पार्किंसन रोग

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Parkinson's disease
अन्य नामParkinson disease, idiopathic or primary parkinsonism, hypokinetic rigid syndrome, paralysis agitans, shaking palsy
विशेषज्ञता क्षेत्रNeurology
लक्षणtremor, rigidity, slowness of movement, difficulty walking[1]
जटिलताDementia, depression, anxiety[2]
उद्भवAge over 60[1][3]
कारणUnknown[4]
संकटPesticide exposure, head injuries[4]
निदानBased on symptoms[1]
विभेदक निदानDementia with Lewy bodies, progressive supranuclear palsy, essential tremor, antipsychotic use[5]
चिकित्साMedications, surgery[1]
औषधिL-DOPA, dopamine agonists[2]
चिकित्सा अवधिLife expectancy about 7–15 years [6]
आवृत्ति6.2 million (2015)[7]
मृत्यु संख्या117,400 (2015)[8]


पार्किन्‍सोनिज्‍म का आरम्भ आहिस्ता-आहिस्ता होता है। पता भी नहीं पड़ता कि कब लक्षण शुरू हुए। अनेक सप्ताहों व महीनों के बाद जब लक्षणों की तीव्रता बढ़ जाती है तब अहसास होता है कि कुछ गड़बड़ है। डॉक्टर जब हिस्‍ट्री (इतिवृत्त) कुरेदते हैं तब मरीज़ व घरवाले पीछे मुड़ कर देखते हैं याद करते हैं और स्वीकारते हैं कि हां सचमुय ये कुछ लक्षण, कम तीव्रता के साथ पहले से मौजूद थे। लेकिन तारीख बताना सम्भव नहीं होता।

कभी-कभी किसी विशिष्ट घटना से इन लक्षणों का आरम्भ जोड़ दिया जाता है - उदाहरण के लिये कोई दुर्घटना, चोट, बुखार आदि। यह संयोगवश होता है। उक्त तात्कालिक घटना के कारण मरीज़ का ध्यान पार्किन्‍सोनिज्‍म के लक्षणों की ओर चला जाता है जो कि धीरे-धीरे पहले से ही अपनी मौजूदगी बना रहे थे।

बहुत सारे मरीजों में पार्किन्‍सोनिज्‍म रोग की शुरूआत कम्पन से होती है। कम्पन अर्थात् धूजनी या धूजन या ट्रेमर या कांपना।

पार्किंसन किसी को तब होता है जब रसायन पैदा करने वाली मस्तिष्क की कोशिकाएँ गायब होने लगती हैं

लक्षण[संपादित करें]

बहुत सारे मरीजों में पार्किन्‍सोनिज्‍म रोग की शुरुआत कम्पन से होती है। कम्पन अर्थात् धूजनी या धूजन या ट्रेमर या कांपना।

कम्पन किस अंग का ?[संपादित करें]

हाथ की एक कलाई या अधिक अंगुलियों का, हाथ की कलाई का, बांह का। पहले कम रहता है। यदाकदा होता है। रुक रुक कर होता है। बाद में अधिक देर तक रहने लगता है व अन्य अंगों को भी प्रभावित करता है। प्रायः एक ही ओर (दायें या बायें) रहता है, परन्तु अनेक मरीजों में, बाद में दोनों ओर होने लगता है।

आराम की अवस्था में जब हाथ टेबल पर या घुटने पर, जमीन या कुर्सी पर टिका हुआ हो तब यह कम्पन दिखाई पडता है। बारिक सधे हुए काम करने में दिक्कत आने लगती है, जैसे कि लिखना, बटन लगाना, दाढी बनाना, मूंछ के बाल काटना, सुई में धागा पिरोना। कुछ समय बाद में, उसी ओर का पांव प्रभावित होता है। कम्पन या उससे अधिक महत्वपूर्ण, भारीपन या धीमापन के कारण चलते समय वह पैर घिसटता है, धीरे उठता है, देर से उठता है, कम उठता है। धीमापन, समस्त गतिविधियों में व्याप्त हो जाता है। चाल धीमी/काम धीमा। शरी की मांसपेशियों की ताकत कम नहीं होती है, लकवा नहीं होता। परन्तु सुघडता व फूर्ति से काम करने की क्षमता कम होती जाती है। हाथ पैरों में जकडन होती है। मरीज को भारीपन का अहसास हो सकता है। परन्तु जकडन की पहचान चिकित्सक बेहतर कर पाते हैं - जब से मरीज के हाथ पैरों को मोड कर व सीधा कर के देखते हैं बहुत प्रतिरोध मिलता है। मरीज जानबूझ कर नहीं कर रहा होता। जकडन वाला प्रतिरोध अपने आप बना रहता है।

खडे होते समय व चलते समय मरीज सीधा तन कर नहीं रहता। थोडा सा आगे की ओर झुक जाता है। घुटने व कुहनी भी थोडे मुडे रहते हैं। कदम छोटे होते हैं। पांव जमीन में घिसटते हुए आवाज करते हैं। कदम कम उठते हैं गिरने की प्रवृत्ति बन जाती है। ढलान वाली जगह पर छोटे कदम जल्दी-जल्दी उठते हैं व कभी-कभी रोकते नहीं बनता।

चलते समय भुजाएं स्थिर रहती हैं, आगे पीछे झूलती नहीं। बैठे से उठने में देर लगती है, दिक्कत होती है। चलते -चलते रुकने व मुडने में परेशानी होती है। चेहरे का दृश्य बदल जाता है। आंखों का झपकना कम हो जाता है। आंखें चौडी खुली रहती हैं। व्‍यक्ति मानों सतत घूर रहा हो या टकटकी लगाए हो। चेहरा भावशून्य प्रतीत होता है बातचीत करते समय चेहरे पर खिलने वाले तरह-तरह के भाव व मुद्राएं (जैसे कि मुस्कुराना, हंसना, क्रोध, दुःख, भय आदि) प्रकट नहीं होते या कम नजर आते हैं। उपरोक्‍त वर्णित अनेक लक्षणों में से कुछ, प्रायः वृद्धावस्था में बिना पार्किन्‍सोनिज्‍म के भी देखे जा सकते हैं। कभी-कभी यह भेद करना मुश्किल हो जाता है कि बूढे व्यक्तियों में होने वाले कम्पन, धीमापन, चलने की दिक्कत डगमगापन आदि पार्किन्‍सोनिज्‍म के कारण हैं या सिर्फ उम्र के कारण।

खाना खाने में तकलीफें होती है। भोजन निगलना धीमा हो जाता है। गले में अटकता है। कम्पन के कारण गिलास या कप छलकते हैं। हाथों से कौर टपकता है। मुंह में लार अधिक आती है। चबाना धीमा हो जाता है। ठसका लगता है, खांसी आती है। बाद के वर्षों में जब औषधियों का आरम्भिक अच्छा प्रभाव क्षीणतर होता चला जाता है। मरीज की गतिविधियां सिमटती जाती हैं, घूमना-फिरना बन्द हो जाता है। दैनिक नित्य कर्मों में मदद लगती है। संवादहीनता पैदा होती है क्योंकि उच्चारण इतना धीमा, स्फुट अस्पष्ट कि घर वालों को भी ठीक से समझ नहीं आता।

स्वाभाविक ही मानसिक स्वास्थ्य पर भी इसका असर पडता है। सुस्ती, उदासी व चिडचिडापन पैदा होते हैं। स्मृति में मामूली कमी देखी जा सकती है।

कुछ अन्य लक्षण व समस्याएं[संपादित करें]

नींद में कमी, वजन में कमी, कब्जियत, जल्दी सांस भर आना, पेशाब करने में रुकावट, चक्कर आना, खडे होने पर अंधेरा आना, सेक्स में कमजोरी, जोड़ों में दर्द,

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

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  4. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; Lancet2015 नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  5. Ferri FF (2010). "Chapter P". Ferri's differential diagnosis : a practical guide to the differential diagnosis of symptoms, signs, and clinical disorders (2nd संस्करण). Philadelphia, PA: Elsevier/Mosby. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0323076999.
  6. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
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