बीच अंतर के अनुपात में होती है . यह नियम विशिष्ट समीकरण के रूप में दिया गया है:

जूल्स में ताप ऊर्जा
ताप संचार गुणक
संचरित हो रहे ताप के सतह का क्षेत्रफल
वस्तु की सतह और भीतर का तापमान (क्यौंकि इस उपगमन में ये समान होते हैं)
वातावरण का तापमान
वातावरण और वस्तु के बीच का समय पर निर्भर ताप गुणक है।

ताप ह्रास सूत्र का यह प्रकार कभी-कभी अधिक सही नहीं होता; बिल्कुल सही सूत्र के लिये असमरूप या कम संचालक माध्यम में (क्षणिक) ताप संचार समीकरण पर आधारित ताप प्रवाह के विश्लेषण की जरूरत होती है। लगातार क्रमिकताओं का एक अनुरूप फोरियर का नियम है।

वस्तु की सतह संचालकता को आंतरिक ताप संचालकता से संबंधित करने वाले बयॉट नंबर की सहमति के अनुसार निम्न सरलीकरण (पिंड प्रणाली ताप विश्लेषण) का प्रयोग किया जा सकता है। इस अनुपात के अनुसार, यह पता चलता है कि वस्तु में अपेक्षाकृत अधिक आंतरिक संचालकता होती है, जिससे (काफी हद तक) सारी वस्तु एक समान तापमान पर बनी रहती है, हालांकि वातावरण के द्वारा बाहर से उसे ठंडा करने से यह तापमान बदलता रहता है। ऐसा होने पर, ये परिस्थितियां वस्तु के तापमान में समय के साथ घातांकीय ह्रास उत्पन्न करती हैं।

ऐसी स्थिति में, सारे पिंड को एक पिंडित कैपेसिटेंस ताप संग्राहक मान लिया जाता है, जिसकी कुल ताप मात्रा सरल कुल ताप क्षमता C और पिंड के तापमान T से आनुपातिक होती है, या Q = C T . ताप क्षमता C कि परिभाषा से संबंध C = dQ/dT प्राप्त होता है। इस समीकरण को समय के सन्दर्भ में विश्लेषित करने से निम्न पहचान मिलती है: dQ/dt = C (dT/dt) . इस व्यंजना को ऊपर इस खंड के प्रारंभ में दिये गए पहले समीकरण में dQ/dt के स्थान पर प्रयोग में लाया जा सकता है। तब, यदि t समय पर ऐसे किसी पिंड का तापमान T(t) है और पिंड के परिवेश के वातावरण का तापमान Tenv है:

तो:

r = hA/C प्रणाली का एक सकारात्मक कॉन्स्टैंट विशिष्ट गुण है जो 1/time की इकाई में होना चाहिये और इसलिये कभी-कभी विशिष्ट समय कॉन्स्टैंट t0 के रूप में व्यक्त किया जाता है: r = 1/t0 = ΔT/[dT(t)/dt ] . इस तरह ताप प्रणालियों में, t0 = C/hA .(किसी प्रणाली की कुल ताप क्षमता C को उसकी पिंड-विशिष्ट ताप क्षमता cp गुणा उसके भार m, के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है, जिससे समय कॉन्स्टैंट t0 भी mcp/hA के रूप में व्यक्त किया जाता है।)

इस प्रकार उपर्युक्त समीकरण उपयोगी रूप से इस तरह से भी लिखा जा सकता है:

सीमा की दशाओं के समावेश और विस्थापन के आदर्श तरीकों द्वारा इस समीकरण का हल यह है:

यहाँ, टी () टी टी में समय तापमान है और में शून्य समय, t = 0 या टी तापमान (0) प्रारंभिक है।

"अगर"

के रूप में परिभाषित है: जहां 0 तापमान अंतर पर प्रारंभिक समय है,

तब न्यूटोनियन समाधान के रूप में लिखा है:

उपयोगः उदा.सरलीकृत मौसम मॉडलों में वायुमंडल के तापमानों को बनाए रखने के लिये पूर्ण (और महंगे) विकिरण कोड के स्थान पर न्यूटनीय शीतलीकरण का प्रयोग किया जा सकता है।

तापीय सर्किटों के द्वारा एक आयामीय प्रयोग[संपादित करें]

ताप संचार प्रयोगों में एक अत्यंत उपयोगी सिद्धांत है, ताप संचार का ताप सर्किटों द्वारा प्रतिनिधित्व. ताप सर्किट ताप के प्रवाह के प्रतिरोध का इस तरह से प्रतिनिधित्व है जैसे वह कोई विद्युत रेसिस्टर हो. संचार किया गया ताप विद्युत-तरंग के अनुरूप और ताप प्रतिरोध विद्युत रेसिस्टर के अनुरूप होता है। ताप संचार के विभिन्न प्रकारों के लिये ताप प्रतिरोध की गणना विकसित समीकरणों के डिनामिनेटरों के रूप में की जाती है। ताप संचार के विभिन्न प्रकारों के तापीय प्रतिरोधों का प्रयोग ताप संचार के संयुक्त प्रकारों के विश्लेषण में किया जाता है। इससे पहले बताए गए तीन ताप संचार के प्रकार और उनके तापीय प्रतिरोधों का विवरण देने वाले समीकरण नीचे की सूची में संक्षिप्त में दिये गए हैं:

ताप संचार के विभिन्न प्रकार और उनके ताप प्रतिरोधों के लिये समीकरण
स्थानांतरण मोड हीट स्थानांतरण की राशि थर्मल प्रतिरोध
प्रवाहकत्त्व
संवाहन
विकिरण

जहां कहीं भी विभिन्न माध्यमों में से ताप का संचार होता है (उदा.के लिये कॉम्पोज़ीट में से), अनुरूप प्रतिरोध कॉम्पोज़ीट की रचना करने वाले तत्वों के प्रतिरोधों के योग के बराबर होता है। संभवतया विभिन्न ताप संचार प्रकारों में कुल प्रतिरोध विभिन्न प्रकारों के प्रतिरोधों के योग के बराबर होता है। ताप संचार सिद्धांत के अनुसार, किसी भी माध्यम के जरिये संचारित ताप तापमान में परिवर्तन और माध्यम के ताप प्रतिरोध का भागफल होता है। उदाहरण के लिये, अनुप्रस्थ काट A वाली किसी संश्लिष्ट दीवाल को लें. यह संश्लिष्ट तापीय गुणांक k1 के एक लंबे सीमेंट प्लास्टर L1 और तापीय गुणांक k2 के एक लंबे कागज से ढंके फाइबर ग्लास L2 से बना होता है। दीवाल की बांई सतह Ti पर है और संवाहक गुणक hi वाली हवा के संपर्क में है। दीवाल की दायीं सतह To पर है और ho संवाहक गुणक वाली हवा के संपर्क में है।

ताप प्रतिरोध सिद्धांत के अनुसार संश्लिष्ट में से होने वाला ताप प्रवाह निम्न प्रकार है:

जहां

इंसुलेशन और विकिरक अवरोध[संपादित करें]

ताप इंसुलेटर संचालन, संवाहन या दोनों को सीमित करके ताप के प्रवाह को कम करने के लिये विशेष रूप से बनाई गई वस्तुएं हैं। विकिरक अवरोध विकिरण को परावर्तित करने वाली वस्तुएं हैं और इसलिये विकिरक स्रोतों से ताप के प्रवाह को घटाती हैं। अच्छे इंसुलेटरों का अच्छा विकिरण अवरोधक होना जरूरी नहीं है और न ही इसका विलोम सत्य है। उदा. धातु उत्तम परावर्तक और कमजोर इंसुलेटर है।

इंसुलेटर के प्रभाव का संकेत उसकी R- (प्रतिरोध) value से मिलता है। किसी भी पदार्थ की R-value संवाहक गुणक (k) गुणा इंसुलेटर की मोटाई (d) का उल्टा होता है। प्रतिरोध की इकाईयां SI इकाईयों में हैं: (K•m²/W)

एक सामान्य इंसुलेशन वस्तु, कठोर फाइबरग्लास की R-value 4 प्रति इंच है, जबकि एक कमजोर इंसुलेटर, उंडेले गए कांक्रीट की R-value 0.08 प्रति इंच होती है।[7]

किसी विकिरण अवरोधक का प्रभाव का संकेत उसकी परावर्तकता से मिलता है, जो परावर्तित विकिरण का एक भाग होता है। उच्च परावर्तकता वाली वस्तु में (समान तरंगदैर्घ्य पर) कम उत्सर्गकता होती है या इसका विलोम सत्य होता है (किसी विशिष्ट तरंगदैर्घ्य पर, परावर्तकता =1 - उत्सर्गकता). किसी आदर्श विकिरण अवरोधक की परावर्तकता 1 होती है और इसलिये वह भीतर आ रहे विकिरण के 100% को परावर्तित कर सकता है। वैक्यूम बोतलों (डीवार्स) को ऐसा ही बनाने के लिये उनमें चांदी लगाई जाती है। अंतरिक्ष के निर्वात में, उपग्रहों में बहु-पर्तीय इंसुलेशन का प्रयोग किया जाता है जिसमें अल्यूमिनियमीकृत माइलार की कई पर्तें होती हैं जो विकिरित ताप संचार को बहुत कम कर देती हैं और उपग्रह के तापमान को नियंत्रित करती हैं।

क्रिटिकल इंसुलेशन मोटाई[संपादित करें]

निम्न ताप संचालकता (k) वाले पदार्थ ताप के बहाव को कम करते हैं। K का परिमाण जितना कम होता है, उससे संबंधित ताप प्रतिरोध (R) का परिमाण उतना ही बड़ा होता है।
ताप संचालकता की इकाइयां W•m−1•K−1 (वाट प्रति मीटर प्रति केल्विन) हैं, इसलिये इन्सुलेशन (x मीटर) की बढ़ती चौड़ाई k टर्म को घटाती है और प्रतिरोध को बढ़ाती है।

यह तर्कानुसार सही है क्योंकि बढ़े हुए संचालन पथ (x) के साथ बढ़ा हुआ प्रतिरोध उत्पन्न होता है।

लेकिन इंसुलेशन की इस पर्त को जोड़ने पर सतह का क्षेत्रफल और इसलिये ताप संवाहक क्षेत्रफल (A) बढ़ सकता है।

इसका एक उदाहरण बेलनाकार पाइप है:

  • जैसै-जैसे इंसुलेशन अधिक मोटा होता है, उसका बाह्य अर्धव्यास बढ़ता है और इसलिये सतह का क्षेत्रफल भी बढ़ता है।
  • जिस बिंदु पर बढ़ती हुई इंसुलेशन की मोटाई का अतिरिक्त प्रतिरोध सतह के क्षेत्रफल के प्रभाव से कम हो जाता है, उसे क्रिटिकल इंसुलेशन मोटाई कहते हैं। सरल बेलनाकार पाइपों में:[8]

बेलनाकार पाइप उदाहरण में इस घटना के ग्राफ के लिये देखें: External Link: C ritical Insulation Thickness diagram as at 26/03/09

ताप विनिमयक[संपादित करें]

ताप विनिमयक एक तरल से दूसरे तरल में प्रभावशाली ताप संचार के लिये बनाया गया उपकरण है, चाहे वे तरल किसी ठोस दीवार से अलग किये गए हों जिससे कि वे कभी मिश्रित न हों, या चाहे वे सीधे संपर्क में हों. ताप विनिमयक रेफ्रिजरेशन, एयरकंडीशनिंग, स्पेस हीटिंग, विद्युत उत्पादन और रसायनिक संसाधन में बड़े पैमाने पर प्रयोग में लाए जाते हैं। ताप विनिमयक का एक सामान्य उदाहरण है कार का रेडियेटर, जिसमें गर्म रेडियेटर तरल को रेडियेटर की सतह पर से हवा को प्रवाहित करके ठंडा किया जाता है।

ताप विनिमयक प्रवाहों के सामान्य प्रकारों में समानांतर प्रवाह, विपरीत प्रवाह और अनुप्रस्थ प्रवाह शामिल हैं। समानांतर प्रवाह में दोनों तरल ताप का संचार करते समय एक ही दिशा में प्रवाहित होते हैं; विपरीत प्रवाह में तरल एक दूसरे की विरूद्ध दिशाओं में बहते हैं और अनुप्रस्थ प्रवाह में तरल एक दूसरे के प्रति समकोण पर बहते हैं। ताप विनिमयक के लिये सामान्य रचनाओं में कवच और नली, दोहरा पाइप, एक्स्ट्रूडेड फिन्ड पाइप, स्पाइरल फिन पाइप, यू-ट्यूब और स्टैक्ड प्लेट शामिल हैं।

जब इंजीनियर ताप विनिमयक में सैद्धांतिक ताप संचार की गणना करते हैं तो उन्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि दो तरलों के मध्य ताप की भिन्नता स्थिति के अनुसार बदलती है। सरल प्रणालियों में इस वजह से ‘औसत’ तापमान के रूप में लॉग मीन टेम्परेचर डिफरेंस (LMTD) का अकसर प्रयोग किया जाता है। अधिक जटिल प्रणालियों में LMTD की जानकारी उपलब्ध नहीं होती और उसकी जगह संचार इकाइयों की संख्या (NTU) वाली विधि काम में ली जा सकती है।

क्वथन ताप संचार[संपादित करें]

उबलते हुए तरलों में ताप संचार जटिल लेकिन उसका काफी तकनीकी महत्त्व होता है। इसे सतह के तापमान की भिन्नता का ओर ताप के बहाव से संबंधित एक s के आकार की वक्र रेखा के रूप में दर्शाया जाता है। (देखिये, से के & नेडरमैन ‘फ्लुइड मेकेनिक्स & ट्रांसफर प्रॉसेसेज़’, CUP, 1985, पृष्ठ529).

कम तापमानों पर क्वथन नहीं होता है और ताप संचार की दर सिंगल-फ़ेज़ क्रियाविधियों से नियंत्रित होती है। जब सतह का तापमान बढ़ता है तो स्थानीय क्वथन होता है और वाष्प बुलबुले केन्द्रित होते हैं, आसपास के ठंडे तरल में बढ़ते हैं और फूट जाते हैं। यह उपशीतलीकृत केंद्रीकृत क्वथन है और बहुत प्रभावशाली ताप संचार क्रियाविधि है। उच्च बुलबुला उत्पत्ति दरों पर बुलबुले हस्तक्षेप करने लगते हैं और ताप का प्रवाह सतह के तापमान के साथ तेजी से नहीं बढ़ पाता (यह केंद्रीकृत क्वथन DNB से हट कर है). फिर भी ऊंचे तापमानों पर अधिकतम ताप प्रवाह हो सकता है (क्रिटिकल हीट फ्लक्स). जिसके बाद होने वाले ताप संचार के ह्रास का अध्ययन आसान नहीं है लेकिन यह माना जाता है कि उसमें बारी-बारी से केंद्रीकृत और फिल्म क्वथन होता है। केंद्रीकृत क्वथन द्वारा हीटर की सतह पर गैस दशा के निर्माण (बुलबुले) के कारण ताप संचार को धीमा करने से, गैस दशा की ताप संचालकता द्रव दशा की ताप संचालकता से काफी कम होती है, इसलिये इसके परिणामस्वरूप एक प्रकार का "गैस ताप अवरोधक" बनता है।

इससे उच्च तापमानों पर, फिल्म क्वथन की द्रवप्रवैगिकी के अनुसार शांत स्थिति उत्पन्न होती है। स्थिर वाष्प पर्तों पर से जाने वाले ताप प्रवाह निचले स्तर पर होते हैं लेकिन तापमान के साथ वे धीरे-धीरे उठते हैं। तरल और सतह के बीच देखा गया कोई भी संपर्क ताज़ी वाष्प पर्त का अत्यंत तेजी से केंद्रीकरण कर देता है। (‘स्वतः केंद्रीकरण’)

संघनन ताप संचार[संपादित करें]

संघनन तब होता है जब वाष्प ठंडी हो जाती है और द्रव में परिवर्तित हो जाती है। क्वथन के समान ही, संघनन ताप संचार का उद्योग में बड़ा महत्त्व है। संघनन के समय वाष्पीकरण की छिपा हुआ ताप बाहर निकल आना चाहिये. इस ताप की मात्रा उतनी ही होती है जितनी उसी तरल दबाव पर वाष्पीकरण के समय अवशोषित हुई थी।

संघनन के कई प्रकार हैं:

  • • समरूपी संघनन (जैसे कोहरे के बनने के समय)
  • • उपशीतलित द्रव से सीधे संपर्क द्वारा संघनन
  • • ऊष्मा विनिमयक की शीतलीकरण भित्ति से सीधे संपर्क द्वारा संघनन-यह उद्योगों में सामान्यतः प्रयुक्त तरीका है:
    • o पर्तानुसार संघनन (जब उपशीतलित सतह पर द्रव की पर्त बन जाती है, साधारणतः ऐसा तब होता है जब द्रव सतह को गीला करता है).
    • o बूंदानुसार संघनन (जब उपशीतलित सतह पर द्रव की बूंदें बन जाती हैं, ऐसा तब होता है जब द्रव सतह को गीला नहीं करता). बूंदानुसार संघनन विश्वसनीय रूप से बनाए रखना कठिन होता है;इसलिये, औद्योगिक उपकरणों को सामान्यतः पर्तानुसार संघनन विधि से काम करने की दृष्टि से बनाया जाता है।

शिक्षा में ताप संचार[संपादित करें]

आदर्श रूप से ताप संचार का अध्ययन जनरल केमिकल इंजीनियरिंग या मेकेनिकल इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम में किया जाता है। ताप संचार का कोर्स करने के पहले ऊष्मप्रवैगिकी का अध्ययन आवश्यक है क्योंकि ताप संचार की क्रियाविधि को समझने के लिये ऊष्मप्रवैगिकी के नियमों की जानकारी होना जरूरी है। ताप संचार से संबंधित अन्य कोर्सों में ऊर्जा रूपांतरण,ऊष्मतरल और पिंड संचार शामिल हैं।

ताप संचार विधियों का प्रयोग निम्न विषयों में किया जाता है:

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. हीट स्थानांतरण - युग्नस अ सेंगल द्वारा एक व्यावहारिक दृष्टिकोण
  2. युग्नस ए सेंगल (2003), "हीट स्थानांतरण-एक व्यावहारिक दृष्टिकोण" एड 2. प्रकाशक मैकग्राव हिल व्यावसायिक, ISBN 0-07-245893-3, 9780072458930 द्वारा पृष्ठ26 गूगल पुस्तक खोज. 20-04-09 को पुनःप्राप्त
  3. http://biocab.org/Heat_Transfer.html Archived 2010-08-21 at the वेबैक मशीन जीवविज्ञान मंत्रिमंडल संगठन, अप्रैल 2006, "हीट स्थानांतरण", 20/04/09 को पुनःप्राप्त.
  4. http://www.engineersedge.com/heat_transfer/convection.htm Archived 2018-11-18 at the वेबैक मशीन इंजीनियर्स एड्ज, 2009, "संवहन गर्मी हस्तांतरण", 20/04/09 को पुनःप्राप्त.
  5. लुई सी. बर्मेसिस्टर, (1993) "संवहनी हीट स्थानांतरण", 2 एड. प्रकाशक विले-इंटरसाइंस, पृष्ठ 107 ISBN 0-471-57709-X, 9780471577096, गूगल पुस्तक खोज. 20-03-09 को पुनःप्राप्त.
  6. http://www.engineersedge.com/heat_transfer/convection.htm Archived 2018-11-18 at the वेबैक मशीन "संवहन गर्मी हस्तांतरण", इंजीनियर्स एड्ज, 2009, 20/03/09 को पुनःप्राप्त.
  7. दो वेबसाइटें: ई स्टार और कोलोरैडो एनर्जी
  8. http://mechatronics.atilim.edu.tr/courses/mece310/ch9mechatronics.ppt Archived 2011-04-10 at the वेबैक मशीन. डॉ॰ सज़िये बालकु: 26/03/09 पर गंभीर रूप में इन्सुलेशन मोटाई सहित नोट्स

आगे पढ़ें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]