"जलना या जल जाना": अवतरणों में अंतर

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20:55, 31 जनवरी 2014 का अवतरण

Burn
वर्गीकरण एवं बाह्य साधन
Second-degree burn of the hand
आईसीडी-१० T20.T31.
आईसीडी- 940949
डिज़ीज़-डीबी 1791
मेडलाइन प्लस 000030
ईमेडिसिन article/1278244 
एम.ईएसएच D002056

जलना या जल जाना मांस (मानव देह) या त्वचा की एक प्रकार की चोट है जो कि ऊष्मा, विद्युत, रसायनों, घर्षण या विकिरण के द्वारा हो सकती है।[1] जलने के वे घाव जो सिर्फ ऊपरी त्वचा को प्रभावित करते हैं, उन्हें सतही या प्रथम डिग्री के जलने के घाव के रूप में जाना जाता है। जब क्षति कुछ भीतरी परतों में प्रवेश कर जाती है तो इसको आंशिक घनत्व अथवा दूसरी डिग्री का जलना कहते हैं। पूर्ण-घनत्व अथवा तीसरी डिग्री के जलने में चोट त्वचा की सभी परतों तक फैल जाती है। चौथी डिग्री के जलने में इसके अतिरिक्त गहरे ऊतकों की चोट भी सम्मिलित होती है, जैसे मांसपेशियां अथवा अस्थियां

उपचार की आवश्यकता जलने की गंभीरता पर निर्भर करती है। सतही चोटों का प्रबंधन सामान्य दर्द निवारकों के द्वारा किया जा सकता है, जबकि जलने के बड़े घावों के लिए विशेष जलन केन्द्रों में लम्बे उपचार की आवश्यकता हो सकती है. नल के पानी से ठंडा करने से दर्द को दूर करने में सहायता मिल सकती है और हानि को कम किया जा सकता है; हालाँकि लम्बे समय तक ऐसा करने से शरीर का तापमान सामान्य से कम होने का जोखिम हो सकता है। आंशिक घनत्व की जलन में साबुन तथा पानी से साफ़ करके पट्टी करने की आवश्यकता हो सकती है। हालाँकि फफोलों का प्रबंधन पूर्णतया स्पष्ट नहीं है, फिर भी उन्हें वैसे ही छोड़ देना उचित होगा। पूर्ण-घनत्व की जलन में आमतौर पर शल्य-क्रियात्मक उपचार, जैसे त्वचा प्रत्यारोपण की आवश्यकता पड़ती है। व्यापक जलन के मामलों में बड़ी मात्रा में अंतःशिरा तरल पदार्थ दिए जाते हैं क्योंकि बाद की सूजन की प्रतिक्रिया से बड़ी मात्रा में केशिकीय द्रव रिसाव तथा त्वचा शोथ होता है। जलने की सबसे आम जटिलतायें संक्रमण से संबंधित होती हैं।

हालाँकि जलने के घाव जानलेवा हो सकते हैं, फिर भी 1960 के बाद विकसित आधुनिक उपचारों से परिणामों में काफी सुधार हुआ है, विशेष रूप से बच्चों तथा किशोरों के मामलों में। [2] वैश्विक रूप से लगभग 11 मिलियन लोगों को चिकित्सकीय उपचार की आवश्यकता पड़ती है तथा 3,00,000 लोगों की मृत्यु जलने से प्रतिवर्ष हो जाती है। [3] संयुक्त राष्ट्र अमरीका में जलन उपचार केन्द्रों में भर्ती होने वाले लगभग 4% मरीजों की मृत्यु उनकी चोटों के कारण हो जाती है। [4] जलने के दीर्घकालिक परिणाम मुख्य रूप से जलन के आकार और प्रभावित व्यक्ति की उम्र से संबंधित होते हैं।

लक्षण तथा निदान

जलने की चोट के विशिष्ट लक्षण इसकी गहराई पर निर्भर करते हैं. सतही जलन का दर्द दो या तीन दिन तक बना रहता है, जिसके पश्चात कुछ दिनों में उस स्थान की त्वचा निकल जाती है। [5][6] वे लोग जिन्हें जलने से इससे अधिक गहरा जख्म होता है, उनमें दर्द के स्थान पर असुविधा अथवा दबाव के लक्षण प्रकट होते हैं। पूर्ण-घनत्व की जलन चोटों में हलके स्पर्श अथवा चुभन के प्रति असंवेदना प्रदर्शित होती है। [6] सतही जलन आमतौर पर लाल रंग की दिखती हैं, जबकि गहरे जलने के घाव का रंग गुलाबी, सफ़ेद अथवा काला हो सकता है। [6] मुंह के आसपास की जलन अथवा नाक के बालों का झुलस जाने से ऐसे संकेत प्रदर्शित हो सकते हैं कि वायुमार्ग में जलन पैदा हो गयी हो, मगर ये निष्कर्ष पूरी तरह निश्चित नहीं हैं।[7] इससे भी अधिक चिंताजनक लक्षणों में शामिल हैं: सांस लेने में तकलीफ, गला बैठना, तथा सांस लेने में सीटी जैसा स्वर आना अथवा घरघराहट[7] घाव भरने की प्रक्रिया के दौरान खुजली होना सामान्य है, 90% वयस्कों में तथा लगभग सभी बच्चों में यह प्रदर्शित होती है। [8] बिजली से जलन की चोट के बाद लम्बी अवधि तक सुन्न होना या झुनझुनी बनी रह सकती है। [9] जलने की चोटों के परिणामस्वरूप भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक संकट उत्पन्न हो सकता है। [3]

Type[10] Layers involved Appearance Texture Sensation Healing Time Prognosis Example
Superficial (First degree) Epidermis[5] Red without blisters[10] Dry Painful[10] 5-10 days[10][11] Heals well;[10] Repeated sunburns increase the risk of skin cancer later in life[12] A sunburn is a typical first degree burn.
Superficial partial thickness (Second degree) Extends into superficial (papillary) dermis[10] Redness with clear blister. Blanches with pressure.[10] Moist[10] Very painful[10] less than 2–3 weeks[10][6] Local infection/cellulitis but no scarring typically[6]

Second degree burn of the thumb

Deep partial thickness (Second degree) Extends into deep (reticular) dermis[10] Yellow or white. Less blanching. May be blistering.[10] Fairly dry[6] Pressure and discomfort[6] 3–8 weeks[10] Scarring, contractures (may require excision and skin grafting)[6] Second-degree burn caused by contact with boiling water
Full thickness (Third degree) Extends through entire dermis[10] Stiff and white/brown[10] No blanching[6] Leathery[10] Painless[10] Prolonged (months) and incomplete[10] Scarring, contractures, amputation (early excision recommended)[6] Eight day old third-degree burn caused by motorcycle muffler.
Fourth degree Extends through entire skin, and into underlying fat, muscle and bone[10] Black; charred with eschar Dry Painless Requires excision[10] Amputation, significant functional impairment and, in some cases, death.[10] 4th degree burn

कारण

जलने की चोटें अनेक प्रकार के बाहरी कारणों से लग सकती हैं जिन्हें ऊष्मीय, रासायनिक, विद्युतीय, और विकिरण के रूप में वर्गीकृत किया गया है। [13] संयुक्त राज्य अमेरिका में जलने के सबसे आम कारण निम्न हैं: आग या ज्वाला (44%), किसी गर्म द्रव (जैसे पानी) से जलना (33%), गर्म वस्तुएं (9%), विद्युत (4%), तथा रसायन (3%).[14] अधिकांश (69%) जलने की चोटें घर पर अथवा कार्यक्षेत्र में लगती हैं (9%),[4] तथा अधिकांश दुर्घटनावश लगती हैं, 2% किसी अन्य के द्वारा हमले के कारण, तथा 1-2% आत्महत्या के प्रयास के कारण होती हैं।[3] ये स्रोत श्वांसपथ तथा/अथवा फेफड़ों की चोट का कारण बन सकते हैं, लगभग 6% मामलों में ऐसा होता है। [15]

जलने की चोटें गरीब व्यक्तियों को अधिक लगती हैं। धूम्रपान एक जोखिम कारक है हालांकि, शराब का उपयोग जोखिम कारक नहीं है। अग्नि के कारण लगने वाली जलन की चोटें ठन्डे वातावरण वाले स्थानों में अधिक लगती हैं. [3] विकासशील विश्व के विशिष्ट जोखिम कारकों में खुली आग पर अथवा फर्श पर खाना पकाना शामिल हैं। [1] इसके साथ ही बच्चों में विकासात्मक विकलांगता तथा वयस्कों के जीर्ण रोग भी इसके कारण हैं। [16]

ऊष्मीय

संयुक्त राज्य अमेरिका में आग और गर्म तरल पदार्थ जलने के सबसे आम कारण हैं।[15] घरों में लगने वाली आग, जो कि मृत्यु का कारण बनती है, 25% धूम्रपान के कारण तथा 22% हीटिंग उपकरणों के कारण लगती है। [1] लगभग आधे मामलों में चोटों का कारण आग बुझाने के प्रयास होता है. [1] स्कैल्डिंग (तप्त द्रव से जलना) गर्म तरल पदार्थों अथवा गैसों के कारण होती है, मुख्य रूप से यह गर्म पेय पदार्थों, स्नानघर अथवा शावर में गर्म नल के पानी, गर्म खाद्य तेलों अथवा भाप के कारण होती है। [17] स्कैल्ड (तप्त द्रव से जलना) चोटें पाँच साल से छोटे बच्चों में सबसे आम हैं [10] तथा संयुक्त राष्ट्र अमेरिका व ऑस्ट्रेलिया में ये जलने की कुल चोटों का दो-तिहाई के लिए उत्तरदायी हैं। [15] बच्चों के जलने के 20-30% मामलों में कारण गर्म वस्तुओं के संपर्क में आना होता है। [15] स्कैल्ड सामान्य तौर पर प्रथम अथवा द्वितीय डिग्री की जलन होती है, परन्तु लम्बे संपर्क के कारण तृतीय डिग्री की जलन भी हो सकती है। [18] आतिशबाजी कई देशों में छुट्टियों के दौरान जलने का प्रमुख कारण है। [19] किशोर पुरुषों के लिए यह एक विशेष खतरा है।[20]

रसायन

जलने के कुल मामलों में से 2 से 11% रसायनों के कारण होते हैं, साथ ही जलने के कारण होने वाली मौतों में से 30% रसायनों के कारण होती हैं। [21] रसायनों के कारण से जलना 25,000 से अधिक पदार्थों की वजह से हो सकती है,[10] जिनमें से अधिकाँश या तो प्रबल क्षार (55%) अथवा प्रबल अम्ल (26%) होते हैं।[21] रासायनिक जलन से होने वाली अधिकांश मौतें अंतर्ग्रहण के पश्चात होती हैं।[10] इनमें कई रसायनों के साथ ही कुछ प्रमुख रसायन हैं सल्फ्यूरिक अम्ल जो कि टॉयलेट क्लीनर्स में पाया जाता है, सोडियम हाइपोक्लोराईट जो कि ब्लीच में पाया जाता है, तथा हैलोजिनेटेड हाइड्रोकार्बन्स जो कि पेंट रिमूवर्स में पाया जाता है।[10] हाइड्रोफ्लोरिक अम्ल विशेष रूप से गहरी जलने की चोटें उत्पन्न कर सकता है, जो कि जलने के कुछ समय बाद प्रकट होती हैं। [22] फॉर्मिक अम्ल बड़ी मात्रा में लाल रक्त कणिकाओं को तोड़ देता है।[7]

विद्युतीय

विद्युतीय जलन अथवा चोटों को को उच्च वोल्टेज (1000 वोल्ट अथवा उससे अधिक), निम्न वोल्टेज (1000 वोल्ट से कम) अथवा किसी विद्युत आर्क से बने फ्लैश बर्न के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। [10] बच्चों में बिजली से जलने का सबसे आम कारण बिजली के तारों (60%) के पश्चात बिजली के आउटलेट (14%) हैं। [15] आकाशीय विद्युत के कारण भी बिजली से जलने की चोट लग सकती है। [23] आकाशीय विद्युत के गिरने के जोखिम कारकों में बाहर की गतिविधियों में शामिल होना, जैसे पर्वतारोहण, गोल्फ तथा मैदान में खेले जाने वाले अन्य खेल तथा बाहर किये जाने वाले अन्य काम भी शामिल हैं। [9]बिजली गिरने से होने वाली मृत्युदर लगभग 10% है।[9]

हालाँकि बिजली से लगने वाली चोटें मुख्य रूप से जलने से संबंधित होती हैं, परन्तु इनसे हड्डी टूटना अथवा संधिभंग भी हो सकते हैं जो कि कुंद बल आघात अथवा मांसपेशियों में संकुचन के कारण होते हैं।[9] उच्च वोल्टेज की चोटों में अधिकांश क्षति आंतरिक होती है और इसलिए चोट की व्यापकता का अंदाजा सिर्फ त्वचा के परीक्षण से नहीं लगाया जा सकता है। [9] निम्न वोल्टेज अथवा उच्च वोल्टेज के संपर्क में आने से कार्डिएक अरीद्मिया अथवा हृदयाघात हो सकता है।[9]

विकिरण

विकिरण से होने वाली जलन की चोटें अल्ट्रावॉयलेट किरणें (उदाहरण के लिए सूर्य से, टैनिंग बूथ अथवा आर्क वेल्डिंग से) अथवा आयनाइजिंग विकिरण से (उदाहरण के लिए विकिरण चिकित्सा, एक्स-रे अथवा रेडियोधर्मी राख) से दीर्घकालिक संपर्क में आने के कारण हो सकती हैं।[24] धूप में रहना, विकिरण से होने वाली जलन की चोटों के साथ ही सतही जलन की चोटों का सबसे आम कारण है। [25] अलग अलग त्वचा के प्रकारों वाले व्यक्तियों के धूप में झुलसने में महत्वपूर्ण रूप से भिन्नता है। [26] विकिरण से त्वचा पर पड़ने वाला प्रभाव उस क्षेत्र के संपर्क की मात्रा, उसके बाद में बालों का गिरना 3  ;Gy, लालिमा दिखाई पड़ना 10 Gy, गीली त्वचा की परतों का निकलना 20 Gy, तथा उतक क्षय 30 Gy पर निर्भर करता है।[27] यदि लालिमा दिखाई पड़ती है, तो यह संपर्क में आने के कुछ समय तक नहीं भी दिख सकती है। [27] विकिरण से होने वाली जलन की चोटों का इलाज अन्य जलन की चोटों की तरह ही किया जाता है। [27] माइक्रोवेव किरणों से जलना माइक्रोवेव किरणों से होने वाली उष्मीय जलन के कारण होता है। [28] हालाँकि सिर्फ दो सेकेण्ड संपर्क में आने से ही चोट लग सकती है, कुल मिलाकर यह एक असामान्य घटना है। [28]

गैर दुर्घटनावश

वे व्यक्ति जिन्हें स्कैल्ड्स अथवा जलने के कारण अस्पताल में भरती करवाया जाता है, उनमें से 3साँचा:Endash10% हमले में घायल होते हैं।[29] इसके कारणों में शामिल हैं:बच्चों के साथ दुर्व्यवहार, व्यक्तिगत विवाद, दाम्पत्य विवाद, वयस्कों का विवाद, तथा व्यापारिक विवाद। [29] बच्चों के गरम पानी से जलने अथवा स्कैल्ड वाली कोई घटना बाल उत्पीड़न से भी संबंधित हो सकती है। [18] जलने की ऐसी चोट तब लगती है जब शरीर के छोर अथवा निचले धड़ (कूल्हे अथवा मूलाधार) को गर्म पानी की सतह से नीचे रखा जाता है। [18] इसके कारण सामन्यतया एक सुस्पष्ट ऊपरी सीमा बनती है तथा यह आमतौर पर सममित होता है. [18] संभावित रूप से दुर्व्यवहार के अन्य उच्च जोखिम वाले संकेतों में शामिल हैं: परिधीय जलन की चोटें, स्प्लैश निशानों का अभाव, एक समान गहराई वाली जलने की चोटें, तथा उपेक्षा या शोषण के अन्य लक्षणों की उपस्थिति। [30]

वधु को जलाना एक प्रकार की घरेलू हिंसा है, जो कि भारत जैसी कुछ संस्कृतियों में होती है, जिसमें एक महिला को उसके पति या परिवार के द्वारा अपर्याप्त दहेज़ के कारण जला दिया जाता है। [31][32] पाकिस्तान में, जहाँ अम्ल से जलने की घटनाएं, जलने की कुल अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं में से 13% होती हैं, तथा इनमें से अधिकांश घरेलू हिंसा से संबंधित होती है। [30] आत्मदाह (विरोध के एक रूप में स्वयं को आग लगा लेना) भी भारतीय महिलाओं के बीच अपेक्षाकृत आम है। [3]

पैथोफिजियोलॉजी

जलने की तीन श्रेणियां

44 °से. (111 °फ़ै) से अधिक के तापमान पर, प्रोटीन अपने त्रिआयामी स्वरुप को छोड़ कर विघटित होना प्रारंभ हो जाते हैं। [33] इसके परिणामस्वरुप कोशिकाओं और ऊतकों को क्षति पहुंचती है। [10] स्वास्थ्य पर जलने के कई सीधे प्रभाव त्वचा के सामान्य कामकाज में व्यवधान के फलस्वरूप उत्पन्न होते हैं। [10] इनमें त्वचा में अनुभूति की कमी, वाष्पीकरण के माध्यम से पानी के नुकसान को रोकने की क्षमता, तथा शरीर के तापमान को नियंत्रित करने की क्षमता शामिल हैं। [10] कोशिका झिल्ली में क्षति के कारण कोशिकाएं बाहर के रिक्त स्थान में पोटेशियम को खोने लगती हैं तथा पानी और सोडियम को अवशोषित कर लेती हैं। [10]

जलने के बड़ी चोटों में, (जिनमें शरीर के कुल क्षेत्र का 30% या अधिक प्रभावित हुआ हो), बड़ी मात्रा में सूजन आ जाती है। [34] इसके परिणामस्वरूप केशिकाओं से तरल पदार्थों का रिसाव बढ़ जाता है, [7] तथा इसके पश्चात उतक शोथ हो जाता है।[10] यह रक्त की समग्र मात्रा के घटने का कारण बनता है, जबकि शेष रक्त में प्लाज़्मा की खासी कमी आ जाती है, जिससे कि रक्त में गाढ़ापन आ जाता है।[[ [10] अंगों]] जैसे किडनियों तथा गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल पथ में होने वाले रक्त के कम बहाव के कारण गुर्दे की विफलता तथा पेट के अल्सर जैसी स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं।[35]

कैटेकोलामाइंस तथा कॉर्टिसोल्स के बढ़े हुए स्तर के कारण हाइपरमेटाबोलिक अवस्था की स्थिति बन सकती है जो कि वर्षों तक बनी रहती है। [34] इसका सम्बन्ध बढ़े हुए कार्डियक आउटपुट, चयापचय, बढ़ी हुई ह्रदय गति तथा कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रक्रिया से है।[34]

निदान

जलन की चोटों का वर्गीकरण उनकी गहराई, चोट लगने के कारण, तथा संबंधित चोटों के आधार पर किया जा सकता है। सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला वर्गीकरण चोट की गहराई पर आधारित होता है। हालांकि जलने की गहराई को आमतौर पर परीक्षण के माध्यम से निर्धारित किया जाता है, फिर भी इसके लिए बायोप्सी का भी प्रयोग किया जा सकता है। [10] सिर्फ एक परीक्षण के द्वारा जलने की गहराई को सही-सही रूप से आंकना कठिन हो सकता है, इसके लिए कई दिनों कर परीक्षणों को दोहराने की आवश्यकता पड़ती है। [7] अग्नि से जलने वाले ऐसे व्यक्ति जिनमें सिरदर्द अथवा चक्कर आने की शिकायत हो, उनमें कार्बन मोनोऑक्साइड विषाक्तता की सम्भावना का परीक्षण किया जाना चाहिए. [36] साइनाइड विषाक्तता की सम्भावना का परीक्षण भी किया जाना चाहिए। [7]

आकार

जलन के आकार को कुल शरीर सतह क्षेत्र (टीएसबीए) के प्रतिशत के रूप में, जो आंशिक अथवा पूर्ण श्रेणी के जलन से प्रभावित हो, मापा जाता है। [10] प्रथम-श्रेणी की वे जलन जो सिर्फ रंग में लाल हों तथा जिन पर फफोले ना हों, इस आकलन में शामिल नहीं किये जाती हैं. [10] जलने की अधिकांश चोटों (70%) में टीएसबीए 10% से कम होता है। [15]

टीएसबीए को निर्धारित करने के कई तरीके हैं, जिनमें “नौ के नियम”, लुंड और ब्राऊडर चार्ट तथा व्यक्ति की हथेली के आकार के आधार पर अनुमान लगाना आदि शामिल हैं। [5] नौ का नियम याद करने में सरल है परन्तु यह 16 वर्ष से अधिक आयु वाले व्यक्तियों पर ही लागू होता है। [5] लुंड और ब्राऊडर चार्ट की सहायता से अधिक सटीक अनुमान लगाया जा सकता है, जिसमें वयस्कों और बच्चों में शरीर के अंगों के विभिन्न अनुपात को ध्यान में रखा जाता है। [5] किसी व्यक्ति के हाथ का आकार (हथेली और उंगलियों सहित) उसके टीएसबीए का लगभग 1% होता है। [5]

तीव्रता

American Burn Association severity classification[36]
Minor Moderate Major
Adult <10% TBSA Adult 10-20% TBSA Adult >20% TBSA
Young or old < 5% TBSA Young or old 5-10% TBSA Young or old >10% TBSA
<2% full thickness burn 2-5% full thickness burn >5% full thickness burn
High voltage injury High voltage burn
Possible inhalation injury Known inhalation injury
Circumferential burn Significant burn to face, joints, hands or feet
Other health problems Associated injuries

किसी विशिष्ट बर्न यूनिट के लिए रेफरल की आवश्यकता का निर्धारण करने के लिए अमेरिकी बर्न एसोसिएशन ने एक वर्गीकरण प्रणाली तैयार की है। इस प्रणाली के अन्तर्गत जलन चोटों को बड़े, मध्यम और छोटे के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। इसका निर्धारण कारकों की एक संख्या के आधार पर किया जाता है, जिसमें कुल शरीर सतह प्रभावित क्षेत्र, विशिष्ट शरीर-रचना क्षेत्रों का शामिल होना, व्यक्ति की आयु, तथा सम्बंधित चोटें शामिल हैं। [36] मामूली जलन को आमतौर पर घर पर प्रबंधित किया जा सकता है, मध्यम जलन को सामान्यतया अस्पताल में प्रबंधित किया जाता है जबकि बड़ी जलन को किसी बर्न केंद्र द्वारा प्रबंधित किया जाता है। [36]

निवारण

ऐतिहासिक दृष्टिकोण से, जलने की लगभग आधी घटनाओं से बचा जा सकता था। [1] बर्न रोकथाम के कार्यक्रमों के द्वारा जलने की गंभीर घटनाओं की दर में उल्लेखनीय कमी आई है। [33] निवारक उपायों में शामिल हैं: गर्म पानी के तापमान को सीमित करना, स्मोक अलार्म, छिड़काव प्रणाली, भवनों का उचित निर्माण और आग प्रतिरोधी कपड़े। [1] विशेषज्ञ वाटर हीटर में पानी के तापमान को 48.8 °से. (119.8 °फ़ै) से नीचे सेट करने की सिफारिश करते हैं। [15] स्कैल्ड रोकने के लिए अन्य उपायों में नहाने के पानी के तापमान को मापने के लिए एक थर्मामीटर का उपयोग तथा स्टोव पर स्प्लैश गार्ड का प्रयोग शामिल हैं। [33] हालांकि आतिशबाजी के नियमन का कोई प्रभाव स्पष्ट नहीं है, फिर भी इसके संभावित लाभों के प्रमाण उपलब्ध हैं[37] जिसमें बच्चों को आतिशबाजी की सीमित बिक्री की संस्तुति की गयी है। [15]

प्रबंधन

गंभीर व्यक्ति का उपचार व्यक्ति के श्वांसपथ, श्वास और संचलन के मूल्यांकन और स्थिरीकरण के साथ शुरू होता है. [5] श्वांस सम्बन्धी चोट के संदिग्ध होने पर शीघ्र इन्ट्यूबेशन की आवश्यकता हो सकती है। [7] इसके पश्चात जलन की चोट का उपचार किया जाता है। गंभीर रूप से जले हुए व्यक्तियों को अस्पताल पहुँचने तक स्वच्छ चादर में लपेट देना चाहिए। [7] चूंकि जलने के घावों में संक्रमण होने की आशंका रहती है, इसलिए, यदि उस व्यक्ति को पिछले पांच साल के भीतर प्रतिरक्षित नहीं किया गया हो तो उसे टिटनेस बूस्टर दिया जाना चाहिए। [38] संयुक्त राज्य अमरीका में, आपातकालीन विभाग के पास पहुँचने वाले 95% मामलों में उन्हें इलाज के बाद छुट्टी दे दी जाती है; 5% को अस्पताल में भर्ती करने की आवश्यकता पड़ती है। [3] बड़ी जलन के मामलों में शीघ्र फीडिंग महत्वपूर्ण होती है। [34] परंपरागत उपचार के अतिरिक्त हाइपरबेरिक ऑक्सीजन का प्रयोग उपयोगी हो सकता है। [39]

अंतःशिरा तरल पदार्थ

ऐसे व्यक्तियों में, जिनमें ऊतक आप्लावन कम हो, उन्हें आइसोटॉनिक क्रिस्टलॉयड विलयन के बोलसेज़ दिए जाने चाहिए। [5] बच्चों में 10-20% टीएसबीए से अधिक की जलन, तथा वयस्कों में 15% टीएसबीए से अधिक की जलन में, औपचारिक द्रव पुनर्जीवन और निगरानी का पालन करना चाहिए।[5][40][41] इसे अस्पताल-पूर्व ही शुरू हो जाना चाहिए तथा जिन व्यक्तियों में जलन 25% टीएसबीए से अधिक हो, उनमें यदि संभव हो तो[40] पार्कलैंड सूत्र की सहायता से पहले 24 घंटों में दिए जाने वाले अंतःशिरा तरल पदार्थ की मात्रा की गणना की जा सकती है। यह सूत्र प्रभावित व्यक्ति के टीएसबीए तथा वज़न पर आधारित है। तरल पदार्थ की आधी मात्रा पहले 8 घंटों में दी जानी चाहिए तथा शेष अगले 16 घंटों में। समय सीमा की गणना जलने के समय से की जानी चाहिए ना कि उस समय से जबसे द्रव पुनर्जीवन प्रारंभ किया गया। बच्चों में अतिरिक्त अनुरक्षण तरल पदार्थ की आवश्यकता पड़ती है जिसमें ग्लूकोज़ शामिल होता है.[7] इसके अतिरिक्त, जिन लोगों में श्वसन सम्बन्धी चोट होती है, उन्हें अधिक तरल पदार्थ की आवश्यकता होती है।[42] एक तरह जहाँ अपर्याप्त द्रव पुनर्जीवन से समस्याएं हो सकती है, आवश्यकता से अधिक द्रव पुनर्जीवन भी हानिकारक हो सकता है। [43] ये सूत्र सिर्फ एक मार्गदर्शक हैं, जिनके द्वारा आधान (इन्फ्यूज़न) की उचित मात्रा चुनी जा सकती है ताकि यूरिनरी आउटपुट को वयस्कों में >30 mL/h अथवा बच्चों में >1mL/kg पर रखा जा सके तथा औसत धमनी दबाव को 60 mmHg से अधिक बनाये रखा जा सके।[7]

जबकि बहुधा लेक्टेटेड रिन्गर्स विलयन को प्रयोग में लाया जाता है, इसका कोई प्रमाण नहीं है कि यह नार्मल सलाइन से बेहतर होता है।[5] क्रिस्टलॉयड तरल पदार्थ भी कोलाइड तरल पदार्थों जैसे ही होते हैं, तथा कोलाइड अधिक महंगे होते हैं तथा उनकी अधिक संस्तुति नहीं की जाती है। [44] रक्त आधान की आवश्यकता बहुत कम मामलों में पड़ती है। [10] इसकी आवश्यकता उन विशिष्ट स्थितियों में ही पड़ती है जब कि हीमोग्लोबीन का स्तर 60-80 g/L से नीचे चला जाता है (6-8 g/dL)[45] जटिलताओं से जुड़े जोखिम के कारण।[7] जली हुई त्वचा से अंतःशिरीय कैथेटर लगाये जा सकते हैं अथवा आवश्यकता होने पर इंट्राऑसियस आधान का प्रयोग किया जा सकता है। [7]


ज़ख्म की देखभाल

ज़ख्म को शीघ्र ठंडा कर देने से (जलने के 30 मिनट के अंदर) जलने की गहरे तथा दर्द को कम किया जा सकता है, मगर यह ध्यान देना चाहिए कि आवश्यकता से अधिक ठंडा करने के परिणामस्वरूप अल्पताप (हाइपोथर्मिया) हो सकता है। [10][5] ऐसा ठन्डे पानी से किया जाना चाहिए 10–25 °से. (50.0–77.0 °फ़ै) तथा बर्फीले पानी से नहीं, क्योंकि यह अधिक चोट पैदा कर सकता है। [5][33] रसायन से जलने के घाव को पानी से व्यापक रूप से धोने की आवश्यकता हो सकती है। [10] साबुन और पानी से साफ सफाई, मृत ऊतकों को हटाना, तथा पट्टी करना ज़ख्म की देखभाल के महत्वपूर्ण पहलू हैं। यदि साबुत फफोले हों, तो उनके साथ क्या किया जाना चाहिए स्पष्ट नहीं है। कुछ अंतरिम साक्ष्य उन्हें वैसे ही छोड़ने का समर्थन करते हैं। दूसरी डिग्री की जलन के दो दिनों के बाद उसका फिर से परीक्षण किया जाना चाहिए।[33]

पहली और दूसरी डिग्री की जलन के प्रबंधन में किस प्रकार की पट्टी प्रयोग में लायी जानी चाहिए, इसके विषय में निम्न गुणवत्ता के साक्ष्य ही उपलब्ध हैं। [46][47] पहली डिग्री की जलन में बिना पट्टी के ही प्रबंधन किया जाना चाहिए। [33] हालांकि स्थानिक एंटीबायोटिक दवाओं की अक्सर सलाह दी जाती है, उनके प्रयोग से सम्बंधित बहुत कम साक्ष्य ही उपलब्ध हैं। [48] सिल्वर सल्फ़ाडीयाजाइन (एक प्रकार की एंटीबायोटिक) का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि यह उपचार के संभावित समय को बढ़ाती है। [47] सिल्वर युक्त ड्रेसिंग के प्रयोग का समर्थन करने के लिए साक्ष्य अपर्याप्त हैं[49] अथवा निगेटिव-प्रेशर घाव उपचार पद्धति[50]

चिकित्सा

जलने की चोटों में बहुत दर्द होता है तथा दर्द के प्रबंधन के लिए उपलब्ध विभिन्न विकल्पों में से किसी का प्रयोग किया जा सकता है। इनमें सामान्य दर्द निवारक (एनाल्जेसिक) (जैसे इबुप्रोफेन तथा एसिटामिनोफेन) एवं [[ओपिऑयड्स] जैसे कि मॉर्फीन। बेंजोडाइजेपाइन्स का दर्द निवारकों के साथ प्रयोग घबराहट को कम करने के लिए किया जा सकता है। [33] घाव भरने की प्रक्रिया के दौरान, हिस्टामिनरोधी, मालिश, अथवा ट्रांसक्यूटेन्युअस नर्व स्टीमुलेशन का प्रयोग खुजली में सहायता के लिए किया जा सकता है। [8] हालाँकि, हिस्टामिनरोधी इस उद्देश्य से सिर्फ 20% लोगों में ही प्रभावी हो पाते हैं। [51] गाबापेन्टिन के प्रयोग के समर्थन का संभाव्य प्रमाण है। [8] तथा जिन व्यक्तियों में हिस्टामिनरोधी दवाओं से सुधार नहीं होता, उनके लिए इसका प्रयोग उचित हो सकता है। [52]

जो लोग विस्तृत रूप से जले होते हैं (>60% टीबीएसए) उनको अंतःशिरीय एंटीबायोटिक दवाओं की आवश्यकता शल्यक्रिया से पहले पड़ती है। [53] 2008 के अनुसार दिशा-निर्देशों में उनके सामान्य उपयोग की सिफारिश नहीं की गयी है जिसका कारण एंटीबायोटिक प्रतिरोध[48] तथा फंगल संक्रमण का बढ़ा खतरा है। [7] तथापि, अंतरिम प्रमाण दर्शाते हैं कि जलने के बड़े तथा गंभीर मामलों में इनके प्रयोग से बचने की दर में सुधार हो सकता है। [48] एरिथ्रोपीटिन को जलने के मामले वाले लोगों में एनीमिया को रोकने या इसके उपचार के लिए प्रभावी होना नहीं पाया गया है। [7] हाइड्रोफ्लोरिक अम्ल से जलने वाले मामलों में कैल्शियम ग्लूकोनेट को एक विशिष्ट प्रभावी प्रतिकार पाया गया है तथा इसका प्रयोग अंतःशिरीय अथवा स्थानिक रूप से किया जा सकता है। [22]

शल्य चिकित्सा

ऐसे ज़ख्मों को, जिन्हें शल्य चिकित्सा से, ग्राफ्ट्स अथवा फ्लैप्स के द्वारा बंद किये जाने की आवश्यकता हो, जितनी जल्दी संभव हो निपटा जाना चाहिए। [54] हाथ-पैर अथवा छाती की परिधीय जलन में त्वचा को शल्य-क्रिया द्वारा तुरंत निकालने की आवश्यकता हो सकती है जिसे एस्क्रॉटॉमी कहा जाता है। [55] यह डिस्टल परिसंचरण अथवा वेंटिलेशन सम्बन्धी समस्याओं के उपचार या उन्हें रोकने के लिए किया जाता है। [55] यह अभी अनिश्चित है कि यह गर्दन अथवा डिजिट की जलन के लिए उपयोगी है। [55] विद्युत के कारण जलने में फैशियोटॉमी की आवश्यकता हो सकती है। [55]

वैकल्पिक चिकित्सा

घाव भरने सहायता करने के लिए प्राचीन काल से शहद का प्रयोग किया गया है तथा यह पहली और दूसरी डिग्री की जलन में लाभप्रद हो सकता है। [56][57] (घृतकुमारी (ऐलो वेरा) के प्रयोग सम्बन्धी प्रमाण निम्न गुणवत्ता के हैं। [58] हालाँकि, यह दर्द को कम करने में लाभकारी हो सकता है, [11] तथा 2007 की एक समीक्षा से घाव भरने के समय में सुधार का संभावित प्रमाण भी मिला। [59] इसके पश्चात 2012 की एक समीक्षा में घाव भरने के समय में यह सुधार सिल्वर सल्फाडायाजाइम के तुलना में अधिक नहीं था। [58]

इस बात के अधिक प्रमाण नहीं हैं कि विटामिन ई केलॉयड्स अथवा घाव के निशानों को कम करने में सहायक होता है। [60] मक्खन के प्रयोग की अनुशंसा नहीं की जाती है।[61] कम आय वाले देशों में, एक-तिहाई मामलों में जलने का उपचार पारंपरिक चिकित्सा के द्वारा किया जाता है, जिनमें अंडों, मिटटी, पत्तियों अथवा गाय का गोबर का प्रयोग शामिल है। [16] शल्य-चिकित्सा के द्वारा प्रबंधन अपर्याप्त वित्तीय संसाधनों और उपलब्धता के कारण कुछ मामलों तक ही सीमित है। [16] ऐसे कई साधन उपलब्ध हैं जिनका प्रयोग दवाओं के साथ करने से प्रक्रियागत दर्द तथा तनाव को कम किया जा सकता है, इनमें शामिल हैं: वर्चुअल रियालिटी चिकित्सा, सम्मोहन तथा व्यावहारिक पद्धतियाँ जैसे कि विकर्षण तकनीक। [52]

रोगनिदान

Prognosis in the USA[62]
TBSA Mortality
<10% 0.6%
10-20% 2.9%
20-30% 8.6%
30-40% 16%
40-50% 25%
50-60% 37%
60-70% 43%
70-80% 57%
80-90% 73%
>90% 85%
Inhalation 23%

जिन लोगों में जलन के बड़े जख्म होते हैं, या वे वृद्ध होते हैं अथवा महिलाओं में, रोगनिदान निम्न श्रेणी का हो पाता है। [10] रोग निदान को प्रभावित करने वाले अन्य प्रमुख कारक हैं धुंए के कारण श्वसन सम्बन्धी चोट, अन्य प्रमुख चोटें जैसे हड्डी टूटना, अन्य गंभीर सह-रुग्णता (जैसे ह्रदय रोग, मधुमेह, मनोवैज्ञानिक बीमारी तथा आत्महत्या की प्रवृत्ति) [10] औसतन, संयुक्त राज्य अमरीका के बर्न उपचार केन्द्रों में भर्ती कराये गए 4% लोगों की मृत्यु हो जाती है,[15] हालाँकि, किसी व्यक्ति के उपचार का परिणाम उसके जलने की गंभीरता पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, भर्ती कराये जाने वाले वे व्यक्ति जिनमें 10% टीबीएसए से कम की जलन होती है, उनकी मृत्यु दर 1% से भी कम है, जबकि 90% टीबीएसए से अधिक जलने वालों में यह मृत्यु दर 85% की है।[62] अफगानिस्तान में 60% टीबीएसए से अधिक जलने वाले लोग शायद ही जीवित रह पाते हैं। [15] बौक्स स्कोर का प्रयोग प्राचीन समय से जलने के प्रमुख मामलों में रोग के निदान का निर्धारण करने के लिए किया जाता है; हालांकि, बेहतर देखभाल के साथ, यह अब बहुत सटीक नहीं है।[7] इस स्कोर का निर्धारण जलने के आकार (% टीबीएसए) को जलने वाले व्यक्ति की आयु में जोड़ कर किया जाता है जिसका कमोबेश मृत्यु का समान जोखिम होता है। [7]

जटिलतायें

जलने से सम्बंधित कई जटिलतायें उत्पन्न हो सकती हैं जिनमें संक्रमण सबसे सामान्य है। [15] आवृत्ति के क्रम में, संभावित जटिलताओं में शामिल हैं: निमोनिया, सेलुलाइटिस, मूत्र पथ के संक्रमण और श्वासरोध.[15] संक्रमण के जोखिम कारकों में शामिल हैं: 30% टीबीएसए से अधिक जलना, पूर्ण-घनत्व की जलन, आयु के छोर (युवा अथवा बूढ़े), अथवा ऐसी जलन जिनमें पैर अथवा मूलाधार (पेरीनियम) शामिल हों। [63] निमोनिया होने की सम्भावना उन व्यक्तियों में अधिक होती है जिन्हें श्वसन सम्बन्धी चोटें लगी हों। [7]

पूर्ण घनत्व वाली जलन, जिसमें 10% से अधिक टीबीएसए हो, के पश्चात रक्ताल्पता (एनीमिया) होना सामान्य है। [5] विद्युत से होने वाली जलन के कारण मांसपेशी टूटने के चलते कम्पार्टमेंट सिंड्रोम अथवा रैब्डोमायोल्सिस हो सकता है। [7] 6 से 25% लोगों में पैर की शिराओं में रक्त का थक्का बनने का अनुमान होता है। [7] अति-चयापचय की इस अवस्था, जो कि जलने की बड़ी घटना के पश्चात वर्षों तक बनी रह सकती है, के परिणामस्वरूप अस्थि घनत्व में कमी और मांसपेशियों की हानि हो सकती है। [34] जलन के परिणामस्वरूप केलॉयड्स बन सकते हैं, विशेष रूप से उनमें जो युवा तथा गहरे रंग की त्वचा वाले व्यक्ति होते हैं। [60] जलने के पश्चात बच्चों में विशेष रूप से मनोवैज्ञानिक आघात हो सकता है तथा वे अभिघातजन्य तनाव विकार का शिकार बन सकते हैं। [64] जलने की चोट के निशानों के कारण शरीर की छवि में परिवर्तन हो सकता है। [64] विकासशील देशों में जलने के बड़े तथा गंभीर चिन्हों के कारण सामाजिक अलगाव, अत्यधिक निर्धनता तथा बच्चों के परित्याग तक की परिस्थितियां बन सकती हैं। [3]

महामारी - विज्ञान

प्रति 1,00,000 निवासियों पर वर्ष 2004 में आग के कारण विकलांगता समायोजित जीवन वर्ष[65]
██ no data ██ < 50 ██ 50-100 ██ 100-150 ██ 150-200 ██ 200-250 ██ 250-300
██ 300-350 ██ 350-400 ██ 400-450 ██ 450-500 ██ 500-600 ██ > 600

वर्ष 2004 तक, जलने की 11 मिलियन घटनायें घटित हुईं, जिनमें चिकित्सकीय देख-रेख की आवश्यकता पड़ी तथा इनसे 300,000 व्यक्तियों की मृत्यु हुई। [3] इसी कारण से यह मोटर वाहनों की टक्कर, गिरने तथा हिंसा के बाद चोट लगने का चौथा शीर्ष कारण है। [3] जलने के मामलों में से लगभग 90% विकासशील देशों में होते हैं।[3] आंशिक रूप से इसका मुख्य कारण बढ़ती हुई भीड़भाड़ तथा खाना पकाने की असुरक्षित परिस्थितियां हैं। [3] कुल मिलाकर, जानलेवा रूप से जलने के करीब 60% मामले दक्षिणपूर्व एशिया में होते हैं, जिनकी दर 11.6 प्रति 1,00,000 के करीब है।[15]

विकसित देशों में जलने के कारण वयस्क पुरुषों की मृत्यु दर महिलाओं की तुलना में लगभग दो गुनी है। इसका संभावित कारण उच्च जोखिम वाले व्यवसायों और अधिक से अधिक जोखिम लेने की गतिविधियों में भाग लेना है। जबकि, विकासशील देशों में से कई देशों में महिलाओं को यह खतरा पुरुषों की तुलना में दोगुना है। यह अधिकांशतः रसोई में दुर्घटनाओं या घरेलू हिंसा से संबंधित है।[3] बच्चों के मामलों में, जलने से मृत्यु की घटनाओं की दर विकासशील देशों में विकसित देशों की तुलना में दस गुनी तक है। [3] कुल मिलाकर, बच्चों में यह मृत्यु के शीर्ष पंद्रह प्रमुख कारणों में से एक है।[1] 1980 के दशक से 2004 तक, अनेक देशों में जलने की जानलेवा घटनाओं तथा जलने की कुल घटनाओं की संख्या, दोनों में कमी आई है। [3]

विकसित देश

एक अनुमान के अनुसार संयुक्त राज्य अमेरिका में वार्षिक रूप से 5,00,000 जलने सम्बन्धी चोटों का चिकित्सा उपचार किया जाता है। [33] इसके कारण 2008 में लगभग 3300 लोगों की मृत्यु हुई।[1] जलने से मृत्यु के अधिकांश मामले (70%) पुरुषों में होते हैं। [4][10] आग से जलने के सर्वाधिक मामले 18साँचा:Endash35 वर्ष के पुरुषों में होते हैं, जबकि स्कैल्ड्स के सर्वाधिक मामले पाँच साल से छोटे बच्चों तथा 65 वर्ष से अधिक के वयस्कों में होते हैं। [10]प्रति वर्ष लगभग 1000 लोगों की मृत्यु विद्युत से जलने के कारण होती है।[66] बिजली गिरने से प्रति वर्ष लगभग 60 व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है। [9] यूरोप में जानबूझ कर जलने के सर्वाधिक मामले मध्यम आयु वर्ग के पुरुषों में सबसे अधिक होते हैं। [29]

विकासशील देश

भारत में लगभग 7,00,000 से 8,00,000 लोग जलने की गंभीर घटनाओं में बच जाते हैं, हालाँकि इनमें से बहुत कम लोग विशिष्ट बर्न इकाइयों में उपचार करवाते हैं। [67] जलने की सर्वाधिक दर महिलों में 16–35 वर्ष के आयुवर्ग में होती है। [67] इस उच्च दर का एक कारण असुरक्षित रसोई तथा ढीले कपड़ों से संबंधित है जो कि भारत में सामान्य हैं. [67] ऐसा अनुमान है कि भारत में होने वाली जलने की कुल घटनाओं में से एक-तिहाई खुली लपटों से कपड़ों के जलने के कारण होती हैं। [68] जानबूझ कर जलना भी एक सामान्य कारण है तथा घरेलू हिंसा तथा स्वयं को क्षति पहुँचाने के बाद इसकी दर युवा महिलाओं में सर्वाधिक है।[29][3]

इतिहास

जिलॉम डुपीट्रन (1777-1835) जिन्होंने जलने के वर्गीकरण की श्रेणियों की प्रणाली का विकास किया

3,500 वर्ष पूर्व के गुफा-चित्रों में जलने तथा उसके उपचार का प्रलेखीकरण किया गया है। [2] 1500 ई.पू. मिस्र के स्मिथ पेपाइरस ने शहद राल के मरहम से जलने के इलाज का वर्णन किया है।[2]कई अन्य उपचार सदियों से प्रयोग में लाये गए हैं, जिनमें चीनी लोगों द्वारा 600 ई.पू. में प्रलेखित चाय की पत्तियों का प्रयोग, हिप्पोक्रेट्स द्वारा 400 ई.पू. में प्रलेखित सुअर की चर्बी और सिरके का प्रयोग एवं सेल्सस द्वारा 100 ईसवीं में प्रलेखित वाइन तथा लोबान का प्रयोग शामिल हैं। [2] फ्रेंच नाइ-शल्यचिकित्सक एम्ब्रोज़ पार पहला व्यक्ति था जिसने जलने की कई श्रेणियों का वर्णन 1500 के दशक में किया।[69] जिलॉम डुपीट्रन ने 1832 में इन श्रेणियों को छह अलग-अलग गंभीरताओं में विभाजित किया. [70][2]

जलने के इलाज के लिए पहला अस्पताल लंदन, इंग्लैंड में 1843 में खोला गया तथा जलने की देखभाल का आधुनिक विकास 18वीं सदी के अंत में तथा 19वीं सदी की शुरुआत में प्रारंभ हुआ। [2][69] प्रथम विश्व युद्ध के दौरान हेनरी डी. डेकिनएलेक्सिस केरेल ने सोडियम हाइपोक्लोराईट के विलयन से जलने एवं घावों की सफाई तथा रोगाणुनाशन के मानकों का विकास किया, जिसके कारण मृत्यु दर बहुत कम हो गयी। [2] 1940 के दशक में, शीघ्र एक्सिज़न तथा त्वचा ग्राफ्टिंग के महत्व को स्वीकार किया गया, तथा लगभग इसी समय तरल पदार्थ पुनर्जीवन और इसका मार्गदर्शन करने के सूत्रों को विकसित किया गया। [2] 1970 के दशक में शोधकर्ताओं ने जलने के बड़े मामलों के पश्चात होने वाली हाइपरमेटाबोलिक अवस्था के महत्व का प्रदर्शन किया। [2]

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