रबी की फ़सल

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रबी की फसल उत्तर भारत में अक्टूबर और नवंबर माह के दौरान बोई जाती है जो कम तापमान में बोई जाती है, फसल की कटाई फरवरी और मार्च महीने मैं की जाती है। इसी के साथ में मध्यप्रदेश में रब्बी की फसलें अधिकतर आलू लहसुन प्याज गाजर और मूली चुकंदर इसी के साथ गराडू रतालू और प्याज के बीज बनाने के लिए झब्बू लगाए जाते हैं परंतु मध्यप्रदेश में अधिकतर किसानों को जल की कमी होने के कारण यहां आलू मुख्य रूप से लगाए जाते हैं

रबी की फ़सल[संपादित करें]

गेहूँ

रबी की फ़सल सामान्यतः अक्तूबर-नवम्बर के महिनों में बोई जाती हैं। इन फसलों की बुआई के समय कम तापमान तथा पकते समय खुश्क और गर्म वातावरण की आवश्यकता होती है। उदाहरण के तौर पर गेहूँ, जौ,आलू, चना, मसूर, अलसी, मटर व सरसों रबी की प्रमुख फसलें मानी जाती हैं।

परिचय[संपादित करें]

आलू, गेहूं, जौ,मसूर, चना, अलसी, मटर व सरसों रबी की प्रमुख फसलें हैं,

बुवाई की तैयारी[संपादित करें]

सर्वप्रथम माह जून के अंतिम सप्ताह में बारिश होने के बाद दो बार खेत की जुताई करते हैं तथा सितम्बर में एक बार व अक्टूबर में दो बार जुताई करते हैं। सूखा क्षेत्र होने के कारण वर्ष में एक ही बार फसल की बुवाई करते हैं। फसल का चयन करते समय अलग-अलग लम्बाई की जड़ों (मूसला व जकड़ा जड़) वाली फसल जैसे- गेहूं, चना, अलसी, सरसों आदि की बुवाई एक साथ करते हैं। क्योंकि कठिया गेहूं की जड़ दो से तीन इंच लम्बी होती है, चना की जड़ 6 से आठ इंच तक लंबी होती है, जबकि अलसी एवं सरसों की मूसला जड़े चार से पांच इंच तक लंबी होने के कारण पौधों को निरंतर नमी मिलती रहती है और उत्पादन अधिक होता है। घर पर संरक्षित व सुरक्षित देशी बीजों का प्रयोग करते हैं। एक एकड़ खेत में मिश्रित बुवाई करने के लिए कठिया गेहूं 20 किग्रा., देशी चना 20 किग्रा. अलसी 6 किग्रा. व सरसों 2 किग्रा. को मिलाकर बुवाई करते हैं।

बुवाई का समय व विधि[संपादित करें]

अक्टूबर माह के अंतिम सप्ताह या दीपावली के पहले बुवाई करते हैं। इसके लिए सभी बीजों कठिया गेंहूं, देशी चना व अलसी तथा डी.ए.पी. खाद को एक साथ मिलाकर हल बांसा बांधकर बुवाई करते हैं। बुवाई के लिए एक मज़दूर भी लगाते है। अर्थात् एक मज़दूर हल को पकड़ता है तथा दूसरा बीज को बांसा में डालता जाता है तब बुवाई होती है। बीज की बुवाई 3 से 4 इंच की गहराई पर करते हैं। इसके बाद सरसों की बुवाई कूंड अर्थात् लाइन में करते हैं। लाइन से लाइन की दूरी 5 से 6 इंच की होती है।

रोग व कीट नियंत्रण[संपादित करें]

शीत काल में हुई वर्षा को महावट कहते हैं। जाड़े में जब महावट अधिक होती है, तब कठिया गेहूं में खैरा रोग लग जाता है। इससे बचाव के लिए बाज़ार से म्लड्यू पाउडर लेकर राख के साथ मिलाकर छिड़काव कर देते हैं। अगर महावट एक भी नहीं होती है, तब कठिया गेंहू, देशी चना के साथ सरसों, अलसी की भी पैदावार अच्छी हो जाती है।

निराई व देख-रेख[संपादित करें]

फसल की बढ़वार होती रहे, इसके लिए समय-समय पर खेत की निराई-गुड़ाई की जाती है। इससे एक तरफ तो हमारा खेत साफ रहता है और दूसरी तरफ जानवरों के लिए चारा भी उपलब्ध हो जाता है। साथ ही इसी बहाने खेत की देख-रेख एवं छुट्टा पशुओं से बचाव भी होता रहता है तथा निराई-गुड़ाई करने से उपज भी अच्छी प्राप्त होती है।

कटाई का समय[संपादित करें]

फसल की कटाई फरवरी के अंतिम सप्ताह से लेकर मार्च के अंतिम सप्ताह तक हो जाती है। कटने के बाद फसल को खुब अच्छी तरस सुखाते हैं, तब मड़ाई करते हैं। एक एकड़ फसल की मड़ाई पांच से छः दिनों में होती है। थ्रेसर से इसकी मड़ाई नहीं करते हैं, क्योंकि एक तो चना फूट जाता है और अलसी भूसा के साथ उड़ जाने से किसान का नुकसान होता है, दूसरे मड़ाई से निकला भूसा मुलायम होता है, जिसे पशु बड़े चाव से खाते हैं। मड़ाई करने के बाद हाथ से ओसाई करके भूसा व अनाज अलग करते हैं।[1]

उदाहरण[संपादित करें]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]