मिट्टी के प्रकार

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विभिन्न प्रकार की मृदा

कणों (texture) के आधार पर मिट्टी को कई वर्गों में बांटा जा सकता है। मिट्टी के किसी नमूने में उपस्थित विभिन्न खनिज-कणों के आकार के आधार बनाकर यह वर्गीकरण किया जाता है। मिट्टी के मुख्य घटक हैं- महीन पिसे हुए शैल-कण, मृत्तिका (क्ले), जैविक पदार्थ (जैसे विघटित रूप में पौधों के भाग)आदि।

कटिबंधीय मिट्टी[संपादित करें]

यह मिट्टी जलवायु तथा वनस्पति प्रदेशों के अनुसार पायी जाती है जिसे दो मुख्य भागों में विभक्त किया जाता है- पेडाल्फर और पेड़ोंकाल। पेडाल्फर में एल्युमिनियम तथा लोहा की मात्रा अधिक होती है और यह वन प्रदेशों तथा लम्बी घासों वाले प्रदेशों में विकसित होती है। वनप्रदेश की पेडाल्फर मिट्टियों में पाडजाल, पाडजालिक और लेटराइट मुख्य हैं। लम्बी घास वाले प्रदेशों की प्रमुख मिट्टियां प्रेयरी मिट्टी और लाल तथा पीली मिट्टी हैं। पेडोकाल में कैल्शियम की प्रधानता होती है। इसमें तीन प्रमुख मृदा समूह सम्मिलित हैं- चरनोजम, भूरी स्टेपी तथा मरुस्थलीय मिट्टी। पेडाल्फर तथा पेडोकाल के अतिरिक्त टुंड्रा मिट्टी भी कटिबंधीय मिट्टी है जो अत्यधिक निम्न तापमान के कारण बहुत कम विकसित हो पाती है।

कटिबंधांतरिक मिट्टी[संपादित करें]

कटिबंधीय मिट्टियों के बीच-बीच में बिखरे रूपों के पायी जाने वाली मिट्टी को कटिबंधांतरिक मिट्टी कहते हैं। इसके ऊपर मुख्यतः मूल चट्टानों, अपक्षय, वाष्पीकरण, जल रिसाव आदि का प्रभाव होता। चूना पत्थर से निर्मित रेंडजीना मिट्टी, लावा से उत्पन्न रेंगूर (काली) मिट्टी इसके उदाहरण हैं।

अपार्श्विक मिट्टी[संपादित करें]

इस मृदावर्ग पर मिट्टी-निर्माण की किसी ms प्रक्रिया विशेष का प्रभाव नहीं होता है तथा उनमें विभिन्न संस्तरों का विकास नहीं हो पाता है। जलोढ़, हिमोढ़ तथा वायूढ़ या लोएस इसी प्रकार की मिट्टियाँ हैं जो स्थानांतरित होते रहने के कारण प्रायः पूर्ण विकसित (परिपक्व) नहीं हो पाती हैं।

सन्दर्भ[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]