नागेश्वर मंदिर, द्वारका

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नागेश्वर मंदिर, द्वारका
मन्दिर का चित्र
धर्म संबंधी जानकारी
सम्बद्धताहिन्दू धर्म
देवतानागेश्वर (शिव)
त्यौहारमहाशिवरात्रि
अवस्थिति जानकारी
अवस्थितिदेवभूमि द्वारका जिला
ज़िलादेवभूमि द्वारका
राज्यगुजरात
देशभारत
नागेश्वर मंदिर, द्वारका is located in गुजरात
नागेश्वर मंदिर, द्वारका
गुजरात में अवस्थिति
भौगोलिक निर्देशांक22°20′10.6″N 69°5′13.2″E / 22.336278°N 69.087000°E / 22.336278; 69.087000निर्देशांक: 22°20′10.6″N 69°5′13.2″E / 22.336278°N 69.087000°E / 22.336278; 69.087000
वास्तु विवरण
प्रकारहिन्दू वास्तुकला

नागेश्वर मन्दिर एक प्रसिद्द मन्दिर है जो भगवान शिव को समर्पित है। श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का भगवन शिव के बारह ज्योतिर्लिंग में दसवां स्थान है। यह ज्योतिर्लिंग प्रमाणिक रूप से कहाँ स्थित है, यह विद्वानों के दावे - प्रतिदावे चलते रहने के कारण कहना आसान नहीं है, फिर भी गुजरात राज्य में गोमती द्वारका के बीच दारूकावन क्षेत्र में इसके प्रामाणिक स्थान होने की मान्यता अधिक है। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग होने के दावे जिन दी अन्य स्थानों पर किए जाते हैं, उनमें से एक आंध्रप्रदेश में अवढा गांव में मन जाता है। यह अवढा गांव महाराष्ट्र राज्य के परभनी क्षेत्र से होकर हिंगोली जाते हुए पड़ता है। दूसरा स्थान उत्तराखंड राज्य में अल्मोड़ा से सत्रह मील दूर जोगेश्वर नामक तीर्थ बताया जाता है। यहाँ उतर वृंदावन आश्रम के पास जोगेश्वर नाम का एक पुराना मंदिर है। इससे डेढ़ मील की उतराई पर देवदार के सघन वृक्षों के मध्य नदी के तट पर नागेश्वर ज्योतिर्लिंग बताया जाता है। स्कंध पुराण में इन्हीं नागेश लिंग का वर्णन एवं महात्म्य वर्णित है।

शिव पुराण में गुजरात राज्य के भीतर ही दारूकावन क्षेत्र में स्थित ज्योतिर्लिंग को ही नागेश्वर ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। [1] [2] [3] द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तुति में भी नागेश्वर ज्योतिर्लिंग को दारूकावन क्षेत्र में ही वर्णित किया गया है। महात्म्य के अनुसार जो आदरपूर्वक इस शिवलिंग की उत्पत्ति एवं  महात्म्य को सुनेगा और इसके दर्शन करेगा, वह सभी पापों से मुक्त होकर समस्त सुखों को भोगता हुआ अंततः परमपद को प्राप्त होगा।

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तुति[संपादित करें]

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्‌।

उज्जयिन्यां महाकालमोंकारं ममलेश्वरम्‌ ॥1॥

परल्यां वैजनाथं च डाकियन्यां भीमशंकरम्‌।

सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने ॥2॥

वारणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमी तटे।

हिमालये तु केदारं ध्रुष्णेशं च शिवालये ॥3॥

एतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रातः पठेन्नरः।

सप्तजन्मकृतं पापं स्मरेण विनश्यति ॥4॥

॥ इति द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तुति संपूर्णम्‌ ॥

कथा[संपादित करें]

इस ज्योतिर्लिंग के संबंध में पुराणों यह कथा वर्णित है-

सुप्रिय नामक एक बड़ा धर्मात्मा और सदाचारी वैश्य था। वह भगवान्‌ शिव का अनन्य भक्त था। वह निरन्तर उनकी आराधना, पूजन और ध्यान में तल्लीन रहता था। अपने सारे कार्य वह भगवान्‌ शिव को अर्पित करके करता था। मन, वचन, कर्म से वह पूर्णतः शिवार्चन में ही तल्लीन रहता था। उसकी इस शिव भक्ति से दारुक नामक एक राक्षस बहुत क्रुद्व रहता था

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर

उसे भगवान्‌ शिव की यह पूजा किसी प्रकार भी अच्छी नहीं लगती थी। वह निरन्तर इस बात का प्रयत्न किया करता था कि उस सुप्रिय की पूजा-अर्चना में विघ्न पहुँचे। एक बार सुप्रिय नौका पर सवार होकर कहीं जा रहा था। उस दुष्ट राक्षस दारुक ने यह उपयुक्त अवसर देखकर नौका पर आक्रमण कर दिया। उसने नौका में सवार सभी यात्रियों को पकड़कर अपनी राजधानी में ले जाकर कैद कर लिया। सुप्रिय कारागार में भी अपने नित्यनियम के अनुसार भगवान्‌ शिव की पूजा-आराधना करने लगा।

अन्य बंदी यात्रियों को भी वह शिव भक्ति की प्रेरणा देने लगा। दारुक ने जब अपने सेवकों से सुप्रिय के विषय में यह समाचार सुना तब वह अत्यन्त क्रुद्ध होकर उस कारागर में आ पहुँचा। सुप्रिय उस समय भगवान्‌ शिव के चरणों में ध्यान लगाए हुए दोनों आँखें बंद किए बैठा था। उस राक्षस ने उसकी यह मुद्रा देखकर अत्यन्त भीषण स्वर में उसे डाँटते हुए कहा- 'अरे दुष्ट वैश्य! तू आँखें बंद कर इस समय यहाँ कौन- से उपद्रव और षड्यन्त्र करने की बातें सोच रहा है?' उसके यह कहने पर भी धर्मात्मा शिवभक्त सुप्रिय की समाधि भंग नहीं हुई। अब तो वह दारुक राक्षस क्रोध से एकदम पागल हो उठा। उसने तत्काल अपने अनुचरों को सुप्रिय तथा अन्य सभी बंदियों को मार डालने का आदेश दे दिया। सुप्रिय उसके इस आदेश से जरा भी विचलित और भयभीत नहीं हुआ।

वह एकाग्र मन से अपनी और अन्य बंदियों की मुक्ति के लिए भगवान्‌ शिव से प्रार्थना करने लगा। उसे यह पूर्ण विश्वास था कि मेरे आराध्य भगवान्‌ शिवजी इस विपत्ति से मुझे अवश्य ही छुटकारा दिलाएँगे। उसकी प्रार्थना सुनकर भगवान्‌ शंकरजी तत्क्षण उस कारागार में एक ऊँचे स्थान में एक चमकते हुए सिंहासन पर स्थित होकर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गए।

उन्होंने इस प्रकार सुप्रिय को दर्शन देकर उसे अपना पाशुपत-अस्त्र भी प्रदान किया। इस अस्त्र से राक्षस दारुक तथा उसके सहायक का वध करके सुप्रिय शिवधाम को चला गया। भगवान्‌ शिव के आदेशानुसार ही इस ज्योतिर्लिंग का नाम नागेश्वर पड़ा।

बाद में इस स्थान पर एक बडे आमर्दक सरोवर का निर्माण हुआ।

और ज्योतिर्लिंग उस सरोवर में समाहित हो गया।

पांडव कालीन इतिहास :-

युग बीते और आया द्वापर युग श्री कृष्ण का जन्म युग।

जब द्युत के खेल में कौरवों द्वारा पांचों पांडवों को पराजित किया गया था, तो द्यूत की शर्तों के अनुसार पांडवों को 12 वर्ष के वनवास और एक वर्ष के अज्ञातवास की सजा सुनाई गई थी।  इस बीच, पांडवों ने पूरे भारत में भ्रमण किया।  घूमते-घूमते वे इस दारुकवन में आ गए और इस स्थान पर उनके साथ एक गाय भी थी, वह गाय प्रतिदिन सरोवर में उतरकर दूध देती थी।  एक बार भीम ने यह देखा और अगले दिन वह गाय का पीछा करते हुए सरोवर में उतर गया और उसने भगवान महादेव को देखा तो उसने देखा कि गाय हर दिन शिवलिंग को दुध छोड रही थी।  तब पांचों पांडवों ने उस सरोवर को नष्ट करने का निश्चय किया।  और वीर भीम ने अपनी गदा से उस सरोवर के चारों ओर पर प्रहार किया और सभी ने महादेव के इस शिवलिंग दर्शन किये। श्री कृष्ण ने उन्हें उस शिवलिंग के बारे में बताया और कहा यह शिवलिंग कोई साधारण नही हे यह नागेश्वर ज्योतिर्लिंग है।  तब पांचों पांडवों ने उस स्थान पर भूतल पर स्थित ज्योतिर्लिंग का भव्य अखंड पत्थर का मंदिर बनवाया


यादव काल का इतिहास :-

और फिर से समय के साथ वर्तमान मंदिर हेमाडपंथी शैली में सेउना (यादव) वंश द्वारा बनाया गया था और कहा जाता है कि यह 13 वीं शताब्दी का है, जो सात मंजिला पत्थर की इमारत का बनाया था।


1600 शताब्दी के बाद का इतिहास :-

बाद में छत्रपति संभाजी महाराज के शासनकाल में औरंगजेब ने इस मंदिर की इमारतों को नष्ट कर दिया, औरंगजेब की जीत के दौरान इस मंदिर को नष्ट कर दिया गया था।  मंदिर के वर्तमान खड़े शिखर का पुनर्निर्माण अहिल्याबाई होल्कर द्वारा किया गया था।

और हम इसे आज भी देखते हैं।


हर साल इस मंदिर मे लाखो के संख्या मे लोग आते हे. महाशिवरात्री के उत्सव पर यहा का सबसे बडा मेला लगता हे ओर रथोत्सव मनया जाता हे महाशिवरात्री के ठीक 5 दिन बाद रथोत्सव मनया जाता हे

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Nageshwar Jyotirling | District Devbhumi Dwarka, Government of Gujarat | India" (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-07-07.
  2. "Nageshwar Jyotirlinga". gujrattourism (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-07-07.
  3. "Nageshwar, Gujarat". The Times of India. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0971-8257. अभिगमन तिथि 2023-07-07.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]