विकिरण चिकित्सा

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आयनकारी विकिरण का उपयोग करके की जाने वाली चिकित्सा विकिरण चिकित्सा (Radiation therapy या radiotherapy) कहलाती है। यह प्रायः कैंसर के उपचार में खराब (malignant) कोशिकाओं को मारने के काम आती है।विकिरण चिकित्सा पद्धति मानव चिकित्सा का वह औषधीय अनुशासन है जिसके द्वारा कैंसर तथा कुछ अन्य रोगों की चिकित्सा या रोकथाम विकीरण के चिकित्सीय अनुप्रयोग में विशेष विशेषज्ञता वाले रेडिएशन थेरापिस्ट द्वारा किया जाता है।मुख्य रूप से विकिरण चिकित्सा की दो तकनीकें हैं = टेलीथेरेपी तथा ब्रैकी थैरेपी।टेलीथेरापी से चिकित्सा के भी बहुत से आयाम हैं जैसे_ कन्वेन्शनल टेलीथेरापी, (त्रि आयामी कन्फर्मल रेडियोथेरापी)टेलीथेरापी,आइएमआरटी(इन्टेन्सिटी मॉडूलेटेड रेडियोथेरापी),एक्स नाईफ,गामा नाईफ,टोमोथेरापी,इलेक्ट्रॉन थेरापी,इन्ट्राऑपरेटिव टेलीथेरापी आदि।इसी प्रकार ब्रेकीथेरापी की भी अलग अलग तकनीक है जैसे कन्वेंशनल,थ्री डी कन्फर्मल तथा इन्टेंसिटी मॉडूलेटेल ब्रेकीथेरापी।

विकिरण चिकित्सा विभाग के प्रमुख अवयव[संपादित करें]

ओपीडी,वार्ड,डे केयर, ट्यूमर बोर्ड,लेक्चर हॉल,विभागीय पुस्तकालय,मोल्ड रुम,सिमुलेशन युनिट(प्लानिंग तथा वेरिफिकेशन),ट्रिटमेंट युनिट(टेलीथेरापी- कोबाल्ट युनिट/लिनैक युनिट/गामा नाईफ/साइबर नाइफ, ब्रैक़ीथेरापी युनिट),ट्रीटमेंट प्लानिंग यूनिट-टीपीएस,पेडिएट्रिक/ बालक कक्ष,सामान्य कक्ष,प्रतीक्षालय,नर्सिंग स्टेशन,स्टोर कक्ष,विकिरण सक्रिय तत्व संरक्षण कक्ष,वेस्ट मैनेजमेंट युनिट

ब्रैकीथेरापी[संपादित करें]

इस तकनीक मे रेडियोसक्रिय तत्व को ट्यूमर के पास रखकर इलाज किया जाता है।पूर्व मे रेडियोसक्रिय रेडियम का प्रयोग होता था किन्तु वर्तमान समय मे उसके प्रतिकूल प्रभावों को जानकर इस तत्व के प्रयोग को बहुत हद तक कम कर दिया गया है।वर्तमान समय में इरेडियम - १९२ तथा कोबाल्ट-६० का प्रयोग सर्वाधिक होता है।रेडियोसक्रिय तत्वों को इस चिकित्सा विधि मे प्रयोग के दो तकनीक हैं _ प्री लोडिंग तथा आफ्टर लोडिंग। आफ्टर लाोडिंग के भी दो तरीके हैं _ मैनूअल तथा रिमोट।प्रीलोडिंग तथा मेन्यूअल लोडिंग का प्रतिकूल प्रभाव जान अब अधिकांशतः रिमोट आफ्टर लोडिंग द्वारा ही चिकित्सा दी जाती है।विकरण मे उपयोग किए जाने वाले तत्वों के सक्रियता के आधार पर भी ब्रैकीथेरापी के कई प्रकार हैं जैसे _ लो डोज रेट, मिडियम डोज रेट,पल्स डोजरेट,हाइ डोजरेट आदि।रुग्न शरीर मे रेडियोसक्रिय तत्वों को स्थापित करने के हिसाब से भी इलाज के कइ तरीके है-इन्ट्राल्यूमिनल,इन्ट्राकैविट्री,इंट्रावेनस,इन्टरस्टिशियल इम्पालान्ट,सरफेस माल्ड टेकनीक।ब्रैकीथेरापी से इलाज हेतू डोज देने के अनेक तरीके समय समय पर विकसित किए गये जैसे - स्टॉकहोम सिस्टम, मैनचेस्टर सिस्टम,क्वीम्बी सिस्टम,पैटरसन पार्कर सिस्टम आदि।

टेलीथेरापी[संपादित करें]

इस तकनीक में दूर से विकिरण द्वारा इलाज किया जाता है।शुरुजात में रेडियम सिजियम आदि रेडियो सक्रिय तत्वों के द्वारा इलाज होता था।किन्तु वातावरण की हानि तथा इस पद्धति से ईलाज में सक्रीय चिकित्साविदों (रेडिएशन थेरापिस्ट) के स्वास्थ पर प्रतिकूल प्रभाव जान कर इन तत्वों का प्रयोग धीरे धीरे बहुत हद तक कम कर दिया गया है।रेडियम का बाइ प्रोडक्ट रेडॉन गैस बनता है जो कर्क रोग अर्थात् कैंसर कारक है।वर्तमान् में टेलीकोबाल्ट तथा लिनैक (लिनियर एक्सेलेरेटर) के द्वारा इलाज किया जाता है।विकिरण के प्रकार को ध्यान मे रखकर टेलीथेरापी के निम्न प्रकार हैं _ १ फोटोन थेरापी २ इलेक्ट्रॉन थेरापी ३ प्रोटॉन थेरापी ४ कार्बन आयन थेरापी ५ न्यूट्रॉन थेरापी ६ ड्यूट्रॉन थेरापी ७ हैवी आयन थेरापी।किन्तु पूरे विश्व मे अभी फोटोन, प्रोटॉन तथा इलेक्ट्रॉन थेरापी ही सर्वाधिक प्रयुक्त हैं।

फोटोन थेरापी[संपादित करें]

फोटोन का अर्थ है ऊर्जा की थैली, सामानतया एक्स रे तथा गामा रे को फोटोन कहते हैं।इनका न तो द्रव्यमान होता है न ही इनपर कोई चार्ज।टेली फोटोन थेरापी मे कोबाल्ट टेलीथेरापी मशीन (जैसे - जेनस,थेराट्रान,भाभाट्रोन,गामा नाईफ आदि) तथा लिनियर एक्सेलेरेटर मशीन (जैसे-क्लीनेक,प्राइमस,ट्रूबीम,आर्टिस्ट,ट्रायलॉजी,साइबर नाइफ,टोमो आदि) के द्वारा फोटोन थेरापी दिया जाता है।फोटोन थेरापी के प्रकार हैं -कन्वेशनल,थ्री डी कन्फर्मल,आईएमआरटी,स्टिरियोटैक्सी।द्वि आयामी (टू डाइमेंशनल),त्रि आयामी (थ्री डाइमेंसनल) तथा चतुर्आयामी (फोर डाइमेम्शनल) तकनीको से फोटोन थेरापी संभव है।द्वि आयामी तकनीक मे मात्र दो आयामों(एक्स तथा वाइ ) मे ही ट्यूमर की उपस्थिति विचार कर इलाज किया जाता है।त्रिआयामी तकनीक मे एक्स वाइ तथा जेड तीनों आयामों में गाँठ की स्थिति निश्चित कर इलाज किया जाता है।फोर डी या फोर डायमेंशनल या चतु: आयामी रेडियोथेरापी मे चौथा डायमेंशन टाइम अर्थात् समय को माना जाता है।समय के साथ लीनों आयामों /डाइमेशन (एक्स वाइ जेड) मे ट्युमर के स्थिति मे श्वसन आदि क्रियाओं के कारण संभव परिवर्तन को देखकर विकीरण चिकित्सा दी जाती है।

इलेक्ट्रॉन थेरापी[संपादित करें]

इलेक्ट्रॉन कणों को उच्च उर्जा पर एक्सेलेरेट करवा कर या बीटा एमीटर रेडियोसक्रीय तत्वों के द्वारा इलेक्ट्रॉन कणों को चिकित्सा के लिए प्रयोग मे लाया जाता है।इलेक्ट्रॉन कणों मे द्रव्यमान तथा चार्ज होता है इसी प्रकृति के कारण इनकी उपयोगिता कुछ ट्युमर्स के उपचार मे और अधिक बढ जाती है।

इमेज गाइडेड रेडियोथेरापी(आइजीआरटी)[संपादित करें]

जब विकीरण चिकित्सा प्रतिबिंब/इमेज (एक्स-रे,सीबीसीटी,ओ बी आइ टू डी इमेज,सीटी इमेज,टोमो मेगावोल्ट इमेज,फ्लूरोस्कोपी इमेज,एमआरआई इमेज,यूएसजी/अल्ट्रासोनोग्राफिक इमेज आदि) आधारित हो ।अर्थात् रुग्न व्यक्ति की वर्तमान स्थिति पूर्वनिश्चित योजनानुसार उचित जानकर चिकित्सीय किरण द्वारा इलाज करना आइजीआरटी कहा जाता है।इस तकनीक के आ जाने से निश्चित स्थान पर सटीक विकीरण डोज दिया जाना आसान हो गया है।पहले एक्स रे लेकर एक्स रे फिल्म पर प्लानिंग तथा वेरिफिकेशन होता था।उसके बाद कैमरा बेस्ड इलेक्ट्रानिक पोर्टल डिवाईस>एमोरफस सिलिकॉन बेस्ड इपिड>ओबीआई (ऑन बोर्ड इमेज़िंग , एमोरफस सिलिकॉन पैनल)>कोन बीम कम्प्युटेड टोमोग्राफी।पहले वेरिफिकेशन मे केवल मेगावोल्ट का ही प्रयोग होता था।मेगावोल्ट बीम से इमेज क्वालिटी अच्छी न मिलती थी ।किंतु अब किलोवोल्ट से भी वेरिफिकेशन ईमेजिंग संभव है।डिफरेंशियल एब्शॉशॉर्पशन के कारन के. वी. ईमेज की गुणवत्ता उच्चतर होती है।

मोल्ड रुम[संपादित करें]

यह रेडियो विकीरण विभाग का वह कक्ष है जहाँ मरीजों को चिकित्सा प्रणाली के विषय मे पूर्ण जानकारी दे कर इलाज तथा इलाज की तैयारी के दौरान उनसे सहयोग की आकाञ्क्षा की जाती है।सभी जाँच तथा चिकित्सिय वर्ग की परिचर्चा के पश्चात जब किसी को विकिरण चिकित्सा देना निश्चित हो जाता है तो उन्हे इस चिकित्सा के विषय मे सब कुछ समझाकर सबसे पहले मोल्ड रूम भेजा जाता है।यहाँ पुनः उन्हे सारी बाते समझाई जाती हैं।फिर इलाज के लिए आवश्यक मरीज की एक पार्टिकुलर पोजिशन निश्चित कर उन्हे पुनः इस विषय मे समझाया जाता है।मरीज का पोजिशन निश्चित करते समय मरीजो के लिए यथासंभव आरामदायक तथा सीधी स्थिति को चुना जाता है।मरीज को आरामदायक स्थिति देने के लिए कुछ उपकरणों का भी प्रयोग किया जा सकता है - जैसे फोम पैड फुट रेस्ट आदि।एसे उपकरण पेशेंट कंफर्ट डिवाइस कहे जाते हैं।इसके पश्चात् शरीर के जिस भाग मे विकिरण देना हो उसे कुछ उपकरणों की सहायता से स्थिर किया जाता है।ऐसे उपकरणों को इमोबिलाइजेशन डिवाइस कहते हैं।(मास्क,ब्लू बैग,वैक लॉक,अल्फा क्रैडल,सैण्ड बैग आदि कुछ प्रचलित इमोबिलाइजेशन डिवाइस हैं)इन सब के पश्चात् मरीज को प्लानिंग के लिए सिमुलेशन युनिट मे भेज दिया जाता है।इसके अलावा मोल्ड रूम युनिट मे शिल्डिंग ब्लॉक, एम एल सी, बोलस, कम्पनशेटर आदि भी बनाये जाते हैं।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

जानकारी
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