भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम

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उत्तरी कर्नाटक में वनवासियों के लिये वनवासी कल्याण आश्रम का विद्यालय
वनवासी कल्याण आश्रम का प्रतीक चिंह

अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम भारत के वनो मे बसने वाले ८ करोड वनवासियों के सर्वांगीण विकास हेतु कार्य में संलग्न संस्था है। आश्रम वनवासियों के विकास के लिये सूदूर जनजातीय गांवों के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिये तरह-तरह के कार्यक्रम चलाता रहता है। पूरे भारत में इसकी शाखाएँ हैं। इसका मुख्यालय जशपुरनगर छत्तीसगढ़, भारत में है। इसका ध्येयवाक्य है - "नगरवासी, ग्रामवासी, वनवासी : हम सभी हैं भारतवासी"

इतिहास[संपादित करें]

वनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना सन् १९५२ में बालासाहेब देशपाण्डे ने की थी।

प्रमुख कार्य[संपादित करें]

  • आर्थिक विकास
  • शिक्षा

शिक्षा प्रसार हेतु वनवासी कल्याण आश्रम भी सुदूर जनजाति क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के प्रयास कर रहा है। जैसे..

अनौपचारिक शिक्षा के प्रयास: बालवाड़ी, संस्कार केन्द्र, रात्री पाठशाला, एकल विद्यालय

औपचारिक शिक्षा: प्राथमिक शाला, माध्यमिक शाला

अन्य प्रयास: अभ्यासिका (ट्युशन क्लास), पुस्तकालय, वाचनालय ..

  • स्वास्थ्य

किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को अत्यंतीक पीड़ा देनेवाली बात यह है की वन पर्वतों में बसे गाँवों में यदि किसी बिमार व्यक्ति को दवाई अथवा उपचार की आवश्यकता है और वह उसके गाँव में यदि उपलब्ध नहीं है तो उसकी क्या स्थिति होगी ? तब उसे कई किलो मीटर दूर जाना अनिवार्य है। आरेाग्य सेवा सभी को उपलब्ध हो इस हेतु वनवासी कल्याण आश्रम जनजाति क्षेत्र में कार्यरत है। कहीं चिकित्सा केन्द्र तो कहीं छोटासा अस्पताल, कहीं चल चिकित्सालय (मोबाईल मेडिकल युनिट) तो कहीं आरोग्य रक्षक योजना जैसे विविध प्रयास चल रहे है। लाखों रोगियों को वर्ष भर में दवाईयाँ अथवा उपचार की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। इस हेतु नगरों से कई सेवाभावी चिकित्सक अपना मूल्यवान समय देकर सेवारत है। देश के कुछ राज्यों में पशुओं की चिकित्सा हेतु भी कम चल रहा है। वर्षाकाल जैसे समय आवागमन की प्रतिकूलता का विचार किये बीना छोटे-छोटे गाँवों में चिकित्सा शिविरों का आयोजन होता है। ऐसे वर्षभर में हज़ारों चिकित्सा शिविरों में लाखों वनवासी बन्धु लाभान्वित होते है।

  • संस्कार
  • संस्कृति रक्षा
  • वनवासी खेल

अपने वनवासी बन्धुओं में शारीरिक क्षमता एवं कौशल विपूल मात्रा में है। सुदूर गाँवों में जाना खेल प्रतिभाओं की शोध कर उन्हें प्रशिक्षण देकर अवसर प्रदान करना यह खेलकूद आयाम का महत्वपूर्ण कार्य है। आज कई वर्षों से इस खेलकूद के क्षेत्र में कार्यरत वनवासी कल्याण आश्रम ने अनेक उपलब्धियाँ पाई। खेल जगत को कई युवा खिलाड़ी मिले है।

प्रति चार वर्षां में एक बार राष्ट्रीय स्तर पर एक खेल प्रतियोगिता का आयोजन होता है। इसके पूर्व तहसील (ब्लाक) स्तर से लेकर जिला एवं प्रान्त स्तर पर भी प्रतियागिताओं का आयोजन होता है। सारे देश में हज़ारों, लाखों वनवासी युवा इसमें सहभागी होते है। प्रशिक्षण और खेलने का अवसर, दोनों प्राप्त हेाने के कारण प्रतिभा निखरती है। परिणामस्वरूप सुदूर छोटे छोटे गाँवे के खिलाड़ियों को आगे आने का अवसर मिलता है। प्रतिवर्ष वनवासी कल्याण आश्रम द्वारा तीरंदाजी और किसी एक खेल की प्रतियोगिता भी राष्ट्रीय स्तर पर होती है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]