वाहेगुरू

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ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਜੀ ਕਾ ਖਾਲਸਾ, ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਜੀ ਕੀ ਫਤਿਹ।‌‍।
हिंदी :वाहिगुरू जी का खालसा या वाहिगुरू जी की फतह।

वाहेगुरू या वाहिगुरू (पंजाबी: ਵਾਹਿਗੁਰੂ वाहिगुरु) शब्द परमात्मा की प्रशन्सा को व्यतीत करता है।

वाहेगुरु का अर्थ गुरु साहिब के पष्ठ 1402 के सवैया महला में पंक्तियां उद्धृत हैं जो परम भगवान का वर्णन और उनका गुणगान करती है।

यहां भगवान को वाहेगुरु के नाम से पुकारा गया है।

वाहेगुरु शब्द के अर्थ का सुंदरता से वर्णन किया है भई गुरुदास ने, जो सिखों के पांचवे गुरू अर्जुनदेव जी के समकालीन थे।

भई गुरुदास ने एक पुस्तक भी लिखी है "वार", जिसमें वह वाहेगुरु मन्त्र का विस्तार में वर्णन करते हैं।

अपनी पुस्तक के वार 1, पौरी 46 में वे कहते हैं -

सतिजुगि सतिगुर वासदेव ववा विसना नामु जपावै ।

दुआपरि सतिगुर हरीक्रिशन हा हा हरि हरि नामु जपावै ।

त्रेते सतिगुर राम जी रा रा राम जपे सुख पावै ।

कलिजुगि सतिगुर नानक गुर गोविन्द गगा गोविन्द नाम अलावै ।

चारे युगी चाहु युगी पंछी विच जाइ समावै ।

चारो अक्षर इक कर वाहेगुरु जप मन्तर जपावै ।

अनुवाद

सत्ययुग में भगवान् को प्राप्त करने के लिए वासुदेव के रूप पर ध्यान की संस्तुति की जाती थी।

वाहेगुरु शब्द का 'व' भगवान् विष्णु का स्मरण कराता है।

द्वापर युग में हरि कृष्ण प्रकट हुए; वाहेगुरु ने अक्षर 'ह' हरि का स्मरण कराता है।

त्रेता युग में राम प्रकट हुए; वाहेगुरु का 'र' अक्षर श्री राम का स्मरण कराता है।

कलियुग में नानक गुरु के रूप में सभी से गोविन्द नाम का कीर्तन करवाने के लिए आए।

वाहेगुरु का 'ग' अक्षर गोविन्द का स्मरण करवाता है।

इस प्रकार चारों युगों का यहां समावेश है। इन चार अक्षरों ने मिलकर ही इस मंत्र (वाहेगुरु) को बनाया है ।