जनकपुर

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जनकपुर धाम का नौलखा मंदिर जानकी मंदिर
जनकपुर धाम का नौलखा मंदिर जानकी मंदिर
उपनाम: जनकपुर धाम
surat is located in नेपाल
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Location in Nepal
देश नेपाल
प्रशासनिक डिवीजनजनकपुर अंचल
जिलाधनुषा जिला
शासनलोकतांत्रिक सरकार
 • प्रणालीजनकपुर उपमहानगरपालिका
जनसंख्या
 • कुल197,776
पिनकोड45600
दूरभाष कोडNT Fixed-Line: 041

NT Cell  : 98440, 98441, 98442, 98540, 98541

NCell Cell  : 98048,98148,98076,98176, 98016
यह पृष्ठ हिन्दू देवी सीता से संबंधित निम्न लेख श्रृंखला का हिस्सा है-
सीता

जनकपुर नेपाल का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है ये नगर प्राचीन काल में मिथिला की राजधानी माना जाता है। यहाँ पर प्रसिद्ध राजा जनक थे। जो सीता माता के पिता थे। यह शहर भगवान राम की ससुराल के रूप में विख्यात है।[1]

वर्तमान स्थिति[संपादित करें]

जनकपुर संप्रति नेपाल के जनकपुर अंचल और धनुषा जिला में स्थित है।

भाषा-बोली[संपादित करें]

यहाँ की प्रमुख भाषा मैथिली, हिन्दी और नेपाली है।

इतिहास[संपादित करें]

प्राचीन काल में यह विदेह राज्य की राजधानी थी। विदेह राज्य के संस्थापक निमि के वंश में महाराज सीरध्वज जनक 22 वें जनक थे, और अयोध्यापति राजा दशरथ के समकालीन थे। दाशरथि राम की अर्द्धांगिनी सीता मिथिलेश जनक सीरध्वज की पुत्री थी। महाकवि विद्यापति के ग्रंथ "भू-परिक्रमा" में स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि जनकपुर से सात कोस दक्षिण महाराज जनक का राजमहल था :

जनकपुरदक्षिणांशे सप्तक्रोश-व्यतिक्रमे। डिजगलमहाग्रामे गेहास्तु जनकस्य च।।[2]

जनकपुर की ख्याति कैसे बढ़ी और उसे राजा जनक की राजधानी लोग कैसे समझने लगे, इसके सम्बन्ध में एक अनुश्रुति प्रचलित है। कहा जाता है कि पवित्र जनक वंश का कराल जनक के समय में नैतिक अधःपतन हो गया। कौटिल्य ने प्रसंगवश अपनेअर्थशास्त्र[3] में लिखा है कि कराल जनक ने कामान्ध होकर ब्राह्मण कन्या का अभिगमन किया। इसी कारण वह बन्धु-बान्धवों के साथ मारा गया। अश्वघोष ने भी अपने ग्रंथ बुद्ध चरित्र में इसकी पुष्टि की है। कराल जनक के वध के पश्चात् जनक वंश में जो लोग बच गये, वे निकटवर्ती तराई के जंगलों में जा छुपे। जहाँ वे लोग छिपे थे, वह स्थान जनक के वंशजों के रहने के कारण जनकपुर कहलाने लगा।[4]

सीता स्वयंबर कथा[संपादित करें]

जनकपुर में स्वयंबर के दौरान भगवान राम के द्वारा शिव धनुष तोड़ने से संबंधित रवी वर्मा की पेंटिंग

रामायण कथा के अनुसार जनक राजाओं में सबसे प्रसिद्ध सीरध्वज जनक हुए। यह बहुत ही विद्वान एवं धार्मिक विचारों वाले थे। शिव के प्रति इनकी अगाध श्रद्धा थी। इनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने इन्हें अपना धनुष प्रदान किया था। यह धनुष अत्यंत भारी था। जनक की पुत्री सीता धर्मपरायण थी वह नियमित रूप से पूजा स्थल की साफ-सफाई स्वयं करती थी। एक दिन की बात है जनक जी जब पूजा करने आए तो उन्होंने देखा कि शिव का धनुष एक हाथ में लिये हुए सीता पूजा स्थल की सफाई कर रही हैं। इस दृश्य को देखकर जनक जी आश्चर्य चकित रह गये कि इस अत्यंत भारी धनुष को एक सुकुमारी ने कैसे उठा लिया। इसी समय जनक जी ने तय कर लिया कि सीता का पति वही होगा जो शिव के द्वारा दिये गये इस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने में सफल होगा।[5]

अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार राजा जनक ने धनुष-यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ से संपूर्ण संसार के राजा, महाराजा, राजकुमार तथा वीर पुरुषों को आमंत्रित किया गया। समारोह में अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र रामचंद्र और लक्ष्मण अपने गुरु विश्वामित्र के साथ उपस्थित थे। जब धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने की बारी आई तो वहाँ उपस्थित किसी भी व्यक्ति से प्रत्यंचा तो दूर धनुष हिला तक नहीं। इस स्थिति को देख राजा जनक को अपने-आप पर बड़ा क्षोभ हुआ। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में लिखा है-

"अब अनि कोउ माखै भट मानी, वीर विहीन मही मैं जानी

तजहु आस निज-निज गृह जाहू, लिखा न विधि वैदेही बिबाहू
सुकृतु जाई जौ पुन पहिहरऊँ, कुउँरि कुआरी रहउ का करऊँ

जो तनतेऊँ बिनु भट भुविभाई, तौ पनु करि होतेऊँ न हँसाई"

राजा जनक के इस वचन को सुनकर लक्ष्मण के आग्रह और गुरु की आज्ञा पर रामचंद्र ने ज्यों ही धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई त्यों ही धनुष तीन टुकड़ों में विभक्त हो गया। बाद में अयोध्या से बारात आकर रामचंद्र और जनक नंदिनी जानकी का विवाह माघ शीर्ष शुक्ल पंचमी को जनकपुरी में संपन्न हुआ। कहते हैं कि कालांतर में त्रेता युगकालीन जनकपुर का लोप हो गया। करीब साढ़े तीन सौ वर्ष पूर्व महात्मा सूरकिशोर दास ने जानकी के जन्मस्थल का पता लगाया और मूर्ति स्थापना कर पूजा प्रारंभ की। तत्पश्चात आधुनिक जनकपुर विकसित हुआ।[5]

प्रमुख पर्यटन स्थल[संपादित करें]

जानकी मंदिर जनकपुर

नौलखा मंदिर: जनकपुर में राम-जानकी के कई मंदिर हैं। इनमें सबसे भव्य मंदिर का निर्माण भारत के टीकमगढ़ की महारानी वृषभानु कुमारी बुंदेला ने करवाया। पुत्र प्राप्ति की कामना से महारानी वृषभानु कुमारी बुंदेला ने अयोध्या में 'कनक भवन मंदिर' का निर्माण करवाया परंतु पुत्र प्राप्त न होने पर गुरु की आज्ञा से पुत्र प्राप्ति के लिए जनकपुरी में १८९६ ई. में जानकी मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर निर्माण प्रारंभ के १ वर्ष के अंदर ही वृषभानु कुमारी को पुत्र प्राप्त हुआ। जानकी मंदिर के निर्माण हेतु नौ लाख रुपए का संकल्प किया गया था। फलस्वरूप उसे 'नौलखा मंदिर' भी कहते हैं। परंतु इसके निर्माण में १८ लाख रुपया खर्च हुआ। जानकी मंदिर के निर्माण काल में ही वृषभानु कुमारी के निधनोपरांत उनकी बहन नरेंद्र कुमारी ने मंदिर का निर्माण कार्य पूरा करवाया। बाद में वृषभानुकुमारी के पति ने नरेंद्र कुमारी से विवाह कर लिया। जानकी मंदिर का निर्माण १२ वर्षों में हुआ लेकिन इसमें मूर्ति स्थापना १८१४ में ही कर दी गई और पूजा प्रारंभ हो गई। जानकी मंदिर को दान में बहुत-सी भूमि दी गई है जो इसकी आमदनी का प्रमुख स्रोत है। जानकी मंदिर परिसर के भीतर प्रमुख मंदिर के पीछे जानकी मंदिर उत्तर की ओर 'अखंड कीर्तन भवन' है जिसमें १९६१ ई. से लगातार सीताराम नाम का कीर्तन हो रहा है। जानकी मंदिर के बाहरी परिसर में लक्ष्णण मंदिर है जिसका निर्माण जानकी मंदिर के निर्माण से पहले बताया जाता है। परिसर के भीतर ही राम जानकी विवाह मंडप है। मंडप के खंभों और दूसरी जगहों को मिलाकर कुल १०८ प्रतिमाएँ हैं।[6]

विवाह मंडप (धनुषा) : इस मंडप में विवाह पंचमी के दिन पूरी रीति-रिवाज से राम-जानकी का विवाह किया जाता है। जनकपुरी से १४ किलोमीटर 'उत्तर धनुषा' नामक स्थान है। बताया जाता है कि रामचंद्र जी ने इसी जगह पर धनुष तोड़ा था। पत्थर के टुकड़े को अवशेष कहा जाता है। पूरे वर्षभर ख़ासकर 'विवाह पंचमी' के अवसर पर तीर्थयात्रियों का तांता लगा रहता है। नेपाल के मूल निवासियों के साथ ही अपने देश के बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, राजस्थान तथा महाराष्ट्र राज्य के अनगिनत श्रद्धालु नज़र आते हैं। जनकपुर में कई अन्य मंदिर और तालाब हैं। प्रत्येक तालाब के साथ अलग-अलग कहानियाँ हैं। 'विहार कुंड' नाम के तालाब के पास ३०-४० मंदिर हैं। यहाँ एक संस्कृत विद्यालय तथा विश्वविद्यालय भी है। विद्यालय में छात्रों को रहने तथा भोजन की निःशुल्क व्यवस्था है। यह विद्यालय 'ज्ञानकूप' के नाम से जाना जाता है।[6]

मंडप के चारों ओर चार छोटे-छोटे ‘कोहबर’ हैं जिनमें सीता-राम, माण्डवी-भरत, उर्मिला-लक्ष्मण एवं श्रुतिकीर्ति-शत्रुघ्र की मूर्तियां हैं। राम-मंदिर के विषय में जनश्रुति है कि अनेक दिनों तक सुरकिशोरदासजी ने जब एक गाय को वहां दूध बहाते देखा तो खुदाई करायी जिसमें श्रीराम की मूर्ति मिली। वहां एक कुटिया बनाकर उसका प्रभार एक संन्यासी को सौंपा, इसलिए अद्यपर्यन्त उनके राम मंदिर के महन्त संन्यासी ही होते हैं जबकि वहां के अन्य मंदिरों के वैरागी हैं।[6]

इसके अतिरिक्त जनकपुर में अनेक कुंड हैं यथा- रत्ना सागर, अनुराग सरोवर, सीताकुंड इत्यादि। उनमें सर्वप्रमुख है प्रथम अर्थात् रत्नासागर जो जानकी मंदिर से करीब 9 किलोमीटर दूर ‘धनुखा’ में स्थित है। वहीं श्रीराम ने धनुष-भंग किया था। कहा जाता है कि वहां प्रत्येक पच्चीस-तीस वर्षों पर धनुष की एक विशाल आकृति बनती है जो आठ-दस दिनों तक दिखाई देती है।[6]

मंदिर से कुछ दूर ‘दूधमती’ नदी के बारे में कहा जाता है कि जुती हुई भूमि के कुंड से उत्पन्न शिशु सीता को दूध पिलाने के उद्देश्य से कामधेनु ने जो धारा बहायी, उसने उक्त नदी का रूप धारण कर लिया।[6]

यातायात और संचार सुविधाएं[संपादित करें]

नेपाल की राजधानी काठमांडू से 400 किलोमीटर दक्षिण पूरब में बसा है। जनकपुर से करीब १४ किलोमीटर उत्तर के बाद पहाड़ शुरू हो जाता है। नेपाल की रेल सेवा का एकमात्र केंद्र जनकपुर है। यहाँ नेपाल का राष्ट्रीय हवाई अड्डा भी है। जनकपुर जाने के लिए बिहार राज्य से तीन रास्ते हैं। पहला रेल मार्ग जयनगर से है, दूसरा सीतामढ़ी जिले के भिट्ठामोड़ से बस द्वारा है, तीसरा मार्ग मधुबनी जिले के उमगाँउ से बस द्वारा है। बिहार के दरभंगा, मधुबनी एवं सीतामढ़ी जिला से इस स्थान पर सड़क मार्ग से पहुंचना आसान है। बिहार की राजधानी पटना से इसका सीतामढ़ी के भिट्ठामोड़ होते हुये सीधा सड़क संपर्क है। पटना से इसकी दूरी 140 की मी है।[7]

यहाँ से काठमांडू जाने के लिए हवाई जहाज़ भी उपलब्ध हैं। यात्रियों के ठहरने हेतु यहाँ होटल एवं धर्मशालाओं का उचित प्रबंध है। यहाँ के रीति-रिवाज बिहार राज्य के मिथलांचल जैसे ही हैं। वैसे प्राचीन मिथिला की राजधानी माना जाता है यह शहर। भारतीय पर्यटक के साथ ही अन्य देश के पर्यटक भी काफी संख्या में यहाँ आते हैं।[7]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. मिथिला का इतिहास, लेखक: डॉ राम प्रकाश शर्मा, प्रकाशक: कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय दरभंगा,
  2. भूपरिक्रमण (मूल सह हिन्दी अनुवाद), अनु॰ वासुकीनाथ झा, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् , पटना, संस्करण-1987, पृष्ठ- 49 एवं 93.
  3. [अर्थशास्त्र, लेखक : कौटिल्य, अध्याय : 6, प्रकरण : 3]
  4. आर्यावर्त, हिन्दी दैनिक, पटना संस्करण, रविवार,25.8.68, पृष्ठ संख्या : 9
  5. "दो संस्कृतियों का सेतुः जनकपुर-श्वेता प्रियदर्शनी". अभिव्यक्ति. मूल से 2 जुलाई 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 अगस्त 2014.
  6. "एक जनकपुर अनेक कहानियां". दैनिक ट्रिब्यून. अभिगमन तिथि 12 अगस्त 2014.
  7. "जनकपुर". पुपरी. मूल से 13 अगस्त 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 अगस्त 2014.

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]