प्यार

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प्रेम में मगन रोमियो जूलियट का चित्र

प्यार या प्रेम एक एहसास है, जो दिमाग से नहीं दिल से होता है और इसमें अनेक भावनाओं व अलग अलग विचारो का समावेश होता है। प्रेम स्नेह से लेकर खुशी की ओर धीरे धीरे अग्रसर करता है। ये एक मज़बूत आकर्षण और निजी जुड़ाव की भावना है जो सब भूलकर उसके साथ जाने को प्रेरित करती है। ये किसी की दया, भावना और स्नेह प्रस्तुत करने का तरीका भी माना जा सकता है। उदाहरण के लिए माता और पिता के प्रति, खुद के प्रति, या किसी जानवर के प्रति, या फिर किसी इन्सान के प्रति स्नेहपूर्वक कार्य करने या जताने को प्यार कहा जाता हैं। सच्चा प्यार वह होता है जो सभी हालातो में आप के साथ हो, यानी दुख में भी आप को और आप की खुशियों को अपनी खुशियां माने। कहते हैं कि अगर प्यार होता है तो हमारी ज़िन्दगी बदल जाती है। पर जिन्दगी बदलती है या नही, यह इंसान के उपर निर्भर करता है। पर प्यार इंसान को जरूर बदल देता है। प्यार का मतलब सिर्फ यह नहीं कि हम हमेशा उसके साथ रहे, प्यार तो एक-दूसरे से दूर रहने पर भी खत्म नहीं होना चाहिए। जिसमे दूर कितने भी हो, अहसास हमेशा पास का होना चाहिए। किसी से सच्चा प्यार करने वाले बहुत कम लोग हैं। लेकिन एक उदाहरण हैं लैला और मजनू का। इनके प्यार की कोई सीमा नहीं है। यह प्यार में कुछ भी कर सकते हैं। ऐसे प्यार को लोग जन्म जन्मों तक याद रखेंगे।

"प्यार" शब्द ऐसा शब्द है जिसका नाम सुनकर ही हमें अच्छा महसूस होने लगता है,प्यार शब्द में वो एहसास है जिसे हम कभी नहीं खोना चाहते।इस शब्द में ऐसी पॉजिटिव एनर्जी है ,जो हमें मानसिक और आंतरिक खुशी प्रदान करती है। कभी कभी कष्ट देय भी होती है|

प्राचीन ग्रीकों ने चार तरह के प्यार को पहचाना है: रिश्तेदारी, दोस्ती, रोमानी इच्छा और दिव्य प्रेम। प्यार [1]को अक्सर वासना के साथ तुलना की जाती है और पारस्परिक संबध के तौर पर रोमानी अधि स्वर के साथ तोला जाता है, प्यार दोस्ती यानी पक्की दोस्ती से भी तोला जाता हैं। आम तौर पर प्यार एक एहसास है जो एक इन्सान दूसरे इन्सान के प्रति महसूस करता है।

प्रेम एक रसायन है क्योंकि यह यंत्र नहीं विलयन है, द्रष्टा और दृष्टि का , सौन्दर्य के दृश्य तभी द्रष्टा की दृष्टि में विलयित हो पाते हैं, और यही अवस्था प्रेम की अवस्था होती है। प्रेम और सौन्दर्य दोनो की उत्पत्ति और उद्दीपन की प्रक्रिया अन्तर से प्रारम्भ होती है। सौन्दर्य मनुष्य के व्यक्तित्व को प्रभावित करता है, और प्रेम उस सौन्दर्य में समाया रहता है। प्रेम में आसक्ति होती है। यदि आसक्ति न हो तो प्रेम , प्रेम न रहकर केवल भक्ति हो जाती है। प्रेम मोह और भक्ति के बीच की अवस्था है।

स्त्रीपुरुष के मध्य प्रेम होने के सात चरण होते है व प्रेम समाप्त होने के सात चरण होते है ।

प्रेम होने के सात चरण :-

  • पहला आकर्षण
  • दूसरा ख्याल
  • तीसरा मिलने की चाह
  • चौथा साथ रहने की चाह
  • पांचवा मिलने व बात करने के लिए कोशिश करना
  • छठवां मिलकर इजहार करना
  • सातवाँ साथ जीवन जीने के लिए प्रयत्न करना व
  • अंत में जीवनसाथी बन जाना ।

प्रेम समाप्त होने के सात चरण:-

  • पहला एक दूसरे के विचार व कार्यों को पसंद ना करना
  • दूसरा झगड़े
  • तीसरा नफ़रत करना
  • चौथा एक दूसरे से दूरी बनना
  • पांचवा संबंध खत्म करने के लिए विचार करना
  • छठवां अलग होने के लिए प्रयत्न करना
  • सातवाँ अलग हो जाना ।

प्रेमी व प्रेमिका या के प्रेम करने व अलग होने की मनोस्थित एक समान है ।

परन्तु कुछ विवाह जुड़े अलग नहीं हो सकते है क्योंकि उनकी आत्मा ही एक है जो भीतर से एक है वे बाहर से अलग हो ही नहीं सकते है ।

प्रेम के रूप[संपादित करें]

  • अवैयक्तिक प्रेम

एक व्यक्ति किसी वस्तु, या तत्व, या लक्ष्य से प्रेम कर सकता है जिनसे वो जुडा़ है या जिनका वो सम्मान करता है। इंसान किसी वस्तु, जानवर या कार्य से भी प्यार कर सकता हैं जिसके साथ वो निजी जुड़ाव महसूस करता है और खुद को जुडे़ रखना चाहता है। अवैयक्तिक प्यार सामान्य प्यार जैसा नहीं है, ये इनसान के आत्मा का नज़रिया है जिससे दूसरों के प्रति एक शान्ति पूर्वक मानसिक रवैया उत्पन्न होता है जो दया, संयम, [[माफी][ और अनुकंपा आदि भावनाओं से व्यक्त किया जाता है। अगर सामान्य वाक्य में कहा जाए तो अवैयक्तिक प्यार एक व्यक्ति के दूसरों के प्रति व्यवहार को कहा जाता हैं। इसिलिए, अवैयक्तिक प्यार एक वस्तु के प्रति इंसान के सोच के ऊपर आधारित होता है।

  • पारस्पारिक प्यार

मनुष्य के बीच के प्यार को पारस्पारिक प्यार कहते हैं। ये सिर्फ एक दूसरे के लिये चाह नहीं है बल्कि एक शक्तिशाली भाव है। जिस प्यार के भावनाओं को विनिमय नहीं किया जाता उसे अप्रतिदेय प्यार कहते हैं। ऐसा प्यार परिवार के सदस्यों, दोस्तों और प्रेमियों के बीच पाया जाता हैं। पारस्पारिक रिश्ता दो मनुष्य के साथ मज़बूत, गहरा और निकट सहयोग होता है। ये रिश्ता अनुमान, एकजुटता, नियमित व्यापार बातचीत या समाजिक प्रतिबद्धित कारणों से बनता है। ये समाजिक, सांस्कृतिक और अन्य कारक से प्रभावित हैं। ये प्रसंग परिवार, रिश्तेदारी, दोस्ती, शादी, सहकर्मी, काम, पड़ोसी और मन्दिर-मस्जिद के अनुसार बदलता है। इसे कानून के द्वारा या रिवाज़ और आपसी समझौते के द्वारा विनियमित किया जा सकता है। ये समाजिक समूहों और समाज का आधार है।

प्यार के कई आधार हैं[संपादित करें]

  • जैविक आधार

यौन के जैविक मॉडल में प्यार को भूख और प्यास की तरह दिखाया गया हैं। हेलेन फिशर, प्यार की प्रमुख विशेषज्ञ हैं। उन्होनें प्यार के तजुर्बे को तीन हिस्सों में विभाजन किया हैं: हवस, आकर्षण, आसक्तिहवस यौन इच्छा होती है। रोमानी-आकर्षण निर्धारित करती है कि आपके साथी में आपको क्या आकर्षित करता है। आसक्ति में घर बांट के जीना, माँ-बाप का कर्तव्य, आपसी रक्षा और सुरक्षा की भावना शामिल है।

वासना प्रारंभिक आवेशपूर्ण यौन इच्छा है, जो संभोग को बढ़ावा देता है। ये समागम और रसायन की रिहाई को बढ़ावा देता है। इसका प्रभाव कुछ हफ्ते या महिनों तक ही होता है। आकर्षण एक व्यक्तिगत और रोमानी इच्छा है जो एक ही मनुष्य के प्रति है जो हवस से उत्पन्न होती है। इससे एक व्यक्ति से प्रतिबद्धता बढ़ती है। जैसे जैसे मनुष्य प्यार करने लगते हैं, उनके मस्तिष्क में एक प्रकार के रसायन की रिहाई होती हैं। मनुष्य के मस्तिष्क में सुखों के केन्द्र को उत्तेजित करता है। इस वजह से दिल कि धड़कनें बढ़ जाती हैं, भूख नहीं लगती, नींद नहीं आती और उत्साह की तीव्र भावना जाग्रृत होती है। आसक्ति ऐसा लगाव है जिससे सालों रिश्तों की बढ़ोतरी होती है। आसक्ति प्रतिबद्धता पर निर्भर करती है जैसे शादी, बच्चे या दोस्ती पर।

  • मनोवैज्ञानिक आधार

मनोविज्ञान में संज्ञानात्मक और समाजिक घटना को दर्शाया जाता है। मनोविज्ञानी रोबेर्ट स्टर्न्बर्ग ने प्यार के त्रिभुजाकार सिद्धांत को सूत्रबद्ध किया हैं। उन्होंने तर्क किया के प्यार के तीन भिन्न प्रकार के घटक हैं: आत्मीयता, प्रतिबद्धता और जोश। आत्मीयता वो तत्व है जिसमें दो मनुष्य अपने आत्मविश्वास और अपने ज़िन्दगी के व्यक्तिगत विवरण को बाँटते हैं। ये ज़्यादातर दोस्ती और रोमानी कार्य में देखने को मिलता है।

प्रतिबद्धता एक उम्मीद है कि ये रिश्ता हमेशा के लिये कायम रहेगा। आखिर में यौन आकर्षण और जोश है। आवेशपूर्ण प्यार, रोमानी प्यार और आसक्ति में दिखाया गया है। प्यार के सारे प्रपत्र इन घटकों का संयोजन होता हैं। पसन्द करने में आत्मीयता शामिल् होती हैं। मुग्ध प्यार में सिर्फ जोश शामिल होता हैं। खालि प्यार में सिर्फ प्रतिबद्धता शामिल हैं। रोमानी प्यार में दोनो आत्मीयता और जोश शामिल होता हैं। साथी के प्यार में आत्मीयता और प्रतिबद्धता शामिल होता हैं। बुद्धिहीन प्यार में प्रतिबद्धता और जोश शामिल हैं। आखिर् में, घाघ प्यार में तीनों शामिल होते हैं।

  • विकासवादी आधार

विकासवादी मनोविज्ञान ने प्यार को जीवित रहने का एक प्रमुख साधन साबित करने के लिए अनेक कारण दिया हैं। इनके हिसाब से मनुष्य अपने जीवनकाल में अभिभावकिय सहायता पर अन्य स्तनपायियों से ज़्यादा निर्भर रहते हैं, प्यार को इस वजह से अभिभावकीय सहारे को प्रचार करने का तंत्र भी माना गया हैं। ये इसलिये भी हो सकता हैं, क्योंकि प्यार के कारण यौन संचारित रोग हो सकता है जिसकी वजह से मनुष्य के जननक्षमता पर असर पड़ सकता हैं, भ्रूण पर चोट आ सकती हैं, बच्चे पैदा करते वक़्त उलझनें भी हो सकती हैं इत्यादि। ये सब चीजें जानने के बाद समाज में बहुविवाह की पद्दति रुक सकती हैं।

प्यार के कई दृष्टिकोण हैं[संपादित करें]

राजनीतिक दृष्टिकोण[संपादित करें]

  • आज़ाद प्यार

आज़ाद प्यार एक सामाजिक आंदोलन का वर्णन करता है जो शादि जैसे पवित्र बंधन को नहीं मानता। आज़ाद आंदोलन का प्रमुख लक्ष्य ये ता की प्यार को योन विषयों, जैसे शादि करना, जन्म नियंत्रण और व्यभिचार से दूर रखे। यह आंदोलन का मानना है कि ये मुद्दे इस विषय से संबंधित लोगों के लिए चिंताजनक है।

डॉक्टर शुभम पाल के अनुसार "प्यार जीवन का आधार है। जवानी का मूल कारण प्यार है। यह एक एहसासों का बंधन है जो दो प्रेमियों के बीच दांपत्य जीवन को प्रगाड करने में सहायक सिद्ध होता है।"

प्यार को अलग-अलग तरह से परिभाषित किया जा सकता है परन्तु समझने वालों के लिए प्यार के मायने अलग-अलग होते हैं। कोई हवस को प्यार समझता है तो कोई त्याग को प्यार समझता है किसी की नजर में प्यार जिम्मेदारी है तो किसी की नजर में प्यार चिंता प्यार है कहने का मतलब है आज लोग स्वार्थ के नजरिए से ही प्यार को परिभाषित करते हैं किसी लिए कुछ किया तो वो प्यार है नही किया तो प्यार नही है। मेरी नजर में प्यार बलिदान का नाम है जो किसी भी क्षेत्र में या किसी भी व्यक्ति के लिए हो सकता है,मेरी नजरें किसी को नुकसान ना पहुंचाना भी प्यार है,किसी अपराधी का साथ ना देकर उस व्यक्ति के लिए हमारा प्यार ही जिसे हमने किसी अपराधी से बचा लिया। कुल मिलाकर सकारात्मक नजरिए से जीना और किसी को नुकसान ना पहुंचाना प्यार है।

दार्शनिक दृष्टिकोण[संपादित करें]

प्यार का एक सामाजिक दर्शन और आचार क्षेत्र भी है जो इसके सामाजिक मूल्य तथा प्रेमी और प्रेमिका की स्वायत्तता पर पड़ने वाले प्रभाव इत्यादि विषयों पर ग़ौर करता है़।

प्यार मे दुरिया[संपादित करें]

प्यार वह अहसास है जो हमे ज़िंदगी मे पहली बार एक व्यक्ति को देख कर होता है और प्यार में दूरियां सिर्फ देह की हो सकती हैं, मगर रूह में प्यार बसाने के बाद प्यार अमर हो जाता है। देह की दूरियां नजदीकियों से बेहतर हैं जब प्यार किसी से होता है। एक झलक सभी दूरियां समाप्त कर दे वो प्यार ही है।

जब प्यार किसी से होता है[संपादित करें]

जब कोई इंसान किसी दूसरे इंसान को देख कर अत्यधिक प्रभावित हो जाये, उसके अक्श से आकर्षित हो जाये, उससे मिल कर सर्वाधिक प्रसन्न हो जाये, उसके वचन पर मंत्रमुग्ध हो जाये, उसकी क्रिया पर फ़िदा हो जाये, उसके दृष्टि पर विलीन हो जाये, उसके मिलन पर विचलित हो जाये, उससे विरह पर सुस्त हो जाये, उससे विच्छेद पर न्यौछावर हो जाये, उसके साथ विचरण पर कटिबद्ध हो जाये, जो जीवन पर आधारित हो जाये वो प्यार है। उसकी खुशी में संतोष प्राप्त करने लगे, उसके दुःख में सबसे ज्यादा चिंतित हो जाये, उसकी इच्छा में खुद को जला कर भस्म कर दे वो प्यार है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  1. Sheikh, Irfan. "Love Kya Hai - What Is Love - रियल/पवित्र लव क्या होता है Hindi". Irfani - Info For All. अभिगमन तिथि 2022-07-22.