आराधना (1969 फ़िल्म)

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आराधना

आराधना का पोस्टर
निर्देशक शक्ति सामंत
लेखक सचिन भौमिक (कथा एवं पटकथा)
रमेश पंत (संवाद)
निर्माता शक्ति सामंत
अभिनेता शर्मिला टैगोर,
राजेश खन्ना,
सुजीत कुमार,
पहाड़ी सानयाल,
अभि भट्टाचार्य,
फरीदा ज़लाल
छायाकार आलोक दास गुप्ता
संपादक गोविन्द दलवाडी
संगीतकार ऍस. डी. बर्मन (संगीतकार)
आनन्द बख़्शी (गीतकार)
निर्माण
कंपनियां
वितरक शक्ति फ़िल्म्स
प्रदर्शन तिथि
1969
देश भारत
भाषा हिन्दी

आराधना १९६९ में बनी हिन्दी भाषा की फ़िल्म है जिसके निर्माता एवं निर्देशक शक्ति सामंत थे। इस फ़िल्म को १९६९ में फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार के साथ दो अन्य फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों से नवाज़ा गया था।

संक्षेप[संपादित करें]

फ़िल्म वर्तमान से शुरु होती है जब जज हत्या की आरोपी वन्दना (शर्मिला टैगोर) को आजीवन कारावास का फ़ैसला सुनाते हैं और उसे जेल भेज दिया जाता है। जेल में वह अपनी खिड़की पर लगी सलाखों की ओर देखती है और उसे पुरानी बातें ताज़ा हो जाती हैं।
फ़िल्म अब अतीत में जाती है और एयर फ़ोर्स का पायलट अरुण वर्मा (राजेश खन्ना) अपने दोस्त मदन वर्मा (सुजीत कुमार) की तबियत की जाँच करवाने के लिए जब वन्दना के पिता डॉ॰ गोपाल त्रिपाठी (पहाड़ी सानयाल) को लेने उनके घर आता है तो ग़लती से वन्दना उस पर बाल्टी का पानी फेंक देती है और वहीं से उनकी दोस्ती शुरु हो जाती है। दोनों एक दूसरे के लिए इतने उत्सुक हैं कि किसी को बिना बताए मंदिर में विवाह रचाते हैं और शादी सम्पन्न कर लेते हैं। एक हवाई जहाज़ दुर्घटना में अरुण की मृत्यु हो जाती है और वे किसी को भी अपनी विवाह की सूचना नहीं दे पाते। वन्दना माँ बनने वाली है और यह ख़बर सुनकर उसके पिता का जल्द ही देहान्त हो जाता है। बच्चा पैदा होने पर उसे मजबूरन एक अनाथाश्रम के हवाले करना पड़ता है लेकिन अगले दिन जब वह अपना बच्चा वापस गोद लेने जाती है तो पाती है कि सक्सेना दम्पती ने उसे गोद ले लिया है। जब वह राम प्रसाद सक्सेना (अभि भट्टाचार्य) को सब सच बताती है तो वह उससे कहते हैं कि बेहतरी इसी में है कि वह अपने बच्चे की आया बनकर उन्हीं के घर में रहे। वन्दना स्वीकार कर लेती है। बच्चा धीरे-धीरे बड़ा होता है और एक दिन जब वन्दना घर में अकेले होती है तो सक्सेना का साला श्याम उसे अपने वश में करने की कोशिश करता है लेकिन उसका लड़का सूरज आकर श्याम का ख़ून कर देता है। वन्दना सूरज को वहाँ से जाने को कहती है और सारा इल्ज़ाम अपने सर ले लेती है।
फ़िल्म फिर वर्तमान में पहुँचती है लेकिन अब बारह साल ग़ुज़र चुके हैं। अच्छे चाल चलन की वजह से वन्दना की दो साल पहले ही रिहाई हो जाती है लेकिन उसके पास कहीं जाने का ठिकाना नहीं है क्योंकि राम प्रसाद सक्सेना का भी देहान्त हो चुका होता है और उसकी पत्नी और सूरज का पता उस जेल का जेलर (मदन पुरी) नहीं लगा पाता है। जेलर अगले दिन सेवा निवृत्त हो रहा होता है और उसे अपनी बहन बनाकर अपने घर ले जाता है। वहाँ पहले से ही जेलर की बेटी रेनू (फ़रीदा जलाल) सूरज प्रसाद सक्सेना (राजेश खन्ना फिर से), जो कि एयर फ़ोर्स में पायलट है, के प्यार में डूबी होती है। जल्द ही दोनों की शादी भी तय हो जाती है और राम प्रसाद सक्सेना की पत्नी वन्दना को पहचान भी लेती है लेकिन वन्दना के अनुरोध करने पर किसी से उसका राज़ न बताने का वचन देती है। तभी जंग छिड़ जाती है और सूरज जंग में घायल हो जाता है। जब वन्दना उसे देखने अस्पताल जाती है तो उसकी मुलाकात मदन वर्मा से होती है। सूरज को वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया जाना होता है और जब वह समारोह के लिए रेनू को ले जाने के लिए उसके घर जाता है तो रेनू उसके ऊपर पानी फेंक देती है। जब वन्दना सूरज के कपड़ों में इस्त्री कर उनको सुखाने जाती है तो सूरज को अचानक वन्दना के कमरे में पड़ी किताब से पुरानी तस्वीरें मिलती हैं जिसमें वन्दना और अरुण के विवाह और वन्दना और बचपन के सूरज की तस्वीरें भी होती हैं। सूरज वन्दना को भी अपने साथ समारोह में ले जाता है और वहाँ कहता है कि वह पदक वन्दना के हाथ से ही पहनेगा। माँ-बेटे दोनों आपस में मिल जाते हैं।

चरित्र[संपादित करें]

मुख्य कलाकार[संपादित करें]

संगीत[संपादित करें]

फ़िल्म में संगीत दिया है ऍस. डी. बर्मन ने और गीतकार हैं आनन्द बख़्शी

आराधना के गीत
गीत गायक/गायिका
बाग़ों में बहार है मोहम्मद रफ़ी, लता मंगेशकर
चन्दा है तू लता मंगेशकर
गुनगुना रहे हैं भँवरे मोहम्मद रफ़ी, आशा भोंसले
कोरा क़ाग़ज़ था ये मन मेरा किशोर कुमार, लता मंगेशकर
मेरे सपनों की रानी कब आयेगी तू किशोर कुमार
रूप तेरा मस्ताना किशोर कुमार
सफल होगी तेरी आराधना ऍस. डी. बर्मन

रोचक तथ्य[संपादित करें]

  • शर्मिला टैगोर उस समय एक बंगला फ़िल्म कर रही थीं और उनके पास इस फ़िल्म को देने के लिए समय नहीं था। इस लिए मेरे सपनों की रानी गीत पहले राजेश खन्ना पर फ़िल्माया गया और जब शर्मिला टैगोर को फ़ुर्सत मिली तो गीत के वे दृश्य फ़िल्माये गये जो उन पर आधारित थे।
  • फ़िल्म के दो गाने मोहम्मद रफ़ी से गवाकर सचिन दा बहुत बीमार पड़ गये। बाद के गाने उनके बेटे आर. डी. बर्मन ने रिकॉर्ड किये और किशोर दा से गवाये जिसके फलस्वरूप किशोर दा को गायक की हैसियत से अपना पहला फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार प्राप्त हुआ।

नामांकन और पुरस्कार[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]