सत्यम कम्प्यूटर सर्विसेज़

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सत्यम कम्प्यूटर सर्विसेज़
प्रकार निजी कम्पनी
उद्योग सूचना प्रौद्योगिकी
स्थापना १९६६ में रिलायंस कॉमर्शियल कार्पोरेशन के रूप में
मुख्यालय भारत के हैदराबाद में
प्रमुख व्यक्ति किरण कार्निक, अध्यक्ष
राजस्व २.१ अरब $ (वास्तविक आँकडे़ अज्ञात)
कर्मचारी ४४०००
वेबसाइट http://satyam.com/

सत्यम कम्प्युटर सर्विसिस लि एक परामर्शदाता और सूचना प्रौद्योगिकी सेवाओं की कम्पनी है, जो हैदराबाद, भारत में स्थित है।

समीक्षा[संपादित करें]

इसके संस्थापक बी॰ रामलिंग राजू[1] है। यह कम्पनी विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित सूचना प्रौद्योगिकी सेवाएँ प्रदान करती है और यह न्युयार्क स्टॉक एक्स्चेंज और यूरोनैक्स्ट में सूचीबद्द है।

सत्यम का नेटवर्क ६७ देशों और छः महाद्वीपों में फैला हुआ है। कम्पनी में लगभग ४०,००० आईटी व्यवसायी कार्यरत हैं और इसके विकास केन्द्र भारत, अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त अरब अमीरात, कनाडा, हंगरी, सिंगापुर, मलेशिया, चीन, जापान, मिस्र और ऑस्ट्रेलिया में फैले हैं। यह लगभग ६५४ कम्पनीयों को सूप्रौ सेवाएँ प्रदान करती है, जिनमें से १८५ फॉर्च्यून ५०० में भी हैं। सत्यम की लगभग ५० कम्पनीयों से सामरिक तकनीकी और विपणन संबंधतता है। हैदराबाद के अतिरिक्त, इसके विकास केन्द्र भारत के इस नगरों में भी हैं - बंगलोर, चेन्नई, पुणे, मुम्बई, नागपुर, दिल्ली, कोलकाता, भुवनेश्वर और विशाखापट्टनम

सन् २००८ के अन्त में यह कम्पनी तब प्रकाश में आई जब खातों में हेराफेरी करने के अपराध में इस कम्पनी के मालिकों को पकड़ा गया और यह कम्पनी कुख्यात हो गई।[2] कभी अमेरिकी कंपनियों के लिए चुनौती प्रस्तुत करने वाली आईटी कंपनी सत्यम आज पूरी दुनिया के लिए खलनायक बन चुकि है। इसने करोड़ों लोगों की आशाओं पर पानी फेर दिया है।

इतिहास[संपादित करें]

एक अमेरिकी विश्वविद्यालय से प्रबंधन में स्नातक की डिग्री लेने वाले रामलिंग राजू ने अमेरिकी कुशल कर्मियों की नींद हराम कर दी थी। उन्होंने उनके काम को हथिया लिया और वो काम भारतीय कर्मियों तक पहुंचाया और विजन-२०२० के रोल मॉडल बन गए। आम भारतीय को मोटे वेतन और आरामपसंद जीवन का सपना दिखाया। उनकी कंपनी सत्यम में नौकरी पाने वाले अपने आपको बड़ा भाग्यशाली समझते थे। सत्यम से जुड़ने वाले व्यक्ति की सामाजिक स्थिति स्वयं बढ़ जाती थी।

१९८७ से यात्रा आरंभ करने के बाद सत्यम शीघ्र ही देश की चौथी सबसे बड़ी आईटी कंपनी बन गई। इस प्रगति से दुनियाभर के आईटी दिग्गजरों की आंखें चौंधिया गई और लोग सत्यम का गुणगान करने लगे। लेकिन यह सब बाद में एक छलावा सिद्ध हुआ जब यह पाया गया की कम्पनी के मालिक रामालिंगा राजू ने कम्पनी के लाभ को वर्षों तक बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत किया था।

सत्यम का घोटाला[संपादित करें]

रामलिंगा राजू द्वारा कम्पनी के लाभ को प्रतिवर्ष बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत किया जाता। लेकिन इस प्रगति का राज ७ जनवरी २००९ को लोगों के सामने आ गया, जब कंपनी के संस्थापक और चैयरमैन राजू ने अपना पद परित्याग कर दिया। निदेशकमंडल और सेबी को लिखे अपने पत्र में उन्होंने लिखा कि वर्षों से कंपनी की वित्तीय स्थिति खराब चल रही है। बाजार में कंपनी की प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए वर्ष प्रति वर्ष उन्होंने कंपनी को लाभ में दिखाया। जिसके लिए कंपनी के खातों में हेर-फेर की गई। उधर, कंपनी के शेयर में प्रोमोटरों की भागीदारी लगातार घटती चली गई। जिसके कारण कंपनी का राज खुलने का खतरा पैदा हो गया। और इससे बचने के लिए उन्होंने अपने पुत्र की स्वामित्व वाली कंपनी मेटास के अधिग्रहण का निर्णय लिया। उन्होंने कहा कि सत्यम को संकट से उबारने के लिए उन्होंने हरसंभव प्रयास किया, लेकिन उनके तमाम प्रयासों के बावजूद सत्यम की स्थिति लगातार बिगड़ती चली गई। राजू ने कहा, "यह बाघ की सवारी करने जैसा है, यह जाने बिना कि उसका आहार बनने से कैसे बचा जाय"।

उन्होंने लिखा कि वो दोषी हँ और स्वयं को कानून के हवाले करने के लिए तैयार हैं और अब वो हर परिणाम भुगतने के लिए तैयार हैं। इसके बाद जो कुछ हुआ सबके सामने है।

सत्यम के निदेशकमंडल और सेबी को इस आशय का पत्र लिखते हुए उन्होंने अपना पद परित्याग कर दिया। जिस समय उन्होंने अपने पद परित्याग किया, उस समय (७ जनवरी २००९ समय -११.३० प्रातः) सत्यम के एक शेयर का मूल्य १८८ रू था। लेकिन शाम तक इसका मूल्य कीमत घटकर मात्र चालीस रू रह गया था। दूसरे दिन यह मूल्य मात्र ६.२५ पैसे के न्यूनतम स्तर पर आ गया। इससे कंपनी में निवेशकों को लगभग १०० अरब रू की हानि हुई। कंपनी की स्थिति अब सबके सामने है। कंपनी पर से निवेशकों का भरोसा उठ गया। उनके कर्मचारियों को सड़क पर आने का डर सताने लगा है। उधर, विप्रो और इंफोसिस जैसे कंपनियों के खातों का हिसाब रखने वाली संस्था केपीएमजी का कहना है कि कंपनी में हुए इस घोटाले के लिए अकेले रामलिंग राजू उत्तरदायी नहीं हैं, कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रिचर्य रेकी ने कहा कि यह सब तर्क से परे है। कोई नहीं कह सकता है कि इस पत्र में जो कुछ लिखा गया है, वह सब का सब सही ही है। अभी इस बात पर भरोसा करना सही नहीं होगा कि जो कुछ भी हुआ उसके लिए अकेले राजू उत्तरदायी हैं। बल्कि खातों के संचालन से जुड़े तमाम लोगों को सामने लाने की आवश्यकता है।

घोटाले का खुलासा[संपादित करें]

दरअसल कंपनी के साथ परेशानी उस समय आरंभ हुई जब १६ दिसम्बर २००८ को सत्यम कंप्यूटर्स के निदेशकमंडल ने एक बैठक बुलाई और बैठक में रामलिंग राजू के बेटों की स्वामित्व वाली कंपनी मेटास इंफ्रास्ट्रेक्चर और मेटास प्रोपर्टीज के अधिग्रहण का प्रस्ताव पारित किया। इस अधिग्रहण के पीछे तर्क दिया गया कि मंदी के इस दौर में वर्तमान विकासदर बनाए रखना असंभव है।

विदेशी मुद्राओं की तुलना भारतीय मुद्रा में आई गिरावट से भारी दबाव पैदा हुआ। बाजार के जिन क्षेत्रों में अब तक विकास देखा जा रहा था, वो मंदी की मार से बुरी तरह प्रभावित थे। साथ ही, आउट-सोर्सिंग को लेकर अमेरिकी सरकार ने जो रवैया अपना रखा है, उससे आने वाले समय में परेशानी और भी बढ़ सकती है। ऐसे में आईटी के अलावा आधारभूत ढांचा, ऊर्जा, आदि क्षेत्रों में निवेश करके कंपनी के विकास दर को बनाए रखा जा सकता है।

बैठक में बताया गया कि भारत अगले पांच वर्षों में अपने आधारभूत ढांचों के विकास पर पांच सौ अरब डॉलर, जबकि चीन साढ़े सात सौ अरब डॉलर खर्च करेगा। इस दृष्टि से आधारभूत ढांचा क्षेत्र में निवेश करना लाभकारी सिद्ध हो सकता है।

इन्हीं सब तर्कों के साथ सत्यम निदेशकमंडल ने ७९.१४१ अरब़ रूपयों में मेटास के अधिग्रहण का निर्णय लिया।

पहले ही मंदी की मार से जूझ रियल स्टेट में निवेश करना सत्यम के निवेशकों को स्वीकार नहीं था और उन्होंने सत्यम निदेशकमंडल मंडल के इस निर्णय का विरोध किया। इस बात से लोगों को आश्चर्य हुआ कि आखिर सत्यम ने रियल स्टेट क्षेत्र में कूदने का निर्णय क्यों लिया। निर्णय पर इस बात को लेकर भी आपत्ति थी कि आखिर सत्यम के चेयरमैन राजू के बेटे की कंपनी में ही निवेश का निर्णय क्यों लिया गया। इसका उत्तर राजू ने अपने पत्र में दिया कि सत्यम को तंगी से उबारने के लिए उन्होंने ऐसा किया। मेटास के अधिग्रहण से कंपनी को जो लाभ होता उससे वह अपने घाटे की भरपाई करती और मेटास की देनदारी से बाद में निपटती। लेकिन निवेशकों के विरोध ने सारा गुड़ गोबर कर दिया। और अधिग्रहण का निर्णय टालना पड़ा। पूरे मामले में किरकिरी झेल रहे राजू ने आखिरकार सच को सामने लाने का निर्णय किया। सच सामने आते ही सत्यम पर शिकंजा कसने लगा। सत्यम के चेयरमैन को जेल की हवा खानी पड़ी। सेबी ने सत्यम के शेयरों पर प्रतिबंध लगा दिया। उधर, न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में भी सत्यम के शेयरों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। सत्यम पर दर्जनों मामले दर्ज कराए गए। सरकार ने सत्यम के कामकाज की देखभाल के लिए तीन सदस्यीय समिति बना डाली। समिति ने अपना कामकाज भी आरंभ कर दिया। उधर, सत्यम के खातों की जांच का दायित्व एसएफआईओ (सीरियस फ्रॉड इन्वस्टीगेशन ऑफिस) को सौंप दिया गया है। विभाग को तीन महीने में प्रतिवेदन (रिपोर्ट) सौंपने को कहा गया है। यानी जब तक प्रतिवेदन आएगा सरकार लोकसभा चुनाव में पूरी तरह उलझी रहेगी। पूर प्रतिवेदन रिपोर्ट का क्या हश्र होना है, एक सामान्य प्रबुद्ध नागरिक अवश्य जानता है।

सरकार और सत्यम[संपादित करें]

केंद्र और राज्य में कांग्रेस की सरकार है और वह सत्यम और राजू को बचाने के लिए पूरी तरह खुलकर सामने आ गई है। लेकिन सच्चाई ये थी के सरकार को असल में कर्मचारियों के हितों की चिंता थी । यानी सरकार हर महीने ५.२ अरब रुपये के हिसाब से तीन महीने तक कर्मचारियों को वेतन देगी। आखिर सत्यम के उन कर्मचारियों की चिंता सरकार को क्यों सताने लगी जो कम से कम पचास हजार रुपये मासिक वेतन पाते रहे हैं। क्या इसलिए कि वो चैन का जीवन जीने के आदि हो चुके हैं और अब तंगी का जीवन नहीं जी सकते। कांग्रसी सरकार को बिहार में फंसे चालीस लाख लोंगों की चिंता क्यों नहीं सतायी तो पूरी तरह बर्बाद हो चुके हैं। उस समय १० अरब रुपये की घोषणा करने के लिए प्रधानमंत्री को हवाई सर्वेक्षण करना पड़ा, लालू और रामविलास से वोट के गणित सुलझाने पड़े और आज २० अरब रुपये देने में थोड़ी भी हिचक नहीं आ रही है।

भारतीय नागरिकों भी ये भी पता है कि सरकार ने उन पैसों पर भी कर लिया है, जिसे सत्यम ने कभी कमाया ही नहीं, आखिर, सरकार अब तक कहां सोती रही। उसे क्यों नहीं पता चला कि सत्यम के लाभ का चिट्ठा पूरी तरह झूठ का पुलिंदा है। वह और कब तक सोती रहेगी। आर्थिक विकास के आंकड़ों में वह जनता को कब तक ठगती रहेगी। वह उद्योग घरानों के खातों की क्यों नहीं जांच करवाती है। शायद सरकार भी जानती है कि वह जिन लोगों से जांच करवाएगी वो लोग अपनी क्षमता से कम और उपहारों से अधिक खुश होते हैं। जो बैंकर गरीब किसानों से ऋण वसूली के लिए हर हथकंडा अपनाने से नहीं चूकते वो सत्यम को वर्षों-वर्ष गलत इंट्री कैसे देते रहे। अब भी सुधरने का समय है। विकास के आंकड़ों से बाहर निकलकर ठोस धरातल पर कुछ करने की आवश्यकता है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. कोरकोरन, एलिज़ाबेथ (२००६). "बैक-ऑफ़िस चैरिटी" (PDF). फोर्ब्स. मूल से पुरालेखित 24 जून 2007. अभिगमन तिथि 6 मई 2009. नामालूम प्राचल |day= की उपेक्षा की गयी (मदद); नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद)सीएस1 रखरखाव: BOT: original-url status unknown (link)
  2. "सत्यम ७० अरब रूपये का असत्य". मूल से 18 फ़रवरी 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 मई 2009. Cite journal requires |journal= (मदद)