भारतीय भाषा संस्थान

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केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान (सीआईआईएल), मैसूर, जो मानव संसाधन विकास मंत्रालय का एक अधीनस्थ कार्यालय है, की स्थापना भारत सरकार की भाषा नीति का विकास और उसे कार्यान्वित करने के लिए और भाषा विश्‍लेषण, भाषा शिक्षा शास्त्र, भाषा प्रौद्योगिकी और समाज में भाषा-प्रयोग के क्षेत्रों में अनुसंधान के द्वारा भारतीय भाषाओं के विकास को समन्वित करने के लिए की गई थी।

उद्देश्य[संपादित करें]

  • भारतीय भाषा संस्थान भाषा के मामलों में केंद्र व राज्य सरकारों को सलाह एवं सहायता प्रदान करता है।
  • संस्थान विषयवस्तु व कॉर्पस निर्माण द्वारा सभी भारतीय भाषाओं के विकास में योगदान देता है।
  • यह गौण, अल्पसंख्यक एवं आदिवासी भाषाओं का प्रलेखीकरण व उनका संरक्षण करता है।
  • भारतीय भाषा संस्थान 15 भारतीय भाषाओं में द्वितीय-भाषा शिक्षार्थियों को शिक्षण देकर भाषाई सद्भाव को बढ़ावा देता है।[1]

सीआईआईएल, मैसूर के उद्देश्यों को निम्नलिखित चार श्रेणियों की योजनाओं के अतंर्गत कार्यान्वित किया जाता हैं-

प्रथम योजना : भारतीय भाषाओं का विकास[संपादित करें]

इस योजना का उद्देश्य अनुसंधान, मानव संसाधनों के विकास और जनजातीय/लघु/अल्पसंख्यक भाषाओं सहित आधुनिक भारतीय भाषाओं में, में सामग्री का उत्पादन करके भारतीय भाषाओं का विकास करना है।

द्वितीय योजना : क्षेत्रीय भाषा केन्द्र[संपादित करें]

इस योजना का उद्देश्य सरकार के त्रिभाषा सूत्र का कार्यान्वयन और शिक्षण सामग्री तैयार करना है। राज्य सरकारों और संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा प्रतिनियुक्त माध्यमिक स्कूल शिक्षकों को उनकी मातृभाषा से इतर भाषाओं में प्रशिक्षित किया जाता है। सात क्षेत्रीय भाषा केन्द्र शिक्षक-प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करते हैं।

प्रशिक्षण के अलावा, इस संबंध में शिक्षण सामग्री तैयार करने के लिए अनेक कार्यशालाएं और सेमिनार भी आयोजित किए जाते हैं। इनके अलावा, पूर्व-शिक्षक प्रशिक्षणार्थियों के लिए राष्ट्रीय एकीकरण शिविर और पुनश्‍चर्या पाठयक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।

तृतीय योजना : सहायता -अनुदान[संपादित करें]

भारतीय भाषाओं में, जनजातीय भाषाओं सहित (हिन्दी, उर्दू, सिंधी, संस्कृत और अंग्रेजी को छोडकर) प्रकाशनों के लिए अलग-अलग व्यक्तियों और स्वैछिक संगठनों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।

चतुर्थ योजना : केन्द्रीय प्राचीन तमिल संस्थान, चैन्नई[संपादित करें]

केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने 30/1/08 को हुई बैठक में चैन्नई में केन्द्रीय प्राचीन भाषा संस्थान गठित करने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय के प्रस्ताव को अनुमोदित कर दिया।

केन्द्रीय प्राचीन तमिल संस्थान, चैन्नई में गठित एक स्वायत संस्था होगी जिसके लिए तमिल सरकार नें संस्था के लिए नि:शुल्क 17 एकड भूमि आवंटित की है। केन्द्र सरकार, संस्थान का 100% निधियन करेगी। इसके लिए 149 स्टाफ की परिकल्पना की गई है जिसमें 79 शिक्षण और 70 गैर शिक्षण स्टाफ होगा।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री को शासी परिषद के पदेन अध्यक्ष के रूप में निर्दिष्ट किया गया है, इस संस्थान के 12 विभाग होंगे।

प्राचीन तमिल भाषा विकास के लिए विद्यमान केन्द्रीय योजना को केन्द्रीय प्राचीन तमिल संस्थान में सम्मिलित किया जाएगा।

केन्द्रीय प्राचीन तमिल संस्थान के संगम ज्ञापन को तमिलनाडु राज्य सरकार को भेजा गया है और सरकार को संस्थान को रजिस्ट्रार ऑफ सोसायटीज, चैन्नई के साथ पंजीकृत करने के लिए अनुरोध किया गया है।

प्रादेशिक केन्द्र[संपादित करें]

संस्थान के पाँच क्षेत्रीय केंद्र 15 भारतीय भाषाओं में प्रशिक्षण प्रदान कर रहे हैं। इसके दो अतिरिक्त केंद्र भी हैं जो विशेष रूप से उर्दू शिक्षण एवं अनुसंधान को समर्पित हैं। प्रत्येक केंद्र में एक प्रधान, संबंधित शिक्षक वर्ग एवं सहायक प्रशासकीय व तकनीकी कर्मचारी हैं।

केंद्र का नाम स्थान स्थापना वर्ष पढ़ाई जानेवाली भाषाएँ
पूर्व क्षेत्रीय भाषा केंद्र लक्ष्मीनगर 1970 असमिया
पूर्व क्षेत्रीय भाषा केंद्र भुवनेश्वर बंगाली, उड़िया
पश्चिम क्षेत्रीय भाषा केंद्र दक्कन महाविद्यालय 1970 गुजराती
पश्चिम क्षेत्रीय भाषा केंद्र पुणे मराठी, सिन्धी
दक्षिण क्षेत्रीय भाषा केंद्र मानस गंगोत्री 1970 कन्नड़
दक्षिण क्षेत्रीय भाषा केंद्र मैसूर मलयालम, तमिल, तेलुगू
उत्तर क्षेत्रीय भाषा केंद्र पटियाला विश्वविद्यालय 1970 पंजाबी कश्मीरी, उर्दू
पूर्वोत्तर क्षेत्रीय भाषा केंद्र गुवाहाटी 1989 मणिपुरी, नेपाली
उर्दू शिक्षण एवं अनुसंधान सैप्रोन सोलन हिमांचल प्रदेश 1973 उर्दू
उर्दू शिक्षण एवं अनुसंधान केंद्र 10-ए मोहनमोहन मालवीय मार्ग 1984 उर्दू

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "भारतीय भाषा संस्थान : उद्देश्य व लक्ष्य". मूल से 6 जनवरी 2021 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 दिसंबर 2020.

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]