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योगवासिष्ठ

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योगवाशिष्ठ महारामायण  

वाल्मीकि
लेखक वाल्मीकि
देश भारत
भाषा संस्कृत
श्रृंखला अद्वैत सिद्धान्त
विषय मोक्ष की प्राप्ति
प्रकार आदि धर्म ग्रन्थ

योगवाशिष्ठ महारामायण संस्कृत सहित्य में अद्वैत वेदान्त का अति महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। परम्परानुसार आदिकवि वाल्मीकि योगवाशिष्ठ महारामायण के रचयिता माने जाते हैं किन्तु वास्तविक रचयिता वशिष्ठ हैं तथा महर्षि वाल्मीकि इस सिद्धांत ग्रन्थ के संकलनकर्ता मात्र हैं। योगवाशिष्ठ महारामायण में जगत् की असत्ता और परमात्मसत्ता का विभिन्न दृष्टान्तों के माध्यम से प्रतिपादन है। भारद्वाज के मोक्ष की प्राप्ति के लिए की गई प्रश्नोत्तरी का भी वर्णन है।

इसमें श्लोकों की कुल संख्या २७६८७ है। वाल्मीकि रामायण से लगभग चार हजार अधिक श्लोक होने के कारण इसका 'महारामायण' अभिधान सर्वथा सार्थक है। इसमें राम का जीवनचरित न होकर ऋषि वसिष्ठ द्वारा भगवान को दिए गए आध्यात्मिक उपदेश हैं।

विनायक दामोदर सावरकर इस ग्रन्थ से अत्यन्त प्रभावित थे और उन्होने इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है।[1]

परिचय[संपादित करें]

योगविशिष्ठ के फारसी अनुवाद की एक पाण्डुलिपि (१६०२ ई) से लिया गया चित्र जिसमे कार्कटी किरातराज से प्रश्नोत्तर करतीं है

विद्वत्जनों का मत है कि सुख और दुख, जरा और मृत्यु, जीवन और जगत, जड़ और चेतन, लोक और परलोक, बंधन और मोक्ष, ब्रह्म और जीव, आत्मा और परमात्मा, आत्मज्ञान और अज्ञान, सत् और असत्, मन और इंद्रियाँ, धारणा और वासना आदि विषयों पर कदाचित् ही कोई ग्रंथ हो जिसमें ‘योगविशिष्ठ’ की अपेक्षा अधिक गंभीर चिंतन तथा सूक्ष्म विश्लेषण हुआ हो। मोक्ष प्राप्त करने का एक ही मार्ग है मोह का नाश। योगवासिष्ठ में जगत की असत्ता और परमात्मसत्ता का विभिन्न दृष्टान्तों के माध्यम से प्रतिपादन है। पुरुषार्थ एवं तत्त्व-ज्ञान के निरूपण के साथ-साथ इसमें शास्त्रोक्त सदाचार, त्याग-वैराग्ययुक्त सत्कर्म और आदर्श व्यवहार आदि पर भी सूक्ष्म विवेचन है।[2]

अन्य नाम

यह ग्रन्थ अनेक अन्य नामों से भी जाना जाता है, जैसे-

  • आर्ष-रामायण
  • ज्ञानवासिष्ठ[3]
  • महारामायण
  • योगवासिष्ठ महारामायण
  • योगवासिष्ठ रामायण
  • वसिष्ठ-गीता
  • वसिष्ठ रामायण[4]

रचयिता तथा रचनाकाल[संपादित करें]

आदिकवि वाल्मीकि परम्परानुसार योगवासिष्ठ के रचयिता माने जाते हैं। परन्तु इसमें बौद्धों के विज्ञानवादी, शून्यवादी, माध्यमिक इत्यादि मतों का तथा काश्मीरी शैव, त्रिक, प्रत्यभिज्ञा तथा स्पन्द इत्यादि तत्वज्ञानो का निर्देश होने के कारण इसके रचयिता उसी (वाल्मीकि) नाम के अन्य कवि माने जाते हैं। अतः इस ग्रन्थ के रचियता के संबंध में मतभेद है। योगवासिष्ठ की श्लोक संख्या 32 हजार है। विद्वानों के मतानुसार महाभारत के समान इसका भी तीन अवस्थाओं में विकास हुआ- (१) वसिष्ठकवच, (२) मोक्षोपाय (अथवा वसिष्ठरामसंवाद) (३) वसिष्ठरामयण (या बृहद्योगवासिष्ठ)। यह तीसरी पूर्णावस्था ई० ११-१२वीं शती में पूर्ण मानी जाती है।

संरचना[संपादित करें]

योगविशिष्ठ ग्रन्थ छः प्रकरणों (४५८ सर्गों) में पूर्ण है। योगविशिष्ठ की श्लोक संख्या २९ हजार है। महाभारत के बाद यह दूसरा सबसे बड़ा हिन्दू धर्मग्रन्थ है।

  1. वैराग्यप्रकरण (३३ सर्ग),
  2. मुमुक्षु व्यवहार प्रकरण (२० सर्ग),
  3. उत्पत्ति प्रकरण (१२२ सर्ग),
  4. स्थिति प्रकरण (६२ सर्ग),
  5. उपशम प्रकरण (९३ सर्ग), तथा
  6. निर्वाण प्रकरण (पूर्वार्ध १२८ सर्ग और उत्तरार्ध २१६ सर्ग)।

प्रथम वैराग्य प्रकरण में उपनयन संस्कार के बाद राम अपने भाइयों के साथ गुरुकुल में अध्ययनार्थ गए। अध्ययन समाप्ति के बाद तीर्थयात्रा से वापस लौटने पर राम विरक्त हुए। महाराज दशरथ की सभा में वे कहते हैं कि वैभव, राज्य, देह और आकांक्षा का क्या उपयोग है। कुछ ही दिनों में काल इन सब का नाश करने वाला है। अपनी मनोव्यथा का निवारण करने की प्रार्थना उन्होंने अपने गुरु वसिष्ठ और विश्वामित्र से की। दूसरे मुमुक्षुव्यवहार प्रकरण में विश्वामित्र की सूचना के अनुसार वशिष्ठ ऋषि ने उपदेश दिया है। ३-४ और ५ वें प्रकरणों में संसार की उत्पत्ति, स्थिति और लय की उत्पत्ति वार्णित है। इन प्रकारणों में अनेक दृष्टान्तात्मक आख्यान और उपाख्यान निवेदन किये गए हैं। छठे प्रकरण का पूर्वार्ध और उत्तरार्ध में विभाजन किया गया है। इसमें संसारचक्र में फँसे हुए जीवात्मा को निर्वाण अर्थात निरतिशय आनन्द की प्राप्ति का उपाय प्रतिपादित किया गया है।

टीकाएँ[संपादित करें]

योगवासिष्ठ की निम्नलिखित पारम्परिक टीकाएँ आज भी सुरक्षित हैं-

  • वासिष्ठ-रामायण-चन्द्रिका (आद्वयारण्य, नरहरि के पुत्र)
  • तात्पर्य-प्रकाश (आनन्द बोधेन्द्र सरस्वती)
  • गङ्गाधरेन्द्र का भाष्य
  • पद-चन्द्रिका (माधव सरस्वती)

गौड अभिनन्द नामक काश्मीर के पण्डित द्वारा ९वीं शताब्दी में किया हुआ इसका लघुयोगवासिष्ठ नामक संक्षेप 4829 श्लोकों का है। योगवासिष्ठसार नामक दूसरा संक्षेप 225 श्लोकों का है।

अन्य ग्रन्थों पर प्रभाव[संपादित करें]

वेदान्त के प्रसिद्ध लेखक विद्यारण्य स्वामी के जीवन्मुक्तिविवेक और पंचदशी, नारायण भट्ट के भक्तिसागर, प्रकाशात्मा की वेदान्तसिधान्तमुक्तावली, और शिवसंहिता, हठयोगप्रदीपिका तथा रामगीता इत्यादि ग्रंथों में योगवासिष्ट की उक्तियाँ उद्धृत की गई हैं। केवल जीवन्मुक्ति विवेक में ही योगवासिष्ठ के २५३ श्लोक उद्धृत हैं।

१०८ प्रसिद्ध उपनिषदों में से कुछ उपनिषद ऐसे हैं जो कि सब के सब अथवा जिनके कुछ (प्रधान) भाग - योगवासिष्ठ में से चुने हुए श्लोकों से ही बने हैं, अथवा जिनमें कहीं कहीं पर योगवासिष्ठ के श्लोक भी पाए जाते हैं। ऐसा जान पड़ता है कि प्राचीन काल में हस्तलिखित पुस्तकें होने से योगवासिष्ठ जैसा बड़ा ग्रंथ आसानी से उपलब्ध न होने के कारण, लोगों ने इसमें से अपनी-अपनी रुचि के अनुसार श्लोकों को छाँट कर उनका संग्रह करके उसका नाम उपनिषत् रख लिया । निम्नलिखित उपनिषदों में योगवासिष्ठ के श्लोक पाए जाते हैं-

(१) महा उपनिषद -- केवल पहिला, छोटा सा भूमिकामय अध्याय छोड़कर सारा उपनिषद् योगवासिष्ठ के ही (५१० के लगभग ) श्लोकों से बना है।

(२) अन्नपूर्णा उपनिषद् - सम्पूर्ण ( आरम्भ के १७ श्लोक छोड़ कर )

(३) अक्षि उपनिषद् - सम्पूर्ण

(४) मुक्तिकोपनिषद् - दूसरा अध्याय जो कि मुख्य अध्याय है।

(५) वराह उपनिषद् - चौथा अध्याय

(६) बृहत्संन्यासोपनिषद् - ५० श्लोक

(७) शांडिल्य उपनिषद् - १८ श्लोक

(८) याज्ञवल्क्य उपनिषद् - १० श्लोक

(९) योगकुण्डली उपनिषद् - ३ श्लोक

(१०) पैङ्गल उपनिषद् -१ श्लोक ।

इनके अतिरिक्त दूसरे कुछ ऐसे उपनिषद् भी हैं जिनमें योगवासिष्ठ के श्लोक तो अक्षरशः नहीं पाये जाते लेकिन योगवासिष्ठ के सिद्धान्त अवश्य ही मिलते हैं। अभी तक यह कहना कठिन है कि ये योगवासिष्ठ के पहिले के हैं अथवा पीछे के। वे ये हैं :-

(१) जावाल उपनिषद् - समाधिखण्ड ।

(२) योगशिखोपनिषद् - १।३४-३७, १।५९, ६०, ४ ( समस्त ) ६।५८, ५९-६४

(३) तेजोबिन्दुपनिषद् - समस्त ।

(४) त्रिपुरतापिनी उपनिषद् - उपनिषद् ५, श्लोक १-१६

(५) सौभाग्यलक्ष्मी उपनिषद् - द्वितीयखण्ड, श्लोक १२-१६

(६) मैत्रायण्युपनिषद् - प्रपाठक ४, श्लोक १-११

(७) अमृतबिन्दुपनिषद् - श्लोक १-५

इन सब बातों से यह सिद्ध होता है कि भारतीय दर्शन में योगवासिष्ठ का बहुत ऊँचा स्थान है और भारतीय दर्शन के इतिहास में इसका महत्व उपनिषद और भगवद्गीता से किसी प्रकार कम नहीं वरन् अधिक ही रहा है।[5]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Savarkar,Vinayak D. "My Transportation for Life" pp.151 http://www.savarkarsmarak.com/activityimages/My%20Transportation%20to%20Life.pdf Archived 2018-09-29 at the वेबैक मशीन
  2. "गीताप्रेस डाट काम, योगवासिष्ठ". मूल से 23 जून 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 जून 2010.
  3. Leslie 2003 Archived 2020-06-17 at the वेबैक मशीन, pp. 104
  4. Encyclopaedia of Indian Literature, Volume 5. pp. 4638, By various, Published by Sahitya Akademi, 1992, ISBN 81-260-1221-8, ISBN 978-81-260-1221-3
  5. योगवासिष्ठ और उसके सिद्धान्त

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • चूडाला -- एक विदुषी, जिसका आख्यान योगवासिष्ठ में आया है।

बाहरी कडियाँ[संपादित करें]

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